सत्य की रक्षार्थ हीं इस देश में ,
कृष्ण की वाणी कभी गीता बनी ।
क्रौंचनी के रुदन का अहसास कर ,
आदिकवि विह्वल हुआ ,कविता बनी ।
शुचिता को सिद्ध करती अग्नि में ,
क्यों यहाँ हर काल में सीता बनी ।
दामिनी के दर्द में बहती हुई,
लेखनी भी शोक की सरिता बनी ।
.................डॉ मनोज कुमार सिंह
No comments:
Post a Comment