स्वार्थ रहित अब जन कहाँ ,कहाँ रहा अब स्नेह |
जाति- घृणा ने कर दिया ,शुष्क हृदय का गेह |
नफरत ,कुंठा ह्रदय में ,कथनी केवल भव्य |
भेड़ रूप में भेड़िया, समझाए कर्त्तव्य ||
द्वेष ,घृणा के कूप में ,मन जिनके हैं बंद |
कौन सुनेगा जगत में,उनसे छल के छंद ||
जाति- धर्म के नाम पर ,बाँट रहे जो पीर |
ह्त्या करके प्रेम की ,खुद को कहे कबीर |
जाति- घृणा ने कर दिया ,शुष्क हृदय का गेह |
नफरत ,कुंठा ह्रदय में ,कथनी केवल भव्य |
भेड़ रूप में भेड़िया, समझाए कर्त्तव्य ||
द्वेष ,घृणा के कूप में ,मन जिनके हैं बंद |
कौन सुनेगा जगत में,उनसे छल के छंद ||
जाति- धर्म के नाम पर ,बाँट रहे जो पीर |
ह्त्या करके प्रेम की ,खुद को कहे कबीर |
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