Saturday, September 1, 2012

इन्सां को किसने हिन्दु- मुसलमां बना दिया |
फिर नफरतों से आग का तूफां बना दिया |

इन्सां को बनाना था इनसान दोस्तों ,
ज़रा सोंचिये कि हमने उसे क्या बना दिया |

प्रगति की अंधी दौड़ में भूलने लगे रिश्ते ,
निज स्वार्थ ने इनसान को ,हैवां बना दिया |

इनसान को इनसान बनाने के वास्ते ,
धरती पे ख़ुदा ख़ुद को हीं, एक माँ बना दिया |

रोते हुए बच्चे की ,उस जिद के सामने ,
कविता को अपनी हमने ,खिलौना बना दिया |

No comments:

Post a Comment