Monday, September 24, 2012


 फूल -सी बच्ची गर्भ की  ,कुचल रहे क्यों आज ?
क्यों  बेटे की चाह में ,दानव बना समाज ?

बेटी हीं हैं देवियाँ ,दुर्गा की अवतार |
यहीं करेंगी फिर यहाँ ,दनुजों का संहार |

तू भी माँ  की  बेटी थी ,मिला  तुझे सम्मान |
फिर अपनी हीं कोंख का ,क्यों करती अपमान 

मंदिर में देवी पूजै, बगुला भगत समाज |
बेटी के दुश्मन बने ,घर वाले हीं आज |

दानव से मानव बनो , हरो मनुज की पीर |
भ्रूण ह्त्या को बंद कर ,बहा प्रेम का नीर |

स्वार्थ का कोई मूल नहीं होता |
सूखी डाली पे जैसे  फूल नहीं होता |
बुरे दिनों में जो साथ छोड़  देता है ,
उसका  कोई उसूल  नहीं होता |




  
   खुद  की नज़रों से खुद को छुपाते  रहे |


   झूठ दामन में अपने बसाते रहे |


   जब भी सच ने दिखाया उन्हें आईना


   आईनों पर हीं तोहमत लगाते रहे||

मित्रो का ऐतबार चाहिए |
स्नेह भरा व्यवहार चाहिए|
दिल से दिल की बात हो सके ,
प्यार भरा संचार चाहिए |
......................................................
[ सोच ]  1
खुश्बुओं से तर हुई मधु पुष्प की तरह ,
सोच अच्छी है तो, उसे रूप दीजिये |
ये जिंदगी हो जाएगी, चन्दन-सुगंध सी,
ज़रा दिल से उसे, प्यार-भरी धूप दीजिये |



दिल क्यों तेरा भोला-भाला ,मैं भी सोचूं ,तू भी सोच |


मस्ती में पागल मतवाला ,मैं भी सोचूं ,तू भी सोच |


बदले-बदले सुर तेरे क्यूँ ,समझ नहीं पाए हैं हम ,

लगता कोई गड़बड़ झाला
,मैं भी सोचूं ,तू भी सोच 






सोच में भी सोच क्या है ,सोच देखिये |

लरज़ते अश्रु  की, हर वेदना में क्रौंच देखिये |

इस जिंदगी में दर्द के, अहसास के लिए ,

इंसानियत के पाँव की, हर मोंच देखिये |

सत्ता मदांध जालिम मदहोश पड़े हैं |
गुमनाम पड़े रिश्ते बेहोश पड़े हैं |
नफरत की आग में ये  जल रहा वतन,
ये देखकर भी हम सब खामोश पड़े हैं |

जुबां खामोश होती है ,नज़र से काम लेते हैं |
दिलों के दर्द को चुपके से, दिल हीं थाम लेते हैं |
ये ऐसी लहर है जिसकी, कभी दिखती नहीं हलचल 
इसी अहसास को शायद, मुहब्बत नाम लेते हैं ||

दिल  में मुहब्बत जब, मस्ती से पूर  हो |
जिंदगी- सफ़र में  , भरोसे  का नूर हो |
खुदा का ठिकाना भी, पाक दिल की बस्ती है ,
 रिश्तों के आँगन सेस्वार्थ जहाँ -दूर हो |

मुहब्बत का इजहार  जब से किया ,


दिल के रिश्ते यकीं में बदलने लगे |


तेरी नज़रों का जादू हीं था जानेमन ,


मायने जिंदगी के बदलने लगे | 


प्रगतिशील व जनवादी ,भये प्रलेस  ,जलेस |
 कलहवाद में फँस गए ,लेखक संघ 'कलेस '|
लेखक संघ कलेस ,गालिया अच्छी देते |
पता नहीं उपदेश, कहाँ से किससे लेते |
 गाली का एक  शब्दकोश, समृद्ध  बनाएं |
 शब्दकोश को  शीघ्र, वे फिल्मों तक पहुँचायें ||.....................हा हा हा हा 


तेरी सोच का इतना बड़ा कायल हुआ हूँ मैं ,
इस जिंदगी में तेरा अमल सोच रहा हूँ|

कीचड़ भरे माहौल में ,जीने के लिए मैं ,
अहसास में ख़ुश्बू का कँवल सोच रहा हूँ |

 मैं दे सकूँ दुनिया को कुछ  इस दौर में 'मनोज ',
बस  प्यार की खुशरू -सी ग़ज़ल सोच रहा हूँ|


हर भूखे की भूख मिटाना ,अच्छा लगता हैं |
हर चेहरे पे चाँद उगाना ,अच्छा लगता है |

अभी-अभी रोता वो बच्चा, माँ को पाकर खुश लगता ,
माँ का उसको दूध पिलाना ,अच्छा लगता है |

बच्चे तो बच्चे होते हैं, भले बात वे ना मानें ,
फिर भी बच्चों को समझाना ,अच्छा लगता है |

पाकर खोना ,खोकर पानाहै जीवन की  विडंबना,
रोते-रोते फिर मुस्काना ,अच्छा लगता है |

चिड़ियों के कलरव ,मधुकर के गुंजन से भी मधुर ध्वनी ,
नन्हें बच्चों का का तुतलाना ,अच्छा लगता है |





         दर्द पे दर्द का  समंदर लिख दिया |
         शांत लहरों पे जैसे बवंडर लिख दिया |
         हरेक  कौर पे  मुफलिसों  के उसने,
         बेदर्द  सातवाँ सिलेंडर लिख दिया ||
स्वार्थ रहित अब जन कहाँ ,कहाँ रहा अब स्नेह |
जाति- घृणा ने कर दिया ,शुष्क हृदय का गेह |

नफरत ,कुंठा ह्रदय में ,कथनी केवल भव्य |
भेड़ रूप में भेड़िया, समझाए कर्त्तव्य ||

द्वेष ,घृणा के कूप में ,मन जिनके हैं बंद |
कौन सुनेगा जगत में,उनसे छल के छंद ||

जाति- धर्म के नाम पर ,बाँट रहे जो पीर |
ह्त्या करके प्रेम की ,खुद को कहे कबीर |

Saturday, September 1, 2012

१ 
थका -सा मन
चाहता है विश्राम
पल दो पल|
2
गीला-गीला है 
पानी के दर्पण- सा 
जाने क्यों मन |

पढ़ना होगा
जीवन ,फिर उसे
गढ़ना होगा |

झूमे ये तन
ताक धिनाधिन धीं
नाचे है मन |

रूप- जाल में
वासना- जंजाल में
फँसा क्यूँ प्राणी ?
अनछुई जिंदगी की कल्पना कुंवारी है |
भाव के गाँव में अब पांव उसके भारी हैं |
हुआ लबरेज़ खुश्बुओं से यहाँ हर लम्हा ,
सृजन, मनुहार भी उस प्यार के आभारी हैं |

खुरच दे झूठ का चेहरा सच की बानी लिखना |
    मरी -सी  जिंदगी में  जोश- रवानी लिखना | 
    चुनौती दे रहा हूँ लिख सकोतो लिखना तुम ,
   घृणा की आँख में मुहब्बत रूहानी  लिखना  |
   रंगों - खुश्बू हो ,जब भी  अल्हड मस्ती हो ,
  उस क्षण कोखुबसूरत जवानी लिखना  
       मैं कर न सका और कुछ,तो प्यार कर लिया ,
 मेरी जिंदगी की ये सबनादानी लिखना  
जब उदास होना ,जिंदगी की बेरुखी  से ,
      उस वक्त कुछकविता और कहानी लिखना 


आरक्षण के नाम परहुआ घिनौना खेल |
गदहे  कुरसी पा गए ,मेरिट बेचे तेल ||
 आरक्षण हितलाभ से ,गदहे माल उडा;a  |
कर्मठता का देवता ,भूखे हीं सो जायं ||  
     आरक्षण के नाम पर ,काट रहे कुछ मौज |
   पढ़े लिखे बेकार की,खड़ी पड़ी है फ़ौज ||
 आरक्षण के नाम पर ,मिला  यहीं सन्देश |
जाति-धर्म के नाम परबँटा हुआ है देश ||

दिल क्यों तेरा भोला-भाला ,मैं भी सोचूं ,तू भी सोच |
मस्ती में पागल मतवाला ,मैं भी सोचूं ,तू भी सोच |
बदले-बदले सुर तेरे क्यूँ ,समझ नहीं पाए हैं हम ,
लगता कोई गड़बड़ झाला ,मैं भी सोचूं ,तू भी सोच 
अपनी नेमतों से मुझे इतना अमीर बना दे मौला |
पूरी दुनिया मेरी हो जाये,मुझे फकीर बना दे मौला |
गज़नी व गोरी ,हज़ारों ने लूटा | 
अंग्रेजों के संग, जमींदारों ने लूटा |
किसने नहीं, देश लूटा है यारों ,
सत्ता के सब, रिश्तेदारों ने लूटा |
बाजार के, मस्त अंगड़ाईयों से ,
लुभा के हमें, साहूकारों ने लूटा |
लड़की बलत्कृत को, पहले दिखाकर ,
टीवी टीआरपी, अखबारों ने लूटा |
जिन्हें सौंप दौलत, सोया देश अपना , 
उन्हीं रक्षकों ,पहरेदारों ने लूटा |
सच बोलूं दिल मिले ना मिले ,मिलना एक बहाना आज |
मित्रता की बनी कसौटी, केवल हाथ मिलाना आज |

कौन निभाये, किसको फुर्सत ,तीव्र गति कि दुनिया में ,
रिश्तों के दर्पण में देखा ,अपनापन अनजाना आज |

वेश्या की मुस्कान लिए है ,संबंधों की डोर यहाँ ,
करवट बदली ,ग्राहक बदले ,धंधा वहीँ पुराना आज |

नैतिकता ,ईमान ,धर्म आहत हैं ,उनकी महफ़िल में ,
जाल फ़रेबी ,दंभ झूठ सब ,पहने सच का बाना आज |

द्रौपदी के चिर हरण में ,चले जानवर इन्सां बन ,
अस्मत कितनी चढ़ी दाँव पर ,गिनना और गिनाना आज |

कुहरे हीं कुहरे हैं फिर भी ,धुल के मेले चारो ओर,
इस मंज़र में राह दिखाए ,कविता और फ़साना आज |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||

संस्कार का राम कहाँ है ,कृष्ण और बलराम कहाँ हैं ?
देव भूमि की भक्ति मूर्ति वो, लखन और हनुमान कहाँ हैं ?
अर्जुन का गांडीव कहाँ है ,जन कल्याणी शिव कहाँ है ?,
बुलंदी की भव्य -भाल की,भारत की वह नींव कहाँ है ?
भारत की उस दिव्य परंपरा, को फिर से गढ़ना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||

वेदऋचा ,गीता ,सीता को फिर से कौन बचाएगा ?
वेद व्यास और वाल्मीकि अवतार कहाँ ले पायेगा ?
हिंसा के इस दौर में ,गाँधी महावीर को ढूढ़ रहा ,
शांतिदूत बनकर गौतम- सा कौन यहाँ फिर आयेगा ?
संस्कृति की विस्मृत पृष्ठों को बार-बार पढ़ना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||

खुदीराम, भगत, चंद्रशेखर, जब धरती पर आते हैं |
मातृभूमि की बलिवेदी पर ,हँसकर प्राण लुटाते हैं |
पर देखो, बरसों से उनकी, कब्रों पे है धूल जमी ,
कुछ उनका हीं नाम बेचकर ,सत्ता का सुख पाते है |
राष्ट्रद्रोहियों ,गद्दारों का अंत, अभी करना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||

एक तरफ सीमा पर सैनिक ,राष्ट्र हित मर जाते हैं |
एक तरफ क्रिकेट के छक्के ,लाखों में बिक जाते हैं |
पर्दों के नकली हीरो ,आज 'आइकन' बनते हैं |
मातृभूमि के असली' नायक' ,अब भी मारे जाते हैं |
माँ का दूध पीया सच में तो ,माँ के हित मरना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||

वन्देमातरम खतरे में है ,हाय, हैलो में भूल गए|
इसी मंत्र का शंखनाद कर कितने फाँसी झूल गए |
इसी मंत्र से राणा ने घासों की रोटी खाई थी |
इसी मंत्र से शिवा ने ,दुश्मन को धुल चटाई थी |
इसी मंत्र से जन -जन की, पीड़ा को हरना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||

भौतिकता की चकाचौंध ने ,सबको इतना मस्त किया |
नैतिकता की साख गिराकर ,मूल्यों को क्षतिग्रस्त किया |
प्रगतिशीलता के प्रभाव ने ,अंतरिक्ष तक पहुँचाया,
पर धरती के उष्मित रिश्तों के, सूरज को अस्त किया |
शुष्क हृदय के रिश्तों में ,फिर प्रेम-नीर भरना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||

कुर्सी-कुर्सी खेल रहे हो ,सत्ता के जिस मेले में |
कितनों को बर्बाद किया है ,सोंचा कभी अकेले में |
तेरे जैसे दुस्सासन से, राजनीति बदनाम हुई ,
तेरी हीं चंगुल में फँसकर, आज़ादी ग़ुलाम हुई |
देश की आज़ादी लौटा दो, वरना तुझे मरना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||
मातृभूमि का सदा, सम्मान करना चाहिए |
इसकी रक्षा हित हमें, बलिदान करना चाहिए |
जिन शहीदों ने आज़ादी, दी हमें सौगात में ,
उन शहीदों का हमें, यशगान करना चाहिए |
कोई लड़े ना जाति, मज़हब ,प्रांत के अब नाम पर ,
सबको मिलाकर एक, हिंदुस्तान करना चाहिए |
आज भ्रष्टाचारियों से, राष्ट्र मर्माहत हुआ ,
उनका अब तिहाड़ में, स्थान करना चाहिए |.
खुद की नज़रों से खुद को छुपाते रहे |
झूठ दामन में अपने बसाते रहे |
जब भी सच ने दिखाया उन्हें आईना, 
आईनों पर हीं तोहमत लगाते रहे||
मित्रो का ऐतबार चाहिए |
स्नेह भरा व्यवहार चाहिए|
दिल से दिल की बात हो सके ,
प्यार भरा संचार चाहिए |
......................................................
[ सोच ] 1 
खुश्बुओं से तर हुई मधु पुष्प की तरह ,
सोच अच्छी है तो, उसे रूप दीजिये |
ये जिंदगी हो जाएगी, चन्दन-सुगंध सी, 
ज़रा दिल से उसे, प्यार-भरी धूप दीजिये


..................................................
[ सोच ] 2
सोच में भी सोच क्या है ,सोच देखिये |
लरज़ते अश्रुओं की वेदना में क्रौंच देखिये |
इस जिंदगी में दर्द के अहसास के लिए ,
इंसानियत के पाँव की हर मोंच देखिये |
सच का सूरज संग जो, लेकर चलेगा मान्यवर |
तपिश में उसकी वह , खुद भी जलेगा मान्यवर ||

सदियों का अनुभव ,जो बोया है वहीँ तू काटेगा |
नागफनियों से सदा काँटे मिलेगा मान्यवर |

जिसके दिल में पत्थरों- सी नफरतें बैठी हुईं,
ख़ाक उनसे प्यार का तोहफा मिलेगा ,मान्यवर |

आईना सच बोलता है और ये भी जानता ,
उसको तोहफे की जगह, तोहमत मिलेगा मान्यवर |

धर्म से निरपेक्ष होकर ,सत्य से जो कट गया ,
झूठे सपनों से नहीं, कुछ भी मिलेगा ,मान्यवर |

रेत और सीमेंट का सम्बन्ध एक -सत्रह का जब ,
कब तलक उस पुल का, जीवन चलेगा मान्यवर |

दूध तो है दूध, अपना खूं पिला के देख लें ,
आस्तीं का साँप तो केवल डंसेगा मान्यवर |
इन्सां को किसने हिन्दु- मुसलमां बना दिया |
फिर नफरतों से आग का तूफां बना दिया |

इन्सां को बनाना था इनसान दोस्तों ,
ज़रा सोंचिये कि हमने उसे क्या बना दिया |

प्रगति की अंधी दौड़ में भूलने लगे रिश्ते ,
निज स्वार्थ ने इनसान को ,हैवां बना दिया |

इनसान को इनसान बनाने के वास्ते ,
धरती पे ख़ुदा ख़ुद को हीं, एक माँ बना दिया |

रोते हुए बच्चे की ,उस जिद के सामने ,
कविता को अपनी हमने ,खिलौना बना दिया |