पूर्ण आज़ादी पाने को फिर शंखनाद करना होगा |वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||संस्कार का राम कहाँ है ,कृष्ण और बलराम कहाँ हैं ?
देव भूमि की भक्ति मूर्ति वो, लखन और हनुमान कहाँ हैं ?
अर्जुन का गांडीव कहाँ है ,जन कल्याणी शिव कहाँ है ?,
बुलंदी की भव्य -भाल की,भारत की वह नींव कहाँ है ?
भारत की उस दिव्य परंपरा, को फिर से गढ़ना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||
वेदऋचा ,गीता ,सीता को फिर से कौन बचाएगा ?
वेद व्यास और वाल्मीकि अवतार कहाँ ले पायेगा ?
हिंसा के इस दौर में ,गाँधी महावीर को ढूढ़ रहा ,
शांतिदूत बनकर गौतम- सा कौन यहाँ फिर आयेगा ?
संस्कृति की विस्मृत पृष्ठों को बार-बार पढ़ना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||
खुदीराम, भगत, चंद्रशेखर, जब धरती पर आते हैं |
मातृभूमि की बलिवेदी पर ,हँसकर प्राण लुटाते हैं |
पर देखो, बरसों से उनकी, कब्रों पे है धूल जमी ,
कुछ उनका हीं नाम बेचकर ,सत्ता का सुख पाते है |
राष्ट्रद्रोहियों ,गद्दारों का अंत, अभी करना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||
एक तरफ सीमा पर सैनिक ,राष्ट्र हित मर जाते हैं |
एक तरफ क्रिकेट के छक्के ,लाखों में बिक जाते हैं |
पर्दों के नकली हीरो ,आज 'आइकन' बनते हैं |
मातृभूमि के असली' नायक' ,अब भी मारे जाते हैं |
माँ का दूध पीया सच में तो ,माँ के हित मरना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||
वन्देमातरम खतरे में है ,हाय, हैलो में भूल गए|
इसी मंत्र का शंखनाद कर कितने फाँसी झूल गए |
इसी मंत्र से राणा ने घासों की रोटी खाई थी |
इसी मंत्र से शिवा ने ,दुश्मन को धुल चटाई थी |
इसी मंत्र से जन -जन की, पीड़ा को हरना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||
भौतिकता की चकाचौंध ने ,सबको इतना मस्त किया |
नैतिकता की साख गिराकर ,मूल्यों को क्षतिग्रस्त किया |
प्रगतिशीलता के प्रभाव ने ,अंतरिक्ष तक पहुँचाया,
पर धरती के उष्मित रिश्तों के, सूरज को अस्त किया |
शुष्क हृदय के रिश्तों में ,फिर प्रेम-नीर भरना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||
कुर्सी-कुर्सी खेल रहे हो ,सत्ता के जिस मेले में |
कितनों को बर्बाद किया है ,सोंचा कभी अकेले में |
तेरे जैसे दुस्सासन से, राजनीति बदनाम हुई ,
तेरी हीं चंगुल में फँसकर, आज़ादी ग़ुलाम हुई |
देश की आज़ादी लौटा दो, वरना तुझे मरना होगा |
पूर्ण आज़ादी पाने को फिर, शंखनाद करना होगा |
वीर शहीदों के जीवन- आदर्शों पर चलना होगा ||