Friday, January 25, 2019

गीतिका

बेंत अचानक फल गया।
खोटा सिक्का चल गया।

आग लगाकर खुद घर में,
कबिरा जिंदा जल गया।

धीरे धीरे झूठ मुल्क में,
सच को जैसे निगल गया।

खंजर-सा मौसम अद्भुत,
आत्मघात हित मचल गया।

भेड़ समझते थे जिसको ,
छुपा भेड़िया निकल गया।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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