बेंत अचानक फल गया। खोटा सिक्का चल गया।
आग लगाकर खुद घर में, कबिरा जिंदा जल गया।
धीरे धीरे झूठ मुल्क में, सच को जैसे निगल गया।
खंजर-सा मौसम अद्भुत, आत्मघात हित मचल गया।
भेड़ समझते थे जिसको , छुपा भेड़िया निकल गया।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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