राम राम सगरी मित्र लोगन के!आजु कुछ भासा बिग्यान के आधार पर हमार एगो विचार रउवा सबके सामने हाजिर बा।
शब्द खुरदुरा।लागेला बुरा।
शब्दन के महिमा अपरंपार होला।समय के साथ एकर अर्थ भी बदल जाला।आईं, एगो,दुगो शब्दन के अर्थ परिवर्तन के साथे वर्तमान में ओकर प्रयोग आ प्रवृति पर चर्चा कइल जाव।
'दोगला' शब्द के प्रचलन अपना समाज मे धड़ल्ले से करत देखल जाला।दोगला आदमी,दोगली राजनीति,दोगली बात,दोगला नेता,दोगली स्त्री आदि शब्दन के बहुते प्रयोग होला।वर्तमान में दुमुहाँ बात करे वाला या धोखा देबे वाला या अविश्वासी आदमी के संदर्भ में कइल जाला।भारत में पानी उबीछे खातिर बाँस के कमची से बनल टोकरी खातिर भी कहीं कहीं संज्ञा रूप में प्रयोग कईल गईल बा।एकरा के हिंदी भाषा के ही शब्द मानल गईल बा।ई फ़ारसी में पहुँच के घातक लड़ाई झगड़ा आ गारी बन जाले।आ एकर अर्थ बदल के वर्णशंकर,जारज(प्रेमी/आशिक़ से उतपन्न होखे वाला)हो जाला।
दोगला से मिलल जुलल शब्द एगो अउरी बा 'हरामजादा'।एकर प्रयोग भी गारी खातिर कईल जाला।एकर शाब्दिक अर्थ होला-हरम में जनम लेबे वाला।मुगल बादशाहन के हवसगाह रहे हरम।ओह हरम में हजारन मेहरारुअन के रखल जाव।रखेल (राखल औरत) एही के व्युत्पत्ति ह।एह स्त्रीयन से जनम लेबे वाला हरामजादा कहाव लो। 'हरामजादा' शब्द संज्ञा ह।जब ई शब्द प्रवृति बन जाला त हरामजदगी कहलाला।
राम मनोहर लोहिया जी के कहल ईयाद आ जाला कि तन के दोगला एक बार चलेला,बाकिर मन के दोगला बहुते घातक होलें।मन के दोगला भईल आदमी के आचरण में समा गईल।वर्तमान में ई शब्द प्रवृति के बतावेला।एकर अर्थ अब दू तरह के बात करे वाला या जेकरा कथनी आ करनी में बहुते अंतर होला,में बदल गईल बा। काहे कि आज अपना समाज में बहुते अइसन आदमी यानी मरद मेहरारू बाड़ें जे मुँह पर मीठा बोलेलें बाकिर पीछे से षडयंत्र करे से बाज ना आवेलें,मौका पावते पीठी पर छूरी भोंक देलें।अइसन भी नईखे कि अइसन आदमी में कवनो दोष बा,ई इनकर जनमजात सुभाव में बा जीवन के दिनचर्या में शामिल बा।दोगलई के बिना एह प्रवृति के आदमी रहीए ना सकेला।ई आदमी,समाज,देश,राष्ट्र केहू के संगे दोगलई करि सकेला।अइसन आदमी के दोगलई के कवनो सीमा तय नईखे।
मनोबैज्ञानिक लो अनुभव कईल कि कुछ लो परिस्थितिवश दोगलई करेके चाहेलें,बाकिर करि ना पावेलें,काहेकि उनका में दोगलई के प्रबृत्ति ना होला।प्रवृति रहला से ई काम आसानी से हो जाला।बाकिर प्रवृति में ना रहला के कारण बनावटीपन असहज कर देवेले।कबीरदास कहले बाड़े-"सांच बराबर तप नहीं,झूठ बराबर पाप।जाके हिरदय साँच है,वाके हिरदय आप।।"जेकरा हियरा में आप बाड़ें,ओकरा के उ दोगलई करे से रोक देलें।इतिहास में भी अइसन दोगलन के कमी नईखे।केतने राजा, महाराजा,यति-जति एह दोगलन के दोगलई के भेंट चढ़ि गइलें। दोगलन के ढूढ़ें खातिर कवनो दूर गइला के काम नईखे,आसे पास बाड़ें।
अइसन लोगन के चिन्ही पहिचानी आ तनी दूरे रहीं।एह तरह के लोग कब अचानक पीछे से छूरी घोंप दी ,कवनो
ठेकाना नईखे।ई भेड़ के खाल में छुपल भेड़िया हउवसन।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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