वंदे मातरम्!मित्रो!एक गीतिका सादर समर्पित है।
सच चुभता दर्पण होता है।
तप्त रेत का कण होता है।
अहंकार जब मन में छाए,
जीवन बस रावण होता है।
आँखों से संवाद प्रणय का,
निश्चित अद्भुत क्षण होता है।
सतत् प्रेम की अग्निशिखा में,
शीतल मन तर्पण होता है।
जड़,चेतन की पृष्ठभूमि पर,
जीवन इक विवरण होता है।
आज नहीं, सदियों का सच है,
भला,बुरा में रण होता है।
अँधियारा बढ़ने का कारण,
शायद संरक्षण होता है।
उदधि राम हित जब बाधा हो,
फिर तो वध का प्रण होता है।
पत्थर नहीं पुष्प घात से,
हृदय भूमि पर व्रण होता है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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