वन्दे मातरम्!मित्रो! आज एक मुक्तक हाजिर है। आपकी स्नेहिल टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
सियासत धन उगाही का महज प्रपंच है प्यारे!
लुटेरों का सरलतम,लोकतान्त्रिक मंच है प्यारे!
बड़े सम्मान से जीते हैं,संसद से सड़क तक ये,
कोई मंत्री,कोई मुखिया,कोई सरपंच है प्यारे!!
डॉ मनोज कुमार सिंह
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