वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। आपका क्या कहना है?
जुगनू आज खुद को,आफताब लिखते हैं।
कौए तखल्लुस अपना,सुरखाब लिखते हैं।
एक दर्द बयां करने में,बीत गई जिंदगी अपनी,
न जाने कैसे वे सैकड़ों,किताब लिखते हैं।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
(शब्दार्थ-आफताब-सूरज। तखल्लुस-उपनाम।
सुरखाब-दुनिया के सबसे सुन्दर पक्षियों में से एक)
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