Thursday, December 15, 2016

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। आपका क्या कहना है?

जुगनू आज खुद को,आफताब लिखते हैं।
कौए तखल्लुस अपना,सुरखाब लिखते हैं।
एक दर्द बयां करने में,बीत गई जिंदगी अपनी,
न जाने कैसे वे सैकड़ों,किताब लिखते हैं।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

(शब्दार्थ-आफताब-सूरज। तखल्लुस-उपनाम।
सुरखाब-दुनिया के सबसे सुन्दर पक्षियों में से एक)

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।

देखना तुम एकदिन,ये पिलपिला हो जाएगा।
कालेधन पर चोट का,गर सिलसिला हो जाएगा।
मुल्क में हर शजर पर,बेघर परिंदों के लिए,
धीरे-धीरे ही सही,एक घोंसला हो जाएगा।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

एक दोहा-

एक तरफ होती रही,......लम्बी रोज कतार।
पिछवाड़े से ले उड़े,........कुछ ने कोटि हजार।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दो दोहे

वन्दे मातरम्!मित्रो!दो दोहे हाजिर हैं। स्नेह सादर अपेक्षित है।

कालेधन के पक्ष में,जबसे खड़ा विपक्ष।
सूअर बाड़े सा दिखा,सारा संसद कक्ष।।

शर्म,हया को भूलकर,महज घात-प्रतिघात।
संसद का पर्याय अब,गाली,जूता,लात।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वन्दे मातरम्!एक दोहा हाजिर है।

कालेधन की चोट से,पप्पू हैं नासाज़।
झाड़ फूंक से चल रहा,जिनका आज इलाज।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

(नासाज़-बिमार)

क्षणिका

क्षणिका

जिसने
बैंक के पिछवाड़े से,
कमीशन पर
नए नोट हैक किया।
आयकर ने
उसे भी पकड़
कुछ ही समय में
गुलाबी से ब्लैक किया।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!एक मुक्तक हाजिर है। स्नेह अपेक्षित है।

बात अच्छी है या बुरी,सोंचना जरुरी है।
सही सन्दर्भ में,आलोचना जरुरी है।
किसी पर दोष मढ़ दें,इससे पहले जान लें हम,
अपने सामने इक,आईना जरुरी है।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।

गुस्सा आएगा,प्यार आएगा।
कोई न कोई ,गुबार आएगा।
कुछ खोकर तो देखो पहले,जिंदगी में,
सौ की जगह,हजार आएगा।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वन्दे मातरम्!मित्रो!वाराणसी प्रवास पर एक दोहा हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।

काशी अस्सी घाट पर,करके प्रातः स्नान।।
बाँट रहे हैं रिश्तों की,समधी द्वय मुस्कान।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।

कोई बुरा समझता है ,कोई अच्छा समझता है।
जितनी सोच है जिसकी,मुझे उतना समझता है।
भले दुनिया न समझे,फिर भी मेरी खुशकिस्मती ही है,
मुझे परिवार,मेरा घर,मेरा बच्चा समझता है।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।

न भाते हैं कभी सच के,सहज अंदाज उनको।
सभी अच्छे विचारों पर,भी है एतराज उनको।
न जाने खार क्यों खाये ही रहते,काठ के मुल्लू,
बड़े बेशर्म हैं,कहना पड़ा है आज उनको।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

बाबूजी के गीत

वन्दे मातरम्!आज 26 नवंबर है और आज ही मेरे बाबूजी श्री अनिरुद्ध सिंह बकलोल जी का जन्मदिन है।आज वे शरीर से मेरे पास नहीं हैं ,किन्तु उनका आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ रहता है और वे खुद मेरे अन्दर इस तरह रहते हैं कि मुझे कभी भी उनसे दूर होने का अहसास नहीं होता।चूँकि वे भोजपुरी और हिंदी के एक गंभीर कवि और साहित्यकार थे,इसलिए इस अवसर पर उनकी एक बहुत लोकप्रिय और भोजपुरी पत्रिका 'माटी के गमक' में छपी भोजपुरी रचना-
'मँहगी आ गरीबी' आपको समर्पित कर रहा हूँ।आप अगर संवेदनशील हैं तो ये रचना आपको जरुर झकझोरेगी।
आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

      "मँहगी आ गरीबी"

  (पति पत्नी के संवाद)
         पति
खाली भइल रस के गगरी,
सगरी सुख चैन कहाँ ले पराइल।
मँहगी के चलल कुछ गर्म हवा,
रस सींचल स्वर्ण लता मुरझाइल।
केरा के पात सा गात तोहार,
अरु लाल कपोलन के अरुनाई।
नैनन के पुतरी उतरी छवि,
याद परे पहिली सुघराई।।

           पत्नी
सब हास विलास के नाश भइल,
हियरा के हुलास हरल मँहगाई।
जवानी में ही बुढ़वा भइलs,
कि अभावे में बीति गइल तरुनाई।
धोतिया धरती ले छुआत चले,
केशिया लहरे सिर पै घुंघराले।
कतना गबरू रहलs पियवा,
जब याद परे त करेज में साले।।

             पति
आगि लगे मँहगी के तोरा,
सब शान गुमान पराइल हेठा।
धनिया मोरी सुखि के सोंठ भइल,
लरिका दुबराई के भइल रहेठा।
चोली पेवन्द पुरान भइल,
सुनरी चुनरी तोर झांझर भइले।
टुटि गइल करिहाई अरे हरजाई,
तोरा मँहगाई के अइले।
माघ के जाड़ पहाड़ भइल,
कउड़ा कपड़ा बनि के तन ढापे।
फाटि गइल कथरी सगरी,
पछुआ सिसिआत करेज ले काँपे।
धान गेहूँ कर बात कवन,
सपनो नहि आवे चना मसूरी के,
गरीबी गरे के कवाछ भइल,
अब का हम कहीं मँहगी ससुरी के।

             पत्नी
सुखल छाती के माँस छोरा,
छरिया छारियाकर नाहि चबईतें।
घीव घचोरे के ना कहिते,
महतारी माँस बकोटी ना खईतें।
जो जुरिते मकई थोरिका,
लरिका सतुआ सरपोटि अघइतें।
जो न जवान रहीत धियवा,
मँहगी जियवा के कचोटि ना जइते।

               पति
एक करे मनवा हमरा,
भउरी भरवा भर पेट जे खइतीं।
रनिया के मोरा छछने जियरा,
कतहीं से ले आ पियरी पहिरइतीं।
दिन बड़ा मनहूस होला,
लरिका के पड़ोसिन ले झरियावे।
कंहवा से इ आई गइल ढीढ़रा,
इ त खाते में आवेला,दीठ गड़ावे।
रोज कहे छउंड़ी छोटकी,
हमरा हरियर ओढ़नी एगो चाहीं।
बाबूजी तू केतना बिसभोरी,
कहेल त रोज ले आवेल नाहीं।
दीन बना के हे दीन सखा!
कतना जग में उपहास करवल।
एकहू सरधा जे पूरा न सकीं,
तब काहे के बेटी के बाप बनवल।।

रचनाकार-
अनिरुद्ध सिंह 'बकलोल'
ग्राम+पोस्ट-आदमपुर
थाना-रघुनाथपुर
जिला-सिवान,बिहार।

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। स्नेह दीजिएगा।

चोट लगी है जिनके,जिनके पिछवाड़े पर,
पागल हो सड़कों पर,नंगे नाच रहे हैं।
भरे पड़े काले धब्बों से,जिनके दामन,
वहीं लुटेरे नैतिक भाषण,बाँच रहे हैं।

*#नोटबंदी
डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो! आज एक मुक्तक हाजिर है। आपकी स्नेहिल टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

सियासत धन उगाही का महज प्रपंच है प्यारे!
लुटेरों का सरलतम,लोकतान्त्रिक मंच है प्यारे!
बड़े सम्मान से जीते हैं,संसद से सड़क तक ये,
कोई मंत्री,कोई मुखिया,कोई सरपंच है प्यारे!!

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज कुछ लोग रेल दुर्घटना पर भी सियासत करने से बाज नहीं आ रहे। चार पंक्तियाँ हाजिर हैं ऐसे लोगों के लिए।

यूँ हादसों और मौत पर,सियासत तो ना करो।
तुममें है गर इंसानियत तो बस दुआ करो।
गर चाहते हो गम को,मिटाना किसीका तुम,
दुःख दर्द में तो उनके,शामिल हुआ करो।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दो दोहे

वन्दे मातरम्!मित्रो!दो दोहे हाजिर हैं। स्नेह सादर अपेक्षित है।
                    1
जिसके दिल कालिख पुता,दूजे सोंच विवर्ण।
लोहा भरे दिमाग से,कैसे निकले स्वर्ण।
                    2
मन मुट्ठी में कीजिए,मिटा सोच से खोंट।
समझ बूझ रखिए कदम,नहीं लगेगी चोट।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज एक कुण्डलिया फिर हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

भक्त भक्त में फर्क है,रक्त रक्त में फर्क।
जो स्वारथ के भक्त हैं,करते बेड़ा गर्क।
करते बेड़ा गर्क,पहनकर नकली बाना।
नहीं दीखता फर्क,नहीं जाता पहचाना।
होती है पहचान,सदा ही बुरे वक्त में।
कौन शेर या स्यार,दिखाता भक्त भक्त में।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!एक कुण्डलिया हाजिर है।स्नेह सादर अपेक्षित है।

मोदी जी दीजै  जरा,उनका गला मरोड़।
शादी में खर्चे अभी,जिसने कई करोड़।
जिसने कई करोड़,आज इस बुरे वक्त में।
कभी न होता भाव,विलासी,राष्ट्रभक्त में।
इनकी भी दो खोद,जैसे अन्य की खोदी।
बोलेगा हर शख्स,आज से हर हर मोदी।। 

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक मुक्तक हाजिर है।बॉस की केवल चापलूसी करने वाले बुद्धिजीवियों के लिए यह सार्थक नहीं है।

केवल तेरी करूँ प्रशंसा,मुझमें वो गुण ख़ास नहीं।
पुरस्कार पाने की तुझसे,रही कभी भी आस नहीं।
सच को सच बोलेगी मेरी,कविता निशदिन दुनिया में,
सतत् अनाविल राष्ट्रभक्त हूँ,कुर्सी का क्रीतदास नहीं।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वन्दे मातरम्!मित्रो!इस दोहे के साथ साथ इस वीडियो को भी जरुर देखिए।

न कराहते बन पड़े,उगल न पाते राज।।
बवासीर सा सालता,कालाधन ये आज।

डॉ मनोज कुमार सिंह

तीन दोहे

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज बाजारवाद के युग में साहित्य की स्थिति पर तीन दोहे हाजिर हैं।
                  1
अब साहित्य न साधना,ना तप,ना आचार।
कवि,प्रकाशक,वितरक,करते बस व्यापार।।
                   2
डुब जाता तब काव्य का,प्रखर,दिव्य आदित्य।
किलो से बिकते जहाँ,भाव भरे साहित्य।
                      3
जिसे समझता था सदा,अच्छा रचनाकार।
जाति,धर्म औ लिंग का,निकला ठेकेदार।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।
स्नेह अपेक्षित है।

क्या लगाया ये,अचूक निशाना है!
कालाधन सब,आज कबाड़खाना है।
ग्रंथो का संदेश,अति सर्वत्र वर्जयेत्
संतुलन जिंदगी का,सही पैमाना है।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वंदे मातरम्!मित्रो!एक ताजा मुक्तक हाजिर है। टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

कालाधनियों का मिमियाना,देख रहा है देश।
नेता नगरी का चिल्लाना,देख रहा है देश।
कमर तोड़ दी इक झटके में,देश लूटने वालों की,
बिना मिलिट्री,पुलिस थाना,देख रहा है देश।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

बात ये आम है कि सरहदों पे,गोलियाँ चलतीं,
मगर कुछ लोग खाकर सो रहे,ले नींद की गोली।
कभी सोंचा नहीं था कि,ये ऐसा दिन भी आएगा,
तिजोरी में रखे धन की,जलेगी इस तरह होली।

डॉ मनोज कुमार सिंह

भोजपुरी मुक्तक

राम राम मित्रन के! जे आज तकले देश के लूटत रहे आज ओकरे घर में क़ानून डाका डाल दिहलस। अब बुझाते नईखे कि साँस नाक से लीं आ कि ????

माया,मोलायम सब अचके लुटइलें,
ममता लुटइली बजारी में।
सोनिया,केजरिया सब लुटि गइलें सेतिहे,
ललुआ भी बा अब लाचारी में।।

डॉ मनोज कुमार सिंह