Tuesday, February 4, 2014

वंदेमातरम् मित्रों !आज पुनः एक मुक्तक आपको समर्पित कर रहा हूँ ............आपका स्नेह टिप्पणी रूप में सादर अपेक्षित है .................

आज मजबूरियों की भीड़ है ,रस्ता नहीं दिखता |
कौन इंसान है जो दर्द में पिसता नहीं दिखता |
सलीबों पे चढ़ा अपनी ख़ुशी ,मायूस बैठे सब ,
जहाँ भी देखिये ,कोई यहाँ हँसता नहीं दिखता |

डॉ मनोज कुमार सिंह

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