वंदेमातरम् मित्रों !आज पुनः एक मुक्तक आपको समर्पित कर रहा हूँ ............आपका स्नेह टिप्पणी रूप में सादर अपेक्षित है .................
आज मजबूरियों की भीड़ है ,रस्ता नहीं दिखता |
कौन इंसान है जो दर्द में पिसता नहीं दिखता |
सलीबों पे चढ़ा अपनी ख़ुशी ,मायूस बैठे सब ,
जहाँ भी देखिये ,कोई यहाँ हँसता नहीं दिखता |
डॉ मनोज कुमार सिंह
आज मजबूरियों की भीड़ है ,रस्ता नहीं दिखता |
कौन इंसान है जो दर्द में पिसता नहीं दिखता |
सलीबों पे चढ़ा अपनी ख़ुशी ,मायूस बैठे सब ,
जहाँ भी देखिये ,कोई यहाँ हँसता नहीं दिखता |
डॉ मनोज कुमार सिंह
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