Tuesday, February 4, 2014

वंदेमातरम् मित्रो !आज एक भोजपुरी गीत
जिसे मैंने 'महँगाई' विषय पर 1990 में छात्र जीवन में लिखी थी,
आपको समर्पित ...............

[एगो गीत महँगाई पर [रचना काल 1990 में ]]
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तूरी दिहलस करिहाई रे महँगी के ज़माना |

रोज-रोज पेटवा के भुखिया सतावे |
बाबू पढ़े जाव नाहि पईसा अभावे |
छोटकी बबुनिया के देह पर ना कपडा ,
ओढ़नी त नईखे हमसे बडकी बतावे |
कहँवा से करी हम उपाई रे |
महँगी के ज़माना ........

गबरू जवान रहलें ,मुनिया के बाबू |
चढ़ले जवानियाँ में, थाकि गईल काबू |
छोड़ी के गईलन, जबसे कलकतवा |
अबहीं ले भेजलें ना, कवनो सनेसवा |
केकरा से दुःख, हम सुनाई रे |
महँगी के ज़माना ..............

केतना ले करीं हम, रोज मेहनतिया |
समझी ना दुनिया, ई हमरो बिपतिया |
सतुआ ले दुलम बा ,अउर का बताई ,
रोज-रोज आ जाले, कवनो अफातिया |
हम गरीबवन के, केहू ना सहाई रे |
महँगी के ज़माना ..........

बरछी सा छेदेला, माघ के बेयारिया |
फूस के पलानी बा ,खुलल दुअरिया |
कउड़ा के तापि-तापि ,राति सब बिताईं,
भूखल लईकवन के, कईसे सुताईं |
लउकत ना कवनो, उपाई रे |
महँगी के ज़माना ............

डॉ मनोज कुमार सिंह  

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