Tuesday, February 4, 2014



वंदेमातरम् मित्रों !आज आप सभी को बचपन को याद करते हुए एक'' गीत ''समर्पित कर रहा हूँ जिसे गुनगुना कर पढ़ें तो मज़ा आयेगा ..............

सुन प्यार भरे बचपन तुझसे ,
जब दूर कभी हम होते हैं |
जंगल में तेरी यादों के ,
हम चुपके-चुपके रोते हैं |

1
वो खेल खिलौने आज कहाँ ?
मन की मस्ती के साज कहाँ ?
है लाखों की अब भीड़ यहाँ ,
पर अपनों की आवाज कहाँ ?
जीवन की आपाधापी में ,
रिश्तों को बस हम ढोते हैं |
जंगल में तेरी यादों के ,
हम चुपके-चुपके रोते हैं |
2
माँ के आँचल की छाँव कहाँ ?
अब पंख लगे वो पाँव कहाँ ?
अलगू से जुम्मन की यारी ,
वो अद्भुत् मेरा गाँव कहाँ ?
टूटे वीणा के तारों-सा ,
बचपन तुझको अब खोते हैं |
जंगल में तेरी यादों के ,
हम चुपके-चुपके रोते हैं |
3
वो बाग़-बगीचों की रौनक |
वो रिश्तों की असली थाती |
जीवन की उर्जा कहाँ गई ,
गुल्ली- डंडा ,ओल्हा -पाती ,
वो ख्वाब सभी लगते जैसे ,
हाथों से उड़ते तोते हैं |
जंगल में तेरी यादों के ,
हम चुपके-चुपके रोते हैं |
4
वो होली का हुडदंग कहाँ ?
मन को रंग दे वो रंग कहाँ ?
था प्यार, मुहब्बत घर जैसा ,
ऐसे अपनों का संग कहाँ ?
अब तो घातों-प्रतिघातों से ,
पाए जख्मों को धोते हैं |
जंगल में तेरी यादों के ,
हम चुपके-चुपके रोते हैं |

डॉ मनोज कुमार सिंह 

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