Thursday, March 14, 2013

खच्चर तो खैर ठीक हैं घोड़े बनें मगर ,
गीदड़ भी यहाँ सिंह के चेहरे लगा लिए |
हिरन के कुलांचों को बेदर्दी से रौंद कर ,
गधों को सियासत ने तमगे थमा दिए |
आंसुओं में दर्द तो अक्सर बहे हैं |
हौसलों से जाने कितने डर बहे हैं |
सत्य ये भी है भागीरथ साधना से ,
पत्थरों के ह्रदय से निर्झर बहे हैं |
पतझर- सा हुआ मौसम, जब से बहार का ,
गुलशन में सारे, फूल और पत्ते उदास हैं |
जब काम से लौटी नहीं माँ ,शाम देर तक ,
अनहोनियों से घर में, बच्चे उदास हैं |
हमारी जिंदगी में, मजबूरियाँ क्यों हैं ?
इंसान से इंसान की, दूरियाँ क्यों है ?
जिसको समझा था, अपना दोस्त हमने ,
हमारी पीठ पर उसकी, छूरियाँ क्यों हैं ?
संकल्पों से निशदिन आँखें चार करो |
अपने नेक इरादों से खुद प्यार करो |
दुनिया क्या कहती है ,ये परवाह न कर,
दिल जो कहता है ,उसके अनुसार करो |
सूरज पैदा कर मन के गलियारों में ,
अंधियारों पर बेदर्दी से वार करो |
जीवन की सच्चाई से मुख मोड़ नहीं ,
संघर्षों के संग जीना स्वीकार करो |
लक्ष्य भेद करने का केवल मंत्र यहीं ,
शांत चित् हो मन को एकाकार करो |
है गुनाह गर प्यार आदमी से करना ,
तो 'मनोज' जीवन में बारंबार करो |
केवल अपनी खाल बचाना, उनकी आदत |
दूसरों पर इल्जाम लगाना, उनकी आदत |
प्रेम मुहब्बत महज खेल है, उनकी खातिर ,
रिश्तों में भी गणित लगाना, उनकी आदत |
मैनें सोचा बचा लिया है, उसने मुझको ,
बचने पर पल-पल मुरझाना ,उनकी आदत |
स्वार्थ पूर्ति में विश्वासों का, जाल बिछा कर ,
विश्वासों पर घात लगाना ,उनकी आदत |
सच्चाई से आँख मूंदकर, कौन बचा है ,
मुर्गे -सी हरकत बचकाना ,उनकी आदत |
सामने उनके कभी, रोता नहीं जब |
दर्द में भी धैर्य को, खोता नहीं जब |
वक्र होती त्योरियाँ ,देखी हैं उनकी ,
प्रार्थना के शिल्प में, होता नहीं जब |
उसे क्या मालूम, समंदर पार करना ,
जो लगाया है कभी, गोता नहीं जब |
लक्ष्य तो पाया वहीं , जो जिंदगी में ,
साधना की राह पर ,सोता नहीं जब |
कैसे कटेगा, घृणा की खेत से तू ,
प्रेम की फसलें कभी, बोता नहीं जब|
चलो इक प्यार से गुलदान बनाएं यारों |
ह्रदय को भाव के फूलों से सजायें यारों |
रंग भरकर हज़ारों आज दिल की बस्ती में ,
एक दरिया यहाँ खुशबू की बहायें यारों |
हरेक चीज को एक खबर बना देते हैं |
जिसे भी चाहते हैं शिखर बना देते हैं |
उनके स्पर्श में जादू भरा पिटारा है ,
ज़िंदा इंसान को भी पत्थर बना देते हैं |
कुछ आज तो कुछ कल करना |
धीरे-धीरे सवालों को हल करना |
वक्त के पीठ पर थपकियाँ देकर ,
मुहब्बत जिंदगी से पल-पल करना |
जहर भी तब तलक, जहर नहीं होता |
मुकम्मल जब तलक, असर नहीं होता |

ग़मों की आँच पर, आँसू अगर नहीं उबले ,
ऐसे इंसान में समझो, जिगर नहीं होता |

बिना अहसास के, ये जिंदगी अधूरी है ,
कोई मकाँ जैसे एक, घर नहीं होता |

चरागे इश्क दिल में, जो भी जला लेता है ,
उसे तो मौत से भी, डर नहीं होता |


जिसमें हौसला है आसमां को चूमनेकी,


उसकी उड़ान को जरूरी, पर नहीं होता |

.पा के दुनिया भर की दौलत भी 'मनोज ' 


 क्यों जिंदगी में इंसान का गुजर नहीं होता ..



कलम की धार से हर बार रहनुमाई कर |


डरे से लोग हैं ,तू हौसला आफजाई कर |


बड़ा तूफ़ान भी रस्ता बदल के कट लेगा ,


अंधेरों से महज़ जूगनू -सा तू लड़ाई कर |
कर सके फिर से निर्बल से चंगा तुम्हें |
भेंट करता हूँ छंदों की गंगा तुम्हें |
जो शहीदों की कुर्बानियों से मिला ,
गर्व से झूमता एक तिरंगा तुम्हें |
जिनकी साज़िश से गुलाम है भारती ,
ऐसे चेहरों को करना है नंगा तुम्हें |
जाति ,भाषा तथा धर्म के नाम पर ,
रोकना है यहाँ आज दंगा तुम्हें |
आज संकल्प की मुट्ठियाँ भींच लो ,
दुश्मनों से भी लेना है पंगा तुम्हें |
......................डॉ मनोज कुमार सिंह

मेरी तन्हाईयों में याद बनकर, तू हीं क्यों आता |

ख्वाबों में मेरे एक चाँद बनकर, तू हीं क्यों आता |

बता दे हे अलौकिक चेतना, मेरे ह्रदय में तू ,

सुरीली बाँसुरी अनुनाद बनकर, तू हीं क्यों आता |

समझ जब भी थकी मेरी, बताने को मुझे फिर भी ,

सहज अहसास- सा अनुवाद बनकर ,तू हीं क्यों आता |

टूटे रिश्ते हैं जब औ शब्द सारे, मौन बैठे हैं ,

मेरे शब्दों में फिर संवाद बनकर, तू हीं क्यों आता |

मुहब्बत की रूहानी औ रूमानी, रूप लेकर तू ,

शीरी के गाँव में फरहाद बनकर, तू हीं क्यों आता |

सृजन की क्यारियाँ अंतस में, जब भी शुष्क हो जातीं ,

उगाने को नया कुछ, खाद बनकर ,तू हीं क्यों आता |


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जवां-जवां सा एक खुमार ,उनकी नज़रों में है |

कुछ मुहब्बत ,कुछ करार ,उनकी नज़रो में है |

कब से पलकें बिछा के, अपने दर पे बैठे वो ,

एक बेसब्र इंतज़ार ,उनकी नज़रों में है |

गुनगुनी धूप-सी मुस्कान की लकीरों में ,

दिख रहा प्यार का इजहार, उनकी नज़रों में है |

पाँव पड़ते नहीं, सीधे ज़मीं पे देखो ना ,

अल्हडी उम्र का इक भार, उनकी नज़रों में है |

इक चंचल हिरन को, कैद करके रखा है ,

एक मज़बूत कारागार, उनकी नज़रों में है |

तोड़ देती हरेक बांध, सबके संयम की ,

एक सैलाब- सी रफ़्तार ,उनकी नज़रों में है |

मिलाकर नज़र उनसे, मैंने सोचा दूर हो लूँ ,

उलझ कर रह गए हर बार ,उनकी नज़रों में हैं |