मेरी तन्हाईयों में याद बनकर, तू हीं क्यों आता |
ख्वाबों में मेरे एक चाँद बनकर, तू हीं क्यों आता |
बता दे हे अलौकिक चेतना, मेरे ह्रदय में तू ,
सुरीली बाँसुरी अनुनाद बनकर, तू हीं क्यों आता |
समझ जब भी थकी मेरी, बताने को मुझे फिर भी ,
सहज अहसास- सा अनुवाद बनकर ,तू हीं क्यों आता |
टूटे रिश्ते हैं जब औ शब्द सारे, मौन बैठे हैं ,
मेरे शब्दों में फिर संवाद बनकर, तू हीं क्यों आता |
मुहब्बत की रूहानी औ रूमानी, रूप लेकर तू ,
शीरी के गाँव में फरहाद बनकर, तू हीं क्यों आता |
सृजन की क्यारियाँ अंतस में, जब भी शुष्क हो जातीं ,
उगाने को नया कुछ, खाद बनकर ,तू हीं क्यों आता |
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जवां-जवां सा एक खुमार ,उनकी नज़रों में है |
कुछ मुहब्बत ,कुछ करार ,उनकी नज़रो में है |
कब से पलकें बिछा के, अपने दर पे बैठे वो ,
एक बेसब्र इंतज़ार ,उनकी नज़रों में है |
गुनगुनी धूप-सी मुस्कान की लकीरों में ,
दिख रहा प्यार का इजहार, उनकी नज़रों में है |
पाँव पड़ते नहीं, सीधे ज़मीं पे देखो ना ,
अल्हडी उम्र का इक भार, उनकी नज़रों में है |
इक चंचल हिरन को, कैद करके रखा है ,
एक मज़बूत कारागार, उनकी नज़रों में है |
तोड़ देती हरेक बांध, सबके संयम की ,
एक सैलाब- सी रफ़्तार ,उनकी नज़रों में है |
मिलाकर नज़र उनसे, मैंने सोचा दूर हो लूँ ,
उलझ कर रह गए हर बार ,उनकी नज़रों में हैं |