वंदे मातरम्!मित्रो!अपनी एक कविता समर्पित कर रहा हूँ।इसे पढ़कर आप अपने विचारों से भी मुझे अवगत जरूर कराएँ।💐👏👏
★राष्ट्रीय जीवन के कैनवास पर★
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●-/ डॉ मनोज कुमार सिंह
तोड़ने होंगे वे सारे स्तूप
जो गुलामी की जंजीरों में
जकड़े हैं आज भी
मीनारों को,विचारों को।
ढहाने होंगे
उन सभी अकादमिक संस्थानों को
जो गाते आ रहे हैं चारण गीत
माओं,लेनिनों,स्टालिनों,कार्लमार्क्सों के।
कुचलने होंगे उन
सभी मंसूबों को
जो देश की पीठ पर
मारते रहते हैं खंजर।
मिटाने होंगे
वे जातिवादी और मज़हबी अँधियारे
जिसमें घृणा में अंधे और कुंठित
जहरीले नाग
डसते रहते हैं पल-पल
मुल्क के आत्मीय रिश्तों को।
हटाने होंगे वे सारे धुन
जो विदेशी चाटुकारिता का
करते हैं पोषण
और
देसी धुनों का बहिष्कार।
खदेड़ने होंगे उन सभी
मुखौटेधारी भेड़ियों को
जो छिपकर करते हैं
पीछे से वार
देश की अखंडता पर।
याद करने होंगे
उन आजादी के दीवानों को
जो मातृभूमि की
गुलामी की बेड़ियों को
काटते-काटते
हो गए थे शहीद।
उठाने होंगे वे सारे कदम
जो धीरे-धीरे खोई हुई
अस्मिता और स्वत्व को
ढूढ़ कर प्रतिष्ठापित करे
नई आजादी की तस्वीर,
फैलाये अपनी स्वायत्तता की
चाँदनी
मन के विस्तृत फलक पर।
जोड़ने होंगे मन के तार
सिलने होंगे मन की फटी चादर
मिलाने होंगे कदम से कदम
गाने होंगे
मातृभूमि के अमृतगान
फैलाने होंगे
प्रेमपुष्प की आत्मीय सुगंध
जन-जन के मन में।
रचने होंगे
विश्वास के सूरज
स्नेह के बरसते बादल
इन्द्रधनुषी स्वप्न
राष्ट्रीय जीवन के कैनवास पर।।
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