वन्देमातरम्!मित्रो!मेरी एक छोटी कविता समर्पित है-
जीवन-पथ पर
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असत्य की राह पर
चलने से अच्छा है
सत्य के रास्ते पर चलकर
असफल हो जाना।
खो जाना उन बीहडों में
जहाँ से लौटने की गुंजाइश न बचे।
लौटे तो मरे
लोग तुम्हें ढूढ़ने जाएँ
पर तुम न मिलो,
मिले तो मरे
मरने के लिए
सांस बंद करने की जरूरत नहीं
बस जरूरत के मुताबिक
धीरे धीरे डूब जाना
अविश्वास के अंधे कूप में
तैरना कुंठाओं की काली नदी में
उगना घृणा के खेत मे
ओढ़ लेना स्वार्थ की चादर
अपनी आत्मा की देह पर
पहन लेना बर्फ के चश्मे
अपनी सोच की ठंडी आँखों पर
फिर देखना तुम धीरे-धीरे मर जाओगे
तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि
कब मर गए
न कोई दर्द न तकलीफ़
मगर तुम्हें जीना होगा
असफलता की सीढ़ियों से
नीचे उतरना होगा
धीरे-धीरे सच की खुरदरी जमीन पर
चलना होगा
अनवरत ससीम से असीम की ओर
यही है असली जीवन का पथ।
●-/ डॉ मनोज कुमार सिंह
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