1-
पाला था जिनको, कितने अरमान सजाकर ,
करता नहीं जो अपने, माँ -बाप का लिहाज़ ।
बेशर्मियों के दौर में, मैं क्या कहूँ जनाब ,
मिलता नहीं यहाँ अब, किसी नाप का लिहाज़ ।
पल-पल में डँसने वाले, इंसान से अधिक ,
अच्छा हीं नहीं बेहतर, है साँप का लिहाज़ ।
घुघरु ने पाई शोहरत, महफ़िल में सरेयाम,
पाँवो ने किया जबकी, हर थाप का लिहाज़।
रिश्तों को आजमाना आसान है 'मनोज',
रिश्तों को पर निभाना, है ताप का लिहाज़।
2-
छोटी सी औकात है लेकिन, झूठी शान दिखाते हैं ।
आत्मप्रकाशन करने में हीं, सारा समय बिताते हैं।
फेसबुक पर विज्ञापन का ,है एक ऐसा दौर चला ,
चार कवि मिलकर आपस में, विश्व कवि बन जाते हैं।
सूरदास ,तुलसी ,कबीर को, पढ़कर कुछ परदेश गए ,
बाज़ारों में रख कर उनको, डॉलर खूब कमाते हैं ।
मौलिकता का मूल सिपाही ,धूल चाटता सड़कों पर,
चोरों को देखा मंचों पर, गा-गाकर छा जाते हैं ।
3-
अब हो गया है आदमी, दूकान की तरह ।
बिकता है जहाँ प्यार भी, सामान की तरह ।
बेईमानियों का व्याकरण ,अब आचरण हुआ ,
ओढ़ा है जिसे आदमी, ईमान की तरह ।
पहचानना भी मुश्किल, मुखौटों के दौर में ,
दिखता है भेड़िया भी, इंसान की तरह ।
जो देश अपनी बेटियों को, लाश बना दे,
वह देश नहीं देश है, हैवान की तरह ।
खादी औ खाकियों से, विश्वास उठ चुका ,
लगती हैं राष्ट्र भाल पे, अपमान की तरह ।
है अजनबी सा जी रहा ,दीवार ओढ़कर ,
अपने हीं घर में आदमी मेहमान की तरह ।
4-
एफ डी आइ के बहाने देखिये ,
गिरगिटों की चांदियाँ होने लगी हैं ।
क्या सही है क्या गलत मतलब नहीं ,
स्वार्थ में गुटबंदियां होने लगी है ।
भाव से मृत शब्द का पत्थर लिए ,
काव्य में तुकबन्दियाँ होने लगी है।
इस सियासत का करिश्मा देखिये ,
राम रावण संधियाँ होने लगी है ।
राजपथ की रौनकें जबसे बढ़ीं ,
गुम यहाँ पगडंडियाँ होने लगीं है ।
आम जन के दर्द को महसूस करके ,
आज गीली पंक्तियाँ होने लगीं हैं ।
5-
अब काफी मशहूर हो रहे, सारे चोर उचक्के लोग ।
सज्जन तो गुमनाम हो गए, नाम कमाए छक्के लोग ।
एक तरफ सुविधाओं में पलते कुत्ते दरबारों में ,
एक तरफ सडकों पर खाते फिरते रहते धक्के लोग ।
श्रद्धा औ विश्वास देश की सदियों से पूजित नारी,
आज मसाला विज्ञापन की देख हुए भौचक्के लोग ।
संस्कार का दीपक फिर भी बचा हुआ है कवियों में ,
कविताओं से फैलाते हैं प्रेम ज्योत्स्ना पक्के लोग ।
6-
अब राम का पद चिह्न , मिटाने लगे कुछ लोग ।
रावन की फिर से लंका , बसाने लगे कुछ लोग ।।
संगीत इस तरह कुछ , अंदाज़े-बयां कुछ ,
अब राष्ट्रगान पॉप में , गाने लगे कुछ लोग ।।
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का लाभ उठाकर ,
गाँधी को गालियों से सजाने लगे कुछ लोग ।
टूजी हो ,कालाधन हो,या आदर्श मामला ,
सच्चाईयों पे पर्दा, लगाने लगे कुछ लोग ।
7-
इन्सां को किसने हिन्दु- मुसलमां बना दिया |
फिर नफरतों से आग का तूफां बना दिया |
इन्सां को बनाना था इनसान दोस्तों ,
ज़रा सोंचिये कि हमने उसे क्या बना दिया |
प्रगति की अंधी दौड़ में भूलने लगे रिश्ते ,
निज स्वार्थ ने इनसान को ,हैवां बना दिया |
इनसान को इनसान बनाने के वास्ते ,
धरती पे ख़ुदा ख़ुद को हीं, एक माँ बना दिया |
रोते हुए बच्चे की ,उस जिद के सामने ,
कविता को अपनी हमने ,खिलौना बना दिया |
8-
सच का सूरज संग जो, लेकर चलेगा मान्यवर |
तपिश में उसकी सदा , खुद भी जलेगा मान्यवर ||
सदियों का अनुभव ,जो बोया है वहीँ तू काटेगा |
नागफनियों से सदा काँटा मिलेगा मान्यवर |
जिसके दिल में पत्थरों- सी नफरतें बैठी हुईं,
ख़ाक उनसे प्यार का तोहफा मिलेगा ,मान्यवर |
आईना सच बोलता है और ये भी जानता ,
उसको तोहफे की जगह, चाँटा मिलेगा मान्यवर |
धर्म से निरपेक्ष होकर ,सत्य से जो कट गया ,
झूठे सपनों से नहीं, कुछ भी मिलेगा ,मान्यवर |
रेत और सीमेंट का सम्बन्ध एक -सत्रह का जब ,
कब तलक उस पुल का, जीवन चलेगा मान्यवर |
दूध तो है दूध, अपना खूं पिला के देख लें ,
आस्तीन का साँप तो केवल डंसेगा मान्यवर |
9-
तेरी सोच का इतना बड़ा कायल हुआ हूँ मैं
इस जिंदगी में तेरा अमल सोच रहा हूँ |
कीचड़ भरे माहौल को तब्दील कर सकूँ ,
हर सांस में खुशबु का कँवल सोच रहा हूँ ।
हर तिफ्ल की मुस्कान से दुनिया बची हुई ,
मुस्कान है खुदा का फज़ल सोच रहा हूँ |
वैशाखियों के बल पे मंजिल जो पा गया ,
कितना है जिंदगी में सफल सोच रहा हूँ|
जो दे सके चुनौती हैवां को सरेआम ,
इन्सां की हुकूमत की दखल सोच रहा हूँ |
कुछ दे सकूँ दुनिया को इस दौर में 'मनोज' ,
मैं प्यार की खुशरू -सी ग़ज़ल सोच रहा हूँ |
10-
आओ कुछ हम काम की बातें करें ।
सुबह की और शाम की बातें करें ।
जिंदगी का क्या भरोसा ,इसलिए ,
हम खुदा के नाम की बातें करें ।
फूल, चिड़िया, पेड़, बच्चों की हँसी,
प्यार के पैगाम की बातें करें ।
जब तलक इंसानियत खतरे में है ,
ना कभी आराम की बातें करें ।
कुर्सियों से अब भरोसा छोडिये ,
खुद हीं हम आवाम की बातें करें ।
गिरगिटों के रंग को पहचान कर ,
राष्ट्रहित परिणाम की बातें करें।
नग्नता-से पूर्ण फैशन त्यागकर,
फिर से राधे-श्याम की बातें करें ।
हिन्दू मुस्लिम एकता के वास्ते ,
तुलसी औ खैयाम की बातें करें ।
चढ़ सके फाँसी यहाँ अफज़ल गुरु ,
हर गली कोहराम की बातें करें ।
11-
डर्टी -डर्टी पिक्चर देखा ,सत्ता में तो अक्सर देखा ।
विश्वासों के पुनीत हस्त में फूल सरीखा पत्थर देखा ।
घोषित है खुश हाल आदमी ,गज़ट-बज़ट के पन्नों में ,
सडकों पर बदहाल आदमी ,जीता है हँसकर देखा ।
भरी अदालत सच बोला था ,तब से उसका पता नहीं ,
वो भी तो बर्बाद हो गए ,जिसने वो मंज़र देखा ।
आसमान तक पहुँचा था ,नादान परिंदा बसने को ,
आप बताएं आसमान का ,अब तक कोई घर देखा ।
12-
हर भूखे की भूख मिटाना ,अच्छा लगता हैं |
हर चेहरे पे चाँद उगाना ,अच्छा लगता है |
अभी-अभी रोता वो बच्चा, माँ को पाकर खुश लगता ,
माँ का उसको दूध पिलाना ,अच्छा लगता है |
बच्चे तो बच्चे होते हैं, भले बात वे ना मानें ,
फिर भी बच्चों को समझाना ,अच्छा लगता है |
पाकर खोना ,खोकर पाना, है जीवन की विडंबना,
रोते-रोते फिर मुस्काना ,अच्छा लगता है |
चिड़ियों के कलरव ,मधुकर के गुंजन से भी मधुर ध्वनी ,
नन्हें बच्चों का का तुतलाना ,अच्छा लगता है |
13-
खुरच दे झूठ का चेहरा सच की बानी लिखना |
मरी -सी जिंदगी में जोश- रवानी लिखना |
चुनौती दे रहा हूँ लिख सको, तो लिखना तुम ,
घृणा की आँख में मुहब्बत रूहानी लिखना |
रंगों - खुश्बू हो ,जब भी अल्हड मस्ती हो ,
उस क्षण को, खुबसूरत जवानी लिखना ।
मैं कर न सका और कुछ,तो प्यार कर लिया ,
मेरी जिंदगी की ये सब, नादानी लिखना ।
जब उदास होना ,जिंदगी की बेरुखी से ,
उस वक्त कुछ, कविता और कहानी लिखना ।
14-
गज़नी व गोरी ,हज़ारों ने लूटा |
अंग्रेजों के संग, जमींदारों ने लूटा |
किसने नहीं, देश लूटा है यारों ,
सत्ता के सब, रिश्तेदारों ने लूटा |
बाजार के, मस्त अंगड़ाईयों से ,
लुभा के हमें, साहूकारों ने लूटा |
लड़की बलत्कृत को, पहले दिखाकर ,
टीवी टीआरपी, अखबारों ने लूटा |
जिन्हें सौंप दौलत, सोया देश अपना ,
उन्हीं रक्षकों ,पहरेदारों ने लूटा |
15-
सच बोलूं दिल मिले ना मिले ,मिलना एक बहाना आज |
मित्रता की बनी कसौटी, केवल हाथ मिलाना आज |
कौन निभाये, किसको फुर्सत ,तीव्र गति कि दुनिया में ,
रिश्तों के दर्पण में देखा ,अपनापन अनजाना आज |
वेश्या की मुस्कान लिए है ,संबंधों की डोर यहाँ ,
करवट बदली ,ग्राहक बदले ,धंधा वहीँ पुराना आज |
नैतिकता ,ईमान ,धर्म आहत हैं ,उनकी महफ़िल में ,
जाल फ़रेबी ,दंभ झूठ सब ,पहने सच का बाना आज |
द्रौपदी के चिर हरण में ,चले जानवर इन्सां बन,
अस्मत कितनी चढ़ी दाँव पर,गिनना और गिनाना आज |
कुहरे हीं कुहरे हैं फिर भी ,धुल के मेले चारो ओर,
इस मंज़र में राह दिखाए ,कविता और फ़साना आज |
16-
मातृभूमि का सदा, सम्मान करना चाहिए |
इसकी रक्षा हित हमें, बलिदान करना चाहिए |
जिन शहीदों ने आज़ादी, दी हमें सौगात में ,
उन शहीदों का हमें, यशगान करना चाहिए |
कोई लड़े ना जाति, मज़हब ,प्रांत के अब नाम पर ,
सबको मिलाकर एक, हिंदुस्तान करना चाहिए |
आज भ्रष्टाचारियों से, राष्ट्र मर्माहत हुआ ,
उनका अब तिहाड़ में, स्थान करना चाहिए |.
17-
मंचों के कवि मंचों तक रह जाते हैं |
छंदों के कवि छंदों तक रह जाते हैं |
ताली ,यश औ वाह-वाह की चाहत में ,
कंधों के कवि ,कंधों तक रह जाते हैं |
परपीड़ा जो समझ सके, न देख सके ,
अंधों के कवि अंधों तक रह जाते हैं |
कलम बेच कोई भले तमगा पाले ,
धंधों के कवि धंधों तक रह जाते हैं |
छंद सुना के चार जो झंडा गाड़ रहे ,
झंडों के कवि झंडों तक रह जाते हैं |
सूर कबीर तुलसी तो सदियों के मानक ,
पंडों के कवि पंडों तक रह जाते हैं |
फेसबुक पर भेंड -झुंड- से कवि मिले ,
झुंडों के कवि झुंडों तक रह जाते हैं|
18-
तू ज्ञान अपना ,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |
तू अभिमान अपना ,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |
तू क्या देगा किसी को, घृणा के सिवा जिंदगी में ,
ये सम्मान अपना ,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |
जब आसमान हीं , उड़ान का दुश्मन हो जाये ,
वो आसमान अपना,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |
इन्सान इन्सान होता है महज़, हमें मालूम है ,
तू हिन्दू ,मुसलमान अपना,अपने पास रख,तेरी ऐसी की तैसी।
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