Thursday, February 16, 2023

गीतिका मनोज की -(भाग-3)

गीतिका मनोज की -(भाग-3)

1-
पाला था जिनको, कितने अरमान सजाकर ,
करता नहीं जो अपने, माँ -बाप का लिहाज़ ।

बेशर्मियों के दौर में, मैं क्या कहूँ जनाब ,
मिलता नहीं यहाँ अब, किसी नाप का लिहाज़ ।

पल-पल में डँसने वाले, इंसान से अधिक ,
अच्छा हीं नहीं बेहतर, है साँप का लिहाज़ ।

घुघरु ने पाई शोहरत, महफ़िल में सरेयाम,
पाँवो ने किया जबकी, हर थाप का लिहाज़।

रिश्तों को आजमाना आसान है 'मनोज', 
रिश्तों को पर निभाना, है ताप का लिहाज़।


2-
छोटी सी औकात है लेकिन, झूठी शान दिखाते हैं ।
आत्मप्रकाशन करने में हीं,  सारा समय बिताते हैं।

फेसबुक पर विज्ञापन का ,है एक ऐसा दौर चला ,
चार कवि मिलकर आपस में, विश्व कवि बन जाते हैं।

सूरदास ,तुलसी ,कबीर को, पढ़कर कुछ परदेश गए ,
बाज़ारों में रख कर उनको, डॉलर खूब कमाते हैं ।

मौलिकता का मूल सिपाही ,धूल चाटता सड़कों पर,
चोरों को देखा मंचों पर, गा-गाकर छा जाते हैं ।


3-
अब हो गया है आदमी, दूकान की तरह ।
बिकता है जहाँ प्यार भी, सामान की तरह ।

बेईमानियों का व्याकरण ,अब आचरण हुआ ,
ओढ़ा है जिसे आदमी, ईमान की तरह ।

पहचानना भी मुश्किल, मुखौटों के दौर में ,
दिखता है भेड़िया भी, इंसान की तरह ।

जो देश अपनी बेटियों को, लाश बना दे,
वह देश नहीं देश है, हैवान की तरह ।

खादी औ खाकियों से, विश्वास उठ चुका ,
लगती हैं राष्ट्र भाल पे, अपमान की तरह ।

है अजनबी सा जी रहा ,दीवार ओढ़कर ,
अपने हीं घर में आदमी मेहमान की तरह ।


4-
एफ डी आइ के बहाने देखिये ,
गिरगिटों की चांदियाँ होने लगी हैं ।

क्या सही है क्या गलत मतलब नहीं ,
स्वार्थ में गुटबंदियां होने लगी है ।

भाव से मृत शब्द का पत्थर लिए ,
काव्य में तुकबन्दियाँ होने लगी है।

इस सियासत का करिश्मा देखिये ,
राम रावण संधियाँ होने लगी है ।

राजपथ की रौनकें जबसे बढ़ीं ,
गुम यहाँ पगडंडियाँ होने लगीं है ।

आम जन के दर्द को महसूस करके ,
आज गीली पंक्तियाँ होने लगीं हैं ।


5-
अब काफी मशहूर हो रहे, सारे चोर उचक्के लोग ।
सज्जन तो गुमनाम हो गए, नाम कमाए छक्के लोग ।

एक तरफ सुविधाओं में पलते कुत्ते दरबारों में ,
एक तरफ सडकों पर खाते फिरते रहते धक्के लोग ।

श्रद्धा औ विश्वास देश की सदियों से पूजित नारी,
आज मसाला विज्ञापन की देख हुए भौचक्के लोग ।

संस्कार का दीपक फिर भी बचा हुआ है कवियों में ,
कविताओं से फैलाते हैं प्रेम ज्योत्स्ना पक्के लोग ।


6-
अब राम का पद चिह्न , मिटाने  लगे कुछ लोग   ।
रावन की फिर से लंका , बसाने लगे कुछ लोग ।।

संगीत इस तरह कुछ , अंदाज़े-बयां कुछ ,
 अब राष्ट्रगान पॉप में , गाने लगे कुछ लोग ।।

अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का लाभ उठाकर ,
गाँधी  को गालियों से सजाने लगे कुछ लोग ।

टूजी हो ,कालाधन हो,या आदर्श मामला ,
सच्चाईयों पे पर्दा, लगाने लगे कुछ लोग ।


7-
इन्सां को किसने हिन्दु- मुसलमां बना दिया |
फिर नफरतों से आग का तूफां बना दिया |

इन्सां  को बनाना  था  इनसान  दोस्तों ,
ज़रा सोंचिये कि हमने उसे क्या बना दिया |

प्रगति की अंधी दौड़ में भूलने लगे रिश्ते ,
निज स्वार्थ ने इनसान को ,हैवां बना दिया |

इनसान को इनसान बनाने के वास्ते ,
धरती पे ख़ुदा ख़ुद को हीं, एक  माँ बना दिया | 

रोते हुए बच्चे की ,उस जिद के सामने ,
कविता को अपनी हमने ,खिलौना बना दिया |



8-
सच का सूरज संग जो, लेकर चलेगा मान्यवर |
तपिश में उसकी सदा  , खुद भी जलेगा मान्यवर ||

सदियों का अनुभव ,जो बोया है वहीँ तू काटेगा |
नागफनियों से सदा काँटा  मिलेगा मान्यवर |

जिसके दिल में पत्थरों- सी नफरतें बैठी हुईं,
ख़ाक उनसे प्यार का तोहफा मिलेगा ,मान्यवर |

आईना सच बोलता है और ये भी जानता ,
उसको तोहफे की जगह, चाँटा  मिलेगा मान्यवर |

धर्म से निरपेक्ष होकर ,सत्य से जो कट गया ,
झूठे सपनों से नहीं, कुछ भी मिलेगा ,मान्यवर |

रेत और सीमेंट का सम्बन्ध एक -सत्रह का जब ,
कब तलक उस पुल का, जीवन चलेगा मान्यवर |

दूध तो है दूध, अपना खूं पिला के देख लें ,
आस्तीन का साँप तो केवल डंसेगा मान्यवर |

9-

तेरी सोच का इतना बड़ा कायल हुआ हूँ मैं
 इस जिंदगी में तेरा अमल सोच रहा हूँ |

कीचड़ भरे माहौल को तब्दील कर सकूँ ,
हर सांस में खुशबु का कँवल सोच रहा हूँ ।

हर तिफ्ल की मुस्कान से दुनिया बची हुई ,
मुस्कान है खुदा का फज़ल सोच रहा हूँ |

वैशाखियों के बल पे मंजिल जो पा गया ,
कितना है जिंदगी में सफल सोच रहा हूँ|

जो दे सके चुनौती हैवां को सरेआम ,
इन्सां की हुकूमत की दखल सोच रहा हूँ | 

कुछ दे सकूँ दुनिया को इस दौर में 'मनोज' ,
मैं प्यार की  खुशरू -सी ग़ज़ल सोच रहा हूँ |


10-
आओ कुछ हम काम की बातें करें ।
सुबह की और शाम की बातें करें ।

जिंदगी का क्या भरोसा ,इसलिए ,
हम खुदा के नाम की बातें करें ।

फूल, चिड़िया, पेड़, बच्चों की हँसी,
प्यार के पैगाम की बातें करें ।

जब तलक इंसानियत खतरे में है ,
ना कभी आराम की बातें करें ।

कुर्सियों से अब भरोसा छोडिये ,
खुद हीं  हम आवाम की बातें करें ।

गिरगिटों के रंग को पहचान कर ,
राष्ट्रहित परिणाम की बातें करें।

 नग्नता-से पूर्ण फैशन त्यागकर,
फिर से राधे-श्याम की बातें करें ।

हिन्दू मुस्लिम एकता के वास्ते ,
तुलसी औ खैयाम की बातें करें ।

चढ़ सके फाँसी  यहाँ अफज़ल गुरु ,
हर गली कोहराम की बातें करें ।

11-

डर्टी -डर्टी पिक्चर देखा ,सत्ता में तो अक्सर देखा ।
विश्वासों के पुनीत हस्त में फूल सरीखा पत्थर देखा ।

घोषित है खुश हाल आदमी ,गज़ट-बज़ट  के पन्नों में ,
सडकों पर बदहाल आदमी ,जीता है हँसकर देखा ।

भरी अदालत सच बोला था ,तब से उसका पता नहीं ,
वो भी तो बर्बाद हो गए ,जिसने वो मंज़र देखा ।

आसमान तक पहुँचा था ,नादान परिंदा बसने को ,
आप बताएं आसमान का  ,अब तक कोई घर देखा ।


12-
हर भूखे की भूख मिटाना ,अच्छा लगता हैं |
हर चेहरे पे चाँद उगाना ,अच्छा लगता है |

अभी-अभी रोता वो बच्चा, माँ को पाकर खुश लगता ,
माँ का उसको दूध पिलाना ,अच्छा लगता है |

बच्चे तो बच्चे होते हैं, भले बात वे ना मानें ,
फिर भी बच्चों को समझाना ,अच्छा लगता है |

पाकर खोना ,खोकर पाना, है जीवन की  विडंबना,
रोते-रोते फिर मुस्काना ,अच्छा लगता है |

चिड़ियों के कलरव ,मधुकर के गुंजन से भी मधुर ध्वनी ,
नन्हें बच्चों का का तुतलाना ,अच्छा लगता है |



13-
खुरच दे झूठ का चेहरा सच की बानी लिखना |
मरी -सी  जिंदगी में  जोश- रवानी लिखना | 

चुनौती दे रहा हूँ लिख सको, तो लिखना तुम ,
घृणा की आँख में मुहब्बत रूहानी  लिखना  |

रंगों - खुश्बू हो ,जब भी  अल्हड मस्ती हो ,
उस क्षण को, खुबसूरत जवानी लिखना । 

मैं कर न सका और कुछ,तो प्यार कर लिया ,
मेरी जिंदगी की ये सब, नादानी लिखना । 

जब उदास होना ,जिंदगी की बेरुखी  से ,
उस वक्त कुछ, कविता और कहानी लिखना ।

14-

गज़नी व गोरी ,हज़ारों ने लूटा | 
अंग्रेजों के संग, जमींदारों ने लूटा |

किसने नहीं, देश लूटा है यारों ,
सत्ता के सब, रिश्तेदारों ने लूटा |

बाजार के, मस्त अंगड़ाईयों से ,
लुभा के हमें, साहूकारों ने लूटा |

लड़की बलत्कृत को, पहले दिखाकर ,
टीवी टीआरपी, अखबारों ने लूटा |

जिन्हें सौंप दौलत, सोया देश अपना , 
उन्हीं रक्षकों ,पहरेदारों ने लूटा |


15-

सच बोलूं दिल मिले ना मिले ,मिलना एक बहाना आज |
मित्रता की बनी कसौटी, केवल हाथ मिलाना आज |

कौन निभाये, किसको फुर्सत ,तीव्र गति कि दुनिया में ,
रिश्तों के दर्पण में देखा ,अपनापन अनजाना आज |

वेश्या की मुस्कान लिए है ,संबंधों की डोर यहाँ ,
करवट बदली ,ग्राहक बदले ,धंधा वहीँ पुराना आज |

नैतिकता ,ईमान ,धर्म आहत हैं ,उनकी महफ़िल में ,
जाल फ़रेबी ,दंभ झूठ सब ,पहने सच का बाना आज |

द्रौपदी के चिर हरण में ,चले जानवर इन्सां बन,
अस्मत कितनी चढ़ी दाँव पर,गिनना और गिनाना आज |

कुहरे हीं कुहरे हैं फिर भी ,धुल के मेले चारो ओर,
इस मंज़र में राह दिखाए ,कविता और फ़साना आज |



16-

मातृभूमि का सदा, सम्मान करना चाहिए |
इसकी रक्षा हित हमें, बलिदान करना चाहिए |

जिन शहीदों ने आज़ादी, दी हमें सौगात में ,
उन शहीदों का हमें, यशगान करना चाहिए |

कोई लड़े ना जाति, मज़हब ,प्रांत के अब नाम पर ,
सबको मिलाकर एक, हिंदुस्तान करना चाहिए |

आज भ्रष्टाचारियों से, राष्ट्र मर्माहत हुआ ,
उनका अब तिहाड़ में, स्थान करना चाहिए |.


17-

मंचों के कवि मंचों तक रह जाते हैं |
छंदों के कवि छंदों तक रह जाते हैं |

ताली ,यश औ वाह-वाह की चाहत में ,
कंधों के कवि ,कंधों तक रह जाते हैं |

परपीड़ा जो समझ सके, न  देख सके ,
अंधों के कवि अंधों तक रह जाते हैं |

कलम बेच कोई भले तमगा पाले ,
धंधों के कवि धंधों तक रह जाते हैं |

छंद सुना के चार जो झंडा गाड़ रहे ,
झंडों के कवि झंडों तक रह जाते हैं |

सूर कबीर तुलसी तो सदियों के मानक ,
पंडों के कवि पंडों तक रह जाते हैं |

फेसबुक पर भेंड -झुंड- से कवि मिले ,
झुंडों के कवि झुंडों तक रह जाते हैं|
                               
18-

तू ज्ञान अपना ,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |
तू अभिमान अपना ,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |

तू क्या देगा किसी को, घृणा के सिवा जिंदगी में ,
ये सम्मान अपना ,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |

जब आसमान हीं , उड़ान का दुश्मन  हो जाये ,
वो आसमान अपना,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |

इन्सान इन्सान होता है महज़, हमें मालूम है ,
तू हिन्दू ,मुसलमान अपना,अपने पास रख,तेरी ऐसी की तैसी।
 

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