मुक्तक मनोज के
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वन्दे भारतमातरम! मित्रो,आज एक मुक्तक आप सभी को पुनः समर्पित करता हूँ...............
बचपन में बारिश का पानी,कितना सुन्दर लगता है।
कागज की नावों की खातिर,एक समंदर लगता है।
छप,छपाक ,छम- छम बूंदों में,शोर मचाता इक बच्चा ,
जैसे एक अनूठा ,सुन्दर ,नटखट बन्दर लगता है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।
भले प्रारब्ध कुछ भी हो,मगर निश्चित तू पाएगा।
तेरे हिस्से का जो कुछ है,वो तेरे पास आएगा।
अगर सद्कर्म का संकल्प,उत्कट भाव से होगा,
दुष्कर लक्ष्य भी,जज़्बा तुम्हारा खींच लाएगा।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।
तेरा सुख तुझमें ही बैठा,मन की तहकीकात करो।
सदा रोशनी की भाषा में,अँधियारों से बात करो।
सतत् सुखी रहने का केवल,एक मन्त्र ही है काफी,
अपनी ईर्ष्या,कुंठाओं पर,प्रतिपल तुम प्रतिघात करो।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!मित्रो!आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ!
मन मंदिर को ज्ञान-ज्योति से,निशदिन हम शृंगार करें।
सदा आत्म वैभव से अपने,जीवन को साकार करें।
घृणा-तमस को हृदय-गगन से,अगर मिटाना है हमको,
एक दीप बस जला प्रेम का,आलोकित संसार करें।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!मित्रो!एक खुरदुरा युगबोध 'मुक्तक'के रूप में हाज़िर है।
बड़े कंजर्फ होते है सियासी पैतरे वाले,
बेशर्मी ओढ़ ईमां की नरेटी बेच देते हैं।
कोई टिकट तो कोई कुर्सियों की खरीदारी में,
सियासत में यहाँ कुछ अपनी बेटी बेच देते हैं।
(कंजर्फ-ओछे,कमीने
नरेटी-गला )
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!मित्रो!एक 'युगबोध' मुक्तक के रूप में हाजिर है।
सचाई जानकर,अब भी बने अनजान हैं हम।
उसकी नजरों में बस ,बाजार के सामान हैं हम।
अब तो हालत है ऐसी ,आदमी के रिश्ते ये,
खाकर थूक देते ,ऐसे जैसे पान हैं हम।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक सादर समर्पित है।
जरूरी नहीं है,मुझे याद रखना।
रहो तुम जहाँ,खुद को आबाद रखना।
मिलेगी खुशी,मन-कमल कोरकों में,
भ्रमर-सा सदा,खुद से संवाद रखना।।
- डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!💐
नकली आँखें, नकली कान।
नकली साँसें,नकली ज्ञान।
जीवन ही जब नकली बिल्कुल,
इसीलिए झूठा इंसान।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!मित्रो!एक ठुक्तक (⛏️🛠️ 😊) हाज़िर है।
आवारा बदलियों-सी सुर्पनखाएँ घूमती हैं।
फँसाने राम को लेकर अदाएँ घूमती हैं।
हो कोई पूतना या ताड़का हर दौर में मिलतीं,
बदल कर चेहरा बन अप्सराएँ घूमती हैं।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!
कंचन सिंह तोमर भैया के एक पोस्ट 'ये भी कोई जिंदगी है' पर प्रतिक्रिया स्वरूप ये पंक्तियाँ मैंने समर्पित की।आप भी पढ़ें।
मुझसे रहती सदा ऐंठी,मैं भी रहता हूँ कुछ ऐंठा।
वो मेरे ससुराल में बैठी,मैं उसके ससुराल में बैठा।
थोड़े शिकवे शिकायत हैं मगर दिल में मुहब्बत है,
न वो मेरे कान की ठेंठी,न उसके दिल का मैं ठेंठा।😊
(ठेंठी-कान का मैल
ठेंठा-सूखी लकड़ी)
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है-
जिससे जिंदगी धड़के वही तो प्राण होता है।
सदा व्यक्तित्व ही अस्तित्व का प्रमाण होता है।
खड़ी हो सामने बाधा तुम्हें तिल-तिल मिटाने को,
सदा संघर्ष,साहस,धैर्य से ही त्राण होता है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
राम राम सगरी मित्र लोगन के!एगो 'मुक्तक' रउवा सभा में हाज़िरी दे रहल बा।
जवन देखेनी जीवन में,उहे बतिया बतावेनी।
बुरा लागो भले तहरा,मगर सच सच सुनावेनी।
हईं भोजपुरिया माटी के,उपजल बीज पानी से,
मुखौटा धारियन के रोज,हम धुरछक छोड़ावेनी।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!
नहीं चाहता सत्ता पर मैं श्रृंगालों का कब्जा हो।
गंगा की अविरल धारा में घड़ियालों का कब्जा हो।
लोकतंत्र में लोक समर्पित जन का जो कल्याण करें,
ऐसे वीर,समर्थ,भारती के लालों का कब्जा हो।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
राम राम!
घुमा फिरा के उहवें आ जाला।
आदमी औकात पा बउरा जाला।
के बा कइसन समय के अइला पर,
पास या दूर बा बुझा जाला।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!
हमारा आचरण इक आईना है जिंदगी का,
बुरे,अच्छे का ये अनुमान,करा देता है।
मुखौटा पर मुखौटा डालने से कुछ नहीं होता,
वक्त इंसान की पहचान,करा देता है।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।
तेरी चाहत कि जीते जी मैं,फाँसी झूल जाऊँ।
तेरी करतूत गंदी,जिंदगी में भूल जाऊँ।
अलग ये बात है, तुम शूल देते आ रहे हो,
फिर भी चाहत है मेरी,देकर तुमको फूल जाऊँ।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!💐💐
कवि से जो सियासत के महासंत हो गए।
जिनके विचार आज दिग् दिगंत हो गए।
जिनको न बाँध पाया ये वक्त भी कभी,
अटल वे आज अंत से अनंत हो गए।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!💐💐💐
सादर प्रणम्य प्राणवंत संत की तरह।
इक राम-राष्ट्र भक्त श्रीहनुमंत की तरह।
अटल-विचार,बन गए पाथेय राष्ट्र के,
जीवित ही नहीं पूर्णतः जीवंत की तरह।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!विनम्र श्रद्धांजलि!!💐
समर्पित जिंदगी भर देश हित पल पल रहे अटल।
राष्ट्र की चेतना के पूत तुलसीदल रहे अटल।
जहाँ तक समझ पाया कवि,नेता इस मसीहा को,
सियासत की नदी में बहते गंगाजल रहे अटल।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!
लौटाने की बात नकार दी जाती है।
इस देश में औरत उधार दी जाती है।
जोरू पैर की जूती है जैसे ,
थोड़े घिसते ही उतार दी जाती है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!
हिन्दू मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई सब हिन्दू हैं।
अलग धर्म पर एक इकाई सब हिन्दू हैं।
भारत की धरती पर जो भी जन्म लिए हैं,
हिन्दुस्तानी भाई भाई सब हिन्दू हैं।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।
अकारण गालियाँ देने का,...सबब ही होगा।
जरूरी है नहीं ठोके,...वो बेअदब ही होगा।
सँभल कर बोलना,माँ भारती के बारे में,
वगरना चढ़ गए हत्थे तो गज़ब ही होगा।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।आपका क्या क्या नजरिया है इसपर?टिप्पणी सादर अपेक्षित!💐
वक्त उल्टा है तो वनवास में रहना बुरा नहीं।
सही गर बात है तो सामने कहना बुरा नहीं।
अगर ये धैर्य तुमको सफलता तक ले के जाता है,
राह की मुश्किलों के दर्द को सहना बुरा नहीं।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!मित्रो!एक कटूक्तक हाज़िर है।आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
जब भी औकात में होगा,तो वो निश्चित दिखाएगा।
छिछोरा आदमी कब तक छिछोरापन छिपायेगा।
है जिसके फितरतों में जंगली सुअर सा वहशीपन,
वो खाकर मुल्क की रोटी,उसी पर गुरगुरायेगा।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!मित्रो!एक 😊पप्पूक्तक😊 हाज़िर है।
😊😊😊 😊😊😊😊😊 😊😊😊
डर से हर शख्स में ऐसा मचा हड़कंप साहिब।
कि कल संसद में आएगा बड़ा भूकंप साहिब।
कई तूफान आएंगे,जो प्यासे मार डालेंगे,
उखड़ जाएंगे सब इस देश के हैंडपंप साहिब।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
😊😊😊 😊😊😊😊😊 😊😊😊
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।
आज नहीं तो निश्चित ही कल,हो ही जायेंगे।
गुजरे हुए जमाने ओझल,हो ही जायेंगे।
अँधियारों की साजिश को,गर तोड़ नहीं पाए,
इक दिन सबल उजाले,निर्बल हो ही जायेंगे।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!एक आह्वान है-
देश विरोधी आवाजों को शीघ्र कुचलना होगा।
घाटी के पत्थरबाजों को शीघ्र कुचलना होगा।
'वंदे मातरम्' 'भारत माता की जय' से जो जलते,
ऐसे सब खुजली खाजों को शीघ्र कुचलना होगा।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!
टुकड़े वाले गैंग आजकल,वेश बदल कर आये हैं।
मी टू का षड्यंत्र रचाकर,अपना जाल बिछाए हैं।
सूर्पनखाओं को आगे रख,चरित हनन का खेल रचें,
जिनसे अच्छे अच्छे भी अब,सचमुच ही घबराए हैं।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!
कश्मीर को दहशत ने,...इक ऐसा सिला दिया।
जन्नत को जिहादों ने,.....जहन्नुम बना दिया।
देनी थी रोशनी जिसे,....इस मुल्क को सदा,
आज उन्हीं चरागों ने,...अपना घर जला दिया।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!
संपोले राष्ट्रघाती हैं बड़े ...बेईमान के बच्चे।
लगाते घाटियों में आग नित शैतान के बच्चे।
ये पत्थरबाज सब ना'पाक रिश्तों की है पैदाइश,
कभी भी हो नहीं सकते ये हिंदुस्तान के बच्चे।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।
अगर बंजर सी है अहसास की मिट्टी कहीं पर भी,
नहीं ये अंकुरण देगी नहीं ये मुस्कुराएगी।
दिलों की नम जमीं पर तुम मुहब्बत रोप कर देखो,
फसल खुशियों की निश्चित जिंदगी में लहलहायेगी।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!💐
जो बेहतर सोच वाले हैं,..वे तो बेहतर समझते हैं।
मगर कुंठित हैं जो,..अमृत को भी जहर समझते हैं।
वृषभ अधिराज कुछ, घुटनों में जिनके है पड़ी शिक्षा,
वे शिक्षक को भी,...अपने बाप का नौकर समझते हैं।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!एक मुक्तक हाज़िर है।
हृदय में हो अगर श्रद्धा बड़ों के सामने झुककर रहो।
ये चारों धाम हैं अमृत घड़ों के सामने झुककर रहो।
वो पूजाघर ही हैं जिस घर में हो माँ बाप की छाया,
दरख्तों के यूँ पत्तों-सा जड़ों के सामने झुककर रहो।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदे मातरम्!
योग विरोध में देखा हमने,
ऐसे मन के रोगी ।
करवट भी न बदल रहे
कि समझ न ले कोई योगी ।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!
सांप मरे लाठी न टूटे,.........रणनीति अपनाई जाए।
शांति अमन लौटे घाटी में,...राजनीति ठुकराई जाए।
अब तो ना'पाकों को रोको,...ठोको नित अभियानों में,
पत्थर को बम की भाषा में,..सैन्यनीति समझाई जाए।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!अपने देश के जांबाज जवानों से एक अपील 'मुक्तक' में।आपका समर्थन अपेक्षित है।
भटका हुआ यूँ कहकर,मत माफ करो अब।
आतंक के खिलाफ,बस इंसाफ़ करो अब।
ये ही तो हैं जो ,दहशतगर्दों को पालते,
पत्थर चलाते सूअरों को,साफ करो अब।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक 'मुक्तक' जांबाज सैनिकों की ओर से गृहमंत्री जी के लिए।
रहेगा ही नही जब ,कोई भी सैनिक यहाँ जिंदा।
करेंगे किसकी खातिर ,दुश्मनों से फिर कड़ी निंदा।
बताओ मन्तिरी जी,इस तरह से काम होगा क्या?
कब तक गोलियाँ झेलें खड़े हम,होके शर्मिंदा?
#सीजफायर
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!
अच्छा है अगर काम तो सराहिए जरूर,
बुरा है तो दिखाइए निश्चित ही आईना।
न ठीक अंधभक्ति,न अंधविरोध ही,
संभव नहीं ये बिल्कुल सत्याचरण बिना।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्देमातरम्!
साथ देगा पद कहाँ तक।
आदमी का कद कहाँ तक।
वक्त तय करता रहा है,
नीचता की हद कहाँ तक।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो! बिहार के नालंदा में एक बेटी के साथ घटी घटना को देखते हुए कुछ पंक्तियाँ 'मुक्तक' के रूप में समर्पित है।बेटियों के अस्मत से खेलने वाले दरिंदों के खिलाफ आपका समर्थन चाहता हूँ।
कुछ भी कह,..कुशब्द भी बौने हुए जिनके लिए,
फर्क क्या पड़ता उन्हें,...कुकर्म के जो सूत्र हैं।
नीच ,पामर,दुष्ट ,कुत्ता,.....भेड़िया जो भी कहो,
बेटियों को नोचने वाले,.......सूअर के मूत्र हैं।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज प.राम प्रसाद 'बिस्मिल' जी को श्रद्धांजलि के रूप में समर्पित चार पंक्तियाँ आपको प्रस्तुत कर रहा हूँ।आप मित्रों का स्नेह सादर अपेक्षित है...
साहस,त्याग से भरपूर,जिसका दिल नहीं होता।
ऐसे शख्स के जीवन का ,मुस्तकबिल नहीं होता ।
वतन के वास्ते जीना या मरना ,पर्व हो जिसका,
क्यों ऐसा आज पैदा अब कोई, 'बिस्मिल' नहीं होता।
शब्दार्थ-(मुस्तकबिल-भविष्य)
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!मेरा एक आह्वान 'मुक्तक' छंद में समर्पित है।
राष्ट्रवादी ताकतों को एक होना चाहिए।
देश हित मे दिल हमारा नेक होना चाहिए।
परम् वैभव प्राप्त करने के लिए इस भूमि पर,
मंत्र वंदेमातरम् का टेक होना चाहिए।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।
पुनः पैदा करो खालिद,कन्हैया और कुछ हार्दिक,
चुनावों में सदा जिग्नेश......जैसे काम आते हैं।
हमारे मुल्क में ये ,जाति,मज़हब के नमूने हैं,
जिनके नाम पर चंदे में .......मोटे दाम आते हैं।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!💐
जलते प्रश्नों को लेकर ग़ज़ल आज अंगार हो गई |
अंधियारों से लड़ने वाली ,एक रौशन हथियार हो गई |
गाल गुलाबी ,होंठ रसीले और नशीली आंखें छोड़ ,
आम आदमी की तकलीफों की सच्ची इजहार हो गई |
...डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।
कौन होते हैं हम यूँ ......उनको समझाने वाले।
खुश हैं जब खुद ही ....फाँसी पर चढ़ जाने वाले।
निरा गुलाम हैं जो....मुफ्तखोरी के लिए ही,
रिहा फिर क्यों करेंगे ..........जाल बिछाने वाले।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो! विडंबनाओं को लेकर एक मुक्तक हाजिर है।
ठेंगा पास नेता चुन के जब संसद में जाता हैं,
नौकर प्रथम श्रेणी का उसे ग्रेजुएट मिलता है।
अगर सौभाग्य से मंत्री बना,सुविधा के क्या कहने,
मुरब्बा चापलूसी का उसे भरपेट मिलता है।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
एगो मुक्तक हाज़िर बा।
आँख बाटे भरल त, छलकबे करी।
आग पाई हवा त,दहकबे करी।
मन त भँवरा ह,सौंदर्य के फूल के,
गंध पाई त निश्चित,बहकबे करी।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।
बिसलरी का पानी पीकर.... प्यास लिखते आए हैं।
पाँच सितारा में बैठे......... संत्रास लिखते आए हैं।
जाति धर्म का तड़का देकर..... देश बाँटने वाले ये,
वामी-कामी,सदा...छद्म इतिहास लिखते आए हैं।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!
भेड़ बकरी कहूँ या विधायक कहूँ।
या सियासत के कुंठित,नालायक कहूँ।
क्या करेंगे ये अब,नाचने के सिवा
सबसे अच्छा है उनको,तवायफ़ कहूँ।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।
नहीं यूँ सामने रोता हूँ,न चिल्लाता हूँ।
मगर मैं आदतन,अंदर से भींग जाता हूँ।
मुझे मालूम है ,दुनिया है मजाकट कितनी,
दर्द अपना कभी,उनसे नहीं बताता हूँ।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो! आप सभी को महाराणा प्रताप जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाइयाँ।
हे भारत माँ के पुत्र प्रखर!राणाप्रताप तुझको प्रणाम।
साहस ,गौरव के मूर्ति अमर!राणाप्रताप तुझको प्रणाम।
तुम स्वाभिमान,संकल्प पत्र,भारत भूमि के सद्चरित्र,
जन-मन ऊर्जा के नित्य लहर!राणाप्रताप तुझको प्रणाम।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक युगबोध 'मुक्तक' के रूप में प्रस्तुत है।
अराजकता,द्रोह,नित आतंक के जो भूप हैं।
झूठ ,मक्कारी, बेशर्मी,धूर्तता के रूप हैं।
देश खंडित जाति,मज़हब के बहाने कर सकें,
जाहिलों के मार्गदर्शक,आज अंधे कूप हैं।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!चार पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं।स्नेह सादर अपेक्षित है।
अर्वाचीन का सत्य यही है, मैकाले का ज्ञान।
शिक्षा लेकर भिक्षा मांगो, नौकर बनो महान।
त्याग,समर्पण,नैतिकता का,मानवता का क्या करना,
यहीं आधुनिकता के विकास की,रही आज पहचान।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!विश्व हास्य दिवस पर एक मुक्तक हाजिर है।
आओ अपने 'आप'को... हम देखकर कुछ तो हँसें।
झूठ के इस बाप को,.....हम देखकर कुछ तो हँसें।
थूककर फिर चाटने में...... देश में कुख्यात है,
आस्तीनी साँप को .....हम देखकर कुछ तो हँसें।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
साँप घर में घुस न पाएं,हो सके तो रोक दो।
नहीं मानें ,फन उठाएं,फिर वहीं पर ठोक दो।
ऐसे ही कुछ छिपे बैठे,हैं दरिंदे मुल्क में,
ढूढ़ कर उनको दहकते,आग में फिर झोंक दो।।
वंदेमातरम्!मित्रो!एक युगबोध 'मुक्तक' के माध्यम से हाज़िर है।
सच के सामना से दूर होता है।
झूठ को झूठ ही मंजूर होता है।
दूध कितना पिलाओ काट लेगा,
साँप स्वभाव से मजबूर होता है।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!आप सभी को बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं।
सबको अपना अपना पावन धर्म,मुबारक।
संस्कृति की उज्ज्वल प्रगति का मर्म, मुबारक।
सद्भावों की नदी हृदय में बहे निरंतर,
देश सृजन में हो सबका,सद्कर्म मुबारक।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!
धीरे धीरे ही सही शिखर तक बढ़ते रहिए।
पकड़कर वक्त की सीढ़ी सदा चढ़ते रहिए।
हृदय की तूलिका से जिंदगी के कैनवस पर,
छटा कुछ इंद्रधनुषी प्यार से गढ़ते रहिए।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।स्नेह सादर अपेक्षित है।
धुआँ,कुहासा लेकर,मौसम घूम रहा है,
आखिर कब तक,सूरज को ये ढक पायेगा।
कब तक धोखा,कब तक साज़िश चल पाएगी,
घड़ा पाप का इकदिन निश्चित फूट जाएगा।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।
सही कितना है इस तरह दुश्मनी रखना।
जड़ों को काटकर डालों से दोस्ती रखना।
अजब इस दौर का क़िरदार है क़ातिल की तरह,
लहू ऐतबार का पीकर भी तश्नगी रखना।
डॉ मनोज कुमार सिंह
जोगीरा सारा रा रा........
😊😊😊😊😊😊
गुजरात में हिन्दू बनलस
कर्नाटक में मुल्ला।
मेघालय में बनल ईसाई,
देख पपुआ दल्ला।
जोगीरा सारा रा रा........
😊😊😊😊😊
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।
भले न मानव प्रखर सूर्य बन,जग जीवन चमकाता है।
मगर एक दीपक बन चुपके,लाखों दीप जलाता है।
देखो, अपनी क्षमता,तप,संयम से धीरे धीरे ही,
लक्ष्यवान प्रवाह,नदी को सागर तक पहुँचाता है।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।
जलना चाहता है दिल ये,उनके ग़म में लेकिन,
मुआ ये दिल है या है ख़ाक,ये जलता ही नहीं।
आँसू दिल से निकले,या महज़ आँखों से उनके,
मगरमच्छों की बस्ती में,पता चलता ही नहीं।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।
अंतरतम में नित्य फुदकती,मधुरिम नव कलरव करती,
गायत्री मंत्रों-सी गुंजित,चिड़िया एक चहकती है।
पुष्प दलों पर ओस कणों में,किरणें जैसे मदमातीं,
हृदय पात्र से वैसे ही,इक कविता रोज छलकती है।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है।
जमीं पे गिर के उठ जाना बड़ा आसान होता है,
नज़र में गिर गए तो उठना,मुश्किल बहुत होता।
पहाड़ों की ऊँचाई नापने से भी बहुत ज्यादा,
समंदर के तलों में डूबना, मुश्किल बहुत होता।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!बस अब एक टूक बात!!
महज़ सियासत ठीक नही है।
रोज शहादत ठीक नहीं है।
कब होगा संग्राम बताओ,
ढुलमुल आदत ठीक नहीं है।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।
हमसे पूछे वो, पानी का जमा,
हमने सैलाब,कह दिया उनसे।
गलत सवाल का उत्तर सही क्यों,
यही जवाब,कह दिया उनसे।।
(जमा-बहुवचन,सैलाब-बाढ़)
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!
सत्ता,कुर्सी का विरोध,जायज है,लेकिन,
राष्ट्र भाल पर चोट किया तो,मरना होगा।
मातृभूमि के गद्दारों को खोज खोजकर,
उनका जीवन,प्राण हरण,अब करना होगा।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
अनैतिक,अनाचारी और बिल्कुल पक्षपाती जो,
वो नैतिक भाषणों का पाठशाला दे के जाता है।
जो खुद क़ातिल लुटेरा,अहंकारी आचरण से है,
वो मुझको आत्मचिंतन का हवाला दे के जाता है।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक युगबोध मुक्तक के रूप में समर्पित है।
छेड़छाड़ कर,इतिहासों से,
लंका अपनी सजा रहे हैं।
बेंच अस्मिता भारत माँ की,
भड़वे ताली बजा रहे है।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक सामयिक और ज्वलंत मुक्तक हाज़िर है।
यहीं दिया स्वतंत्र मुल्क ने,दिवानों को थाती में।
वंदेमातरम् गोली खाये,लिए तिरंगा छाती में।
चुप बैठी सरकारें,क्योंकि ये चंदन,अखलाक नहीं,
राष्ट्रधर्म पर मज़हब हावी,देखा ठकुरसुहाती में।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।
न है ये लोक खतरे में ,न उठते शोर खतरे में।
असल में आजकल हैं,खासकर कुछ चोर खतरे में।
कुहासा काटकर जबसे,ये सूरज निकल आया है,
अँधेरों की सियासत का है,अब हर छोर खतरे में।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।
दिल के बाज़ार का,गर टर्नओवर देखता हूँ,
प्यार में लॉस भी,..प्रॉफिट दिखाई देता है।
कितनी बदली है दुनिया,बुद्धि के सेंसेक्स कहते,
सच्चा इंसान अब,अनफिट दिखाई देता है।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।
दिल में गर इक नदी नहीं होती।
मुक़म्मल जिंदगी नहीं होती।
लहर जज्बात की उठती नहीं गर,
हवा में शायरी नहीं होती।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।
काट सकूँ अच्छे ख्यालों की पकी फसल,
मेरे शब्दों की जमीं की चकबंदी कर दे।
ऐ खुदा!दे इतनी ताक़त सच बयान करूँ,
बुरे विचारों की मुक़म्मल नसबंदी कर दे।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्देमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।अच्छा लगे तो स्नेह दें।
बैठे हैं चोर चोर ज्यों,अँकवार से लिपटकर।
जैसे विपक्ष देखिए,सरकार से लिपटकर।
संसद में बैठ दोनों,सुविधा बढ़ाते अपनी,
मुफ़लिस सड़क पे बैठा,अखबार से लिपटकर।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!एक मुक्तक हाज़िर है।
बहुत खुश है वो आजकल फासला रख कर।
कब तक रख सकेगा ये सिलसिला रख कर ।
जमीं पर उतरना पड़ता है हर परिंदे को,
आसमां स्वागत कहाँ करता घोंसला रख कर।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्देमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।
मक्कारियों के मंजर,हर ओर दिखे है।
स्वारथ के तीक्ष्ण खंजर,हर ओर दिखे है।
कैसे गुलाब रोपूँ संवेदना की मैं,
दिल की जमीन बंजर,हर ओर दिखे है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!एक हास्य मुक्तक हाज़िर है।
दूरियाँ हों मगर इतनी हीं रहें,
कि जैसे दिसंबर,जनवरी में।
घुले मिले हों रिश्ते पास होकर,
कि जैसे तेल हो पकौड़ी में।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!एक मुक्तक हाज़िर है।
दिल के धागों से सिले रिश्तों पर,
बेवज़ह कैंचियाँ चलाना मत।
निभाना है तो निभाओ दिल से,
इसे भुलकर भी आजमाना मत।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!एक मुक्तक हाज़िर है।
स्वीकारिए सचाई,अन्यथा न लीजिए।
गलती छुपा के बेवजह,व्यथा न लीजिए।
लेना जरूरी है तो, बस आनंद लीजिए,
तनाव जिंदगी में यूँ ,वृथा न लीजिए।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्! युगबोध से लबरेज़ एक मुक्तक हाज़िर है।
दायित्व निभाने से भगते हैं आजकल।
पैसे के लिए सोते जगते हैं आजकल।
जिनकी नज़र में रिश्ते,भी एटीएम महज़,
माँ बाप तक को बच्चे ठगते हैं आजकल।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!एक मुक्तक हाज़िर है।
लेके खंजर खड़ा बेईमान जालिम,
बचेंगी किस तरह अब गर्दनें ईमान की।
यहाँ हर शख्स बकरे की तरह है,
कोई कीमत नहीं है अब किसी की जान की।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!इस मुक्तक पर आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
बेरहम भूख की,भय की करीबी,मार देती है।
मौत आने से पहले भी गरीबी,मार देती है।
खुदा तू ही बता!इंसान को ऐसा बनाया क्यों,
जिसकी जिंदगी को बदनसीबी,मार देती है।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!एक मुक्तक हाज़िर है।
दिल से ये निकली बात,ज़रा गौर कीजिए।
जितना भी किये कम है,कुछ और कीजिए।
थोड़ा विराम दीजिए इस पाँव को जरूर,
चलने का नाम जिंदगी,बतौर कीजिये।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।
टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
अब जिंदगी में मैंने ये मन बना लिया।
दुख दर्द को ही अपना मैं धन बना लिया।
मुझसे न हो किसी का अपमान कभी भी,
साँपो के लिए खुद को चंदन बना लिया।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!2018 की शुभकामनाओं के साथ!!
प्रतिदिन मंगलमय हो तेरा।
वर्ष नवल सुखमय हो तेरा।
जबतक सूरज,चाँद हैं नभ में,
जीवन ज्योतिर्मय हो तेरा।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।
अँधेरों के दहशती,शातिर इरादों पर सदा,
रोशनी का एक कतरा ही,महज़ भारी रहा।
जब से संकल्पों ने अपनी,तेवरें दिखलाई हैं,
झूठ की लंका का जलना,आज तक जारी रहा।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक पुनः हाज़िर है।स्नेह सादर अपेक्षित है।
मुझे मालूम है न वक्त,न समंदर बदलता है।
कर्म की धार से इंसान का,मुकद्दर बदलता है।
बदलते है यहाँ पर लोग,मौसम की तरह निश्चित,
वक्त के नाम पर दीवार का,कलेंडर बदलता है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक सांस्कृतिक संकट सत्य 'मुक्तक' के माध्यम से समर्पित कर रहा हूँ।आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
धीरे धीरे वो अपने अनुकूल बनाया।
नवल वर्ष को मेरे,एप्रिल फूल बनाया।
वेद,उपनिषद,कृष्ण,राम के श्रेष्ठ राष्ट्र की,
सोना-सी संस्कृति को पद की धूल बनाया।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।
साल बदल जाते हैं,उद्योग बदल जाते हैं।
उससे ज्यादा देखा पल में,लोग बदल जाते हैं।
एक मर्ज का हो इलाज जब तक,तब तक ये देखा,
कालनेमि-से जीवन के ये,रोग बदल जाते हैं।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!एक मुक्तक प्रस्तुत है।स्नेह सादर अपेक्षित है।
उनके फेंके सारे पत्थर।
थाम लिये हैं हमने अक्सर।
वे खुश थे कि चोट दे दिया,
हमने उससे बना लिए घर।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।
आसमां में ढूढ़ने,निकले जो घर की आस से।
मर गए कितने परिंदे,समन्दर में प्यास से।
जिनको अपने पाँव के,नीचे जमीं दिखती नहीं,
ढह गई है मंजिलें,हर ख़्वाब की ज्यों ताश से।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।
पेड़ हैं हम घोंसले ढोते रहे,
जिनको शायद अलविदा तुम कह गए।
हम जहाँ पर थे वहीं हैं आज भी,
तुम जमाने की हवा में बह गए।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।इसे दिल्ली पुस्तक मेले से जोड़कर देखना मना है।😊😊
सुना मेले लगा के बैठे वे।
खुद के ठेले लगा के बैठे वे।
बेचने के लिए अपनी किताबें,
कई चेले लगा के बैठे वे।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम्!
यहाँ मिलते हैं देखा देश में ,हर भाँति के नायक।
हुए कुछ राष्ट्र के नायक,रहे कुछ जाति के नायक।
ये कैसा वक्त है कि देशद्रोही भेड़ियों द्वारा,
बताया जा रहा है,देशभक्तों को ही खलनायक।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाज़िर है।
जिसके आचरण में बद्तमीजी ही बसी है,
उसकी खातिर अपना क्या, पराया क्या!!
जो अपनो के ही दुख दर्द में शामिल नहीं है,
उसको मालूम नहीं,खोया क्या,पाया क्या!!
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।आपकी स्नेहिल टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
छीनो नहीं कभी भी,...रोटी किसी की हो।
बदनाम मत करो तुम,...बेटी किसी की हो।
झूमती हुई फ़सल को,..भले प्यार न करो,
पर आग मत लगाना,..खेती किसी की हो।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक समर्पित है।
देश की सर्वोच्चता का न्याय का मंदिर।
दिख रहा है सियासी पर्याय का मंदिर।
स्वार्थ में डूबे हैं सब,'मी लॉर्ड' जब खुद ही,
बन न जाये ये कहीं अन्याय का मंदिर।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!अभिधा में भी व्यंजना कह सकते हैं।
युगबोध पर आधारित एक 'मुक्तक' सादर प्रस्तुत है।
यहाँ कर रहे ,कुछ वहाँ कर रहे।
देश को गालियाँ दे,धुआँ कर रहे।
ठंढा जल जबसे डाला,छिपे बिल में,
ठंढ से स्यार ,हुआँ हुआँ कर रहे।।
😊😊😊😊😊😊😊😊😊
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक सवाल मुक्तक के माध्यम से पूछना चाहता हूँ कि निजी स्वार्थ में लोकतंत्र को खतरा कैसे है!
तेरे मन माफ़िक काम नहीं,तो लोकतंत्र खतरे में क्यूँ?
गर बेंच विशेष में नाम नहीं,तो लोकतंत्र खतरे में क्यूँ?
तुम न्यायाधीश हो या नेता,या विक्रेता हो न्यायों के,
जिसमें मन माफ़िक दाम नहीं,तो लोकतंत्र खतरे में क्यूँ?
डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम्!मित्रो!एक मुक्तक सादर समर्पित कर रहा हूँ।
देश विरोधी गतिविधियों का,देखा भट्ठा बैठा है।
अपकर्मों के गाल पे उनके,जबसे चाँटा बैठा है।
खोज खोज कर ठोक रहे,जबसे कुत्तों को घाटी में,
पत्थर वाली बस्ती में,तब से सन्नाटा बैठा है।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
आज हर भीड़ की,हर भेंड़ को ये इत्तला है,
उठा गर्दन,नज़र,....गड्ढा पनाह माँगेगा।
नहीं तो भेंड़िया,तुमको ही मारकर निश्चित,
तेरे ही कत्ल का,...तुझसे गवाह माँगेगा।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
राम राम सगरी मित्र लोगन के!
एगो मुक्तक आजु के राजनीति पर।
जेकरा मिमियाए से ज्यादा कामे ना बा,
थाकि के सगरी खुदे पटा जइहें सन।
बान्हि के कतनो राखसन रसरी से उ,
अंत में सगरी बकरा कटा जइहें सन।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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