Friday, November 30, 2018

शेर मनोज के..(चुनिंदा शेर)

शेर मनोज के..(चुनिंदा शेर)
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'रगो में अनवरत् धड़कन में,इक संवाद चलता है।
मिरी साँसों में मेरी माँ का,आशीर्वाद चलता है।।'
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क्या जरूरत है ये चारो धाम करने की,
गुरू,माँ,बाप के चरणों में जब सब तीर्थ बैठे हैं।
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हदस ज्यों दिल के पत्ते को,हरा होने नहीं देती।
बौनी हर सोच,इंसां को बड़ा होने नहीं देती।।
(हदस-जलन)
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या तो बेहया हैं ,या कहो अंधे अक़ल से,
दिल से चाहने वालों को भी जो ठुकराते।
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हम तो आश्वस्त हैं,भारत हमारा है,रहेगा,
जिसे डर है, कहीं जा मुल्क बना ले अपना।
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लचीलेपन की कोई हद तो होगी गर्दनों की,
उससे ज्यादा झुकीं तो टूटना निश्चित समझ लो।।
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सूखे तालाब को भरने की कवायद क्या हुई।
नदी की मछलियाँ नाराज़ चल रही है यहाँ।
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प्यार किसको दिखाऊँ,फाड़कर छाती ये अपना,
कलेजा भूनकर,खा जाते हैं कुछ लोग यहाँ।
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उनका इंसानियत से क्या रिश्ता,
जो पैसे को महज़ पहचानते हैं।
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उनका इंसानियत से क्या रिश्ता,
जो पैसे को महज़ पहचानते हैं।
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दुनिया के आगे चश्मा पहना लिहाज का,
आँखें हैं कितनी बेअदब ,मुझको भी पता है।
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जिसमें प्रेम,श्रद्धा की कोई मूर्ति नहीं होती,
तुम्हीं बोलो कि दिल को किस तरह मस्ज़िद बना दूँ।
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समझा था जिसे कुत्ता,वो बावफ़ा रहा,
वफ़ादार जिसे समझा,कुत्ता निकल गया।
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ज़ाहिद कहूँगा कैसे,जो अपनी ही कौम को,
ज़ाहिल बना के रख दिया,मज़हब के नाम पर।।
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लड़ेगा आदमी कैसे वो,दुनिया में हरीफों से,
जिसकी पीठ पर खंजर,तने हों घर के अंदर ही।
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जो परिवार से ऊपर कभी भी उठ न पाए,
उन्हें अब मुल्क पूरा किस तरह सौंपा जाए।
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सोचा था तीन तलाक़ पर कैराना चलेगा,
लेकिन वो हलाला पर मुहर लगा दिया।
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इस देश में विरोध का, है ट्रेंड गजब का,
हाफ़िज़ को कुछ कहो तो,मोदी गालियाँ सुनते।
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जिनके हाथों को किताबों की जरूरत है अभी,
या ख़ुदा मुल्क ने बाज़ार में बिठाया क्यों है?
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हमें मुद्दा नहीं बस रोटियाँ दे दो साहब,
तुम्हारी तख्तियाँ लेकर चलेंगे सड़कों पर!
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ग़ज़ल में ढूढ़ते क्यों बह्र की बारीकियाँ केवल,
कभी दिल की जुबाँ के मौन को भी पढ़ लिया तो कर।
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नमस्ते बोलता हूँ दिल से तुमको हे साहिब!
इसका मतलब नहीं तलवे भी चाटूँगा तुम्हारे।
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हजारों लोग हैं,कहने को पराये लेकिन।
ज़ख्म पाए हैं जितने,अपनों से पाए लेकिन।।
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इसमें अंधों की कोई खता ही नहीं।
खुद वे अंधे हैं,उनको पता ही नहीं।
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बचपन में लड़ते थे भाई,मेरी माँ,मेरी माँ है,
बड़े हुए तो बूढ़ी माँ अब तेरी माँ,तेरी माँ है।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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