दोहे मनोज के...
तहस नहस करते सदा,व्यक्तित्व की धार।
बेईमानी जुगुप्सा,नकारात्मक विचार।।
जो निखारता स्वयं को,कमियों को कर दूर।
सुखानन्द को भोगता,जीवन में भरपूर।।
जीवन के इस सूत्र से,पूरी होती चाह।
धीरे धीरे ही बढ़ो,मगर सही रख राह।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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