वन्दे मातरम्!मित्रो!आज फिर एक समसामयिक मुक्तक आपको समर्पित कर रहा हूँ। इसे बिहार से जोड़कर मत देखिएगा। आप सभी की प्रतिक्रिया सादर अपेक्षित है।
आजकल तो आदमी ही,आदमी का कौर है।
सुरा के बदले लहू पीने का, वहशी दौर है।
रेप,डाका,अपहरण,अखबार की हैं सुर्खियाँ,
अब तो कातिल ही यहाँ पर न्याय का सिरमौर है।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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