वन्दे मातरम्!मित्रो!एक ताजा गजल समर्पित है। स्नेह दीजिएगा। सादर,
#गजल#
जिद में कभी भी आदमी,कुछ मानता नहीं।
सब जानकर भी खुद को,कभी जानता नहीं।
सच ये भी है कि,जिंदगी में स्वार्थ के बिना,
कोई किसी को आजकल,पहचानता नहीं।
मुर्दों की बस्तियों में,यूँ रहने का असर है,
अब चाहकर भी मुट्ठियाँ,मैं तानता नहीं।
बच्चा वो कैसा बच्चा,खिलौने के लिए जो,
मेले में अपनी माँ से,रार ठानता नहीं?
अच्छे बुरे का ज्ञान औ पहचान जिसे है,
जंगल,जमीन ,आसमान, छानता नहीं।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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