वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक ताजा गजल हाजिर है। आपकी स्नेहमयी टिप्पणी ही मेरी उर्जा है।
#गजल#
कितना मुश्किल है,बार-बार लिखना।
जख्म पाकर भी,ऐतबार लिखना।
एक सच से ही जब,तूफान आये,
क्या जरुरी ,झूठ का अम्बार लिखना।
मैं भी लिख सकता हूँ,श्रृंगार,चितवन,
मेरी फितरत ,मगर तलवार लिखना।
रोकना ठीक नहीं, गर्दो गुबार दिल का,
सुकून देता है ,ग़मे इजहार लिखना।
जिसकी चाहत हो,पुरस्कारों की,
दिल्ली दरबार की,जयकार लिखना।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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