Wednesday, January 13, 2016

आलेख(सच को झुठलाना ठीक नहीं)

#सच को झुठलाना ठीक नहीं।#

वन्दे मातरम्! मित्रो!एक सच जान लीजिये कि न हम आर्थिक रूप से भिखारी हैं ,न जातिगत, न कर्मगत,न स्वभावगत, न संस्कारगत और न धर्मगत। हम गुलामों की संतान नहीं हैं। हम अपने स्वाभिमान की रक्षा की खातिर घास की रोटी खाना पसंद करते हैं, मगर गुलामी की खीर मलाई नहीं।हम दान, त्याग,संकल्प,दया,क्षमा और बलिदान की भाषा में आचरण करते हैं। डर,भय,भ्रम और पूर्वाग्रह हमारे हृदय के शब्दकोष में नहीं मिलते। हम दुर्बल,असहाय,पीड़ित लोगों की रक्षा के लिए ही इस धरती पर आये हैं।अपनी अस्मिता बचाने के लिए जौहर करने वाली माताओं की हम संताने  हैं।आज कुछ लोग हमारे अस्तित्व को मिटाने की फ़िराक में हैं। ऐसे लोगों को इस कहानी से सीख लेनी चाहिए।...

जंगल के समस्त स्यार एकत्रित होकर एक सुर में जंगल के राजा 'सिंह' को मारने की बात की। स्यारों का नेता सभी स्यारों को समझाते हुए कहा-जानते हो,अगर शेर सामने हो और उसे मारना हो तो क्या करना चाहिए? सबसे पहले शेर की आँख में आँख डालनी चाहिए फिर मूंछों पर ताव देनी चाहिए फिर आँख को धीरे धीरे लाल करनी चाहिए और फिर अचानक शेर पर आक्रमण कर देना चाहिए।स्यार यह बता हीं रहा था कि तब तक  शेर घूमता हुआ वहाँ कहीं से आया और स्यार को एक जोरदार पंजा मारा। स्यार बहुत दूर जाकर गिरा,सारे अन्य स्यार  भागकर छुप गए। शेर झूमता हुआ अपने रास्ते चला गया। फिर स्यार इकठ्ठा होकर नेता स्यार से पूछे कि आप तो बड़ी बड़ी हाँक रहे थे और शेर चाँटा मारकर चला गया और आप कुछ नहीं कर पाए। नेता स्यार ने दलील दी कि मैं अभी आँख लाल भी नहीं कर पाया था कि तब तक शेर आ गया।इसलिए मैं कुछ नहीं कर पाया। वहाँ एक बूढ़ा अनुभवी स्यार भी बैठा था। उसने स्यारों को बताया कि भाइयों जिस तरह की बात हम लोग कर रहे हैं ,वह सही नहीं है। ईश्वर ने सबको अलग अलग कार्य करने की क्षमता दी है। हम अन्य सभी कार्य कर सकते हैं लेकिन हम स्यार जाति को शेर मारने का अधिकार नहीं दिया गया है।उसने एक श्लोक के माध्यम से समझाया कि-
"शूरोsअसि,विद्योsअसि,दर्शनीयोsअसि च पुत्रक,
यस्य कुले त्वम् उत्पन्न: सिंह: तत्र न हन्यते।।"

अर्थात तुम शूरवीर हो सकते हो,विद्वान भी हो सकते हो,दार्शनिक भी हो सकते हो,लेकिन तुम जिस कुल में उत्पन्न हुए हो,वे शेर की हत्या नहीं कर सकते।

हम भी शेरदिल पूर्वजों की संतान हैं। हमें अपने पूर्वजों पर गर्व करना चाहिए।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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