Sunday, October 11, 2015

गज़ल

वन्दे मातरम्! मित्रो!आज एक गजल आप सभी को समर्पित कर रहा हूँ। आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया अपेक्षित है।

हरसूं लगी इस आग को,बुझाएगा कौन?
बढ़ के आगे अपना हाथ,जलाएगा कौन?

घिरी हैं मगरमच्छों से,मछेरों से नदी में,
तिरती मछलियों को आखिर,बचाएगा कौन?

बड़ी कड़वी दवा है,मर्ज का नुकसान करती है,
मगर जिद्दी बीमारों को ,पिलाएगा कौन?

हजारों गम लिए इंसान ,गूंगे की तरह है,
कवि भी मौन हो तो बोलिए ,सुनाएगा कौन?

डॉ मनोज कुमार सिंह

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