Sunday, October 11, 2015

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्! आप सभी मित्रों को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनायें। मित्रो!हिंदी को समर्पित एक मुक्तक प्रस्तुत कर रहा हूँ। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।

अंतस् की तरंगों की सहज ,अभिव्यक्ति है हिंदी।
मुखर जन चेतना अभिव्यंजना की ,शक्ति है हिंदी।
हमारे राष्ट्र की संकल्पना की ,नींव की भाषा,
समर्पित मातृभूमि अस्मिता की, भक्ति है हिंदी।

डॉ मनोज कुमार सिंह

चरित्र चिंतन(भोजपुरी में)

राम राम सगरी मित्र लोगन के!आईं सभे चिंतन मनन कइल जाव ओह विषय पर जवना चिझु के आदमी जिनगी भर बचा के राखे के चाहेला आ जवना के हमनी के कहेनी सन 'चरित्र'।जिनगी में एह तत्त्व के समाप्त हो गईला के बाद धन,सत्ता,स्वास्थ अउरी विद्वत्ता के कवनो महत्त्व ना रहि जाला। चरित्र के हिमोग्लोबिन से हीं शक्ति मिलेला आ एही शक्ति से आदमी जिनगी में सफल भी बनेला। इहे शक्तिया आदमी के आत्मविश्वास,आत्मनिर्भरता अउरी शौर्य तेजस्विता के असली महतारी हीय। एकरे बल पर आदमी बिना डेरइले सगरी काम करि देला। एह शक्ति से उपजल आदमी आतंक, भय आदि से ना घबराला ,काहे कि एह शक्ति के आगे दुश्मन के बनैला शक्ति भी झुक जाले। अपना देश में महात्मा गांधी होखस भा महात्मा बुद्ध चाहे दयानंद सरस्वती या विवेकानंद,एह  लोगन के चरित्र के सामने एह लोगन के विरोधी भी झुक गइलन,हार गइलन। चरित्र के बिना अदिमिये ना राष्ट्र भी मटियामेट हो जाला। एही से हर आदमी के आपन चरित्र ऊँचा बना के राखे के चाहीं ,काहे कि चरित्रवान आदमी के कारण हीं समाज अउरी राष्ट्र के चरित्र बनेला।दुर्भाग्य के बात बा कि अधिकतर बुद्धिजीवी चरित्र निर्माण के बजाय छद्म रूप से धन कामाये में लागन बाड़ें।चरित्र के अर्थ खाली कामपरक आचरण के पवित्रता से नईखे। बाकी राउर विचार आ मत आमंत्रित बा।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कविता(सौन्दर्य की खोज)

वन्दे मातरम्!मित्रो! मेरी अभी अभी की एक रचना -कैसी है बताएँ। आपकी टिप्पणियों का इन्तजार है।

मैं  आज तक
भाग हीं रहा हूँ
सत्यम शिवम् सुन्दरम की तलाश में।
जबकि ऐसी हरकत पर
सामने पड़ा एक नन्हा सा
दुधमुंहा बच्चा
मुझे देख कर 
मुस्कुरा देता है।
पालथी मारे सुबह
अपनी गोद में उगे
फूलों पर पड़े ओसकण से
इन्द्रधनुषी संवाद में जब
मशगूल रहता है
तो मुझे फुरसत हीं नहीं होती है
कि इनसे पूछूँ
कि सौन्दर्य कहाँ है।
जबकि कालिदास को
पढ़ते हुए भी नहीं जान पाया
कि फूल हो या पेड़,वह अपने आप में समाप्त नहीं हैं।
वह अन्य वस्तु को दिखाने के लिए
उठी हुई उंगुली का इशारा है।
मैं अभी भी
कजरारे बादलों के पीछे पीछे
भाग हीं रहा हूँ।
पता नहीं नागार्जुन ने
हिमालय के
अपरूप जादुई आभा को देखकर
क्यों अपलक हो गए थे।
मुझे तो इतना भी नहीं पता
कि शमशेर बहादुर ने
भोर के नभ को
राख से लिपा हुआ
चौका(अभी गीला पडा है) क्यों कहा?
कवि माघ ने भी
शिशुपाल वध में
' क्षणे क्षणे यन्न्वतामुपैति तदैव रूपं रमणीयताया ' से
सौन्दर्य की एक परिभाषा रच देने की
क्यों  कोशिश की।
किसी ने धीरे से
मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा
जो हृदय को आर्द्र कर दे
वहीँ सौन्दर्य है।
अभी मैं अमावस की
काली चादर पर
छितराए तारों से बात कर रहा हूँ।
धीमी रफ़्तार  और
दबे पाँव से
पता नहीं
कहाँ से आ गई बारिश
और मेरे भीतर प्रलय मचा रही है।
कोई रोको इसे।
इसे पता नही
कि मैं सौन्दर्य की खोज में
वन,उपवन,गिरि,सानु,कुंज में
दर दर भाग  रहा हूँ
आज तक।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गज़ल

वन्दे मातरम्! मित्रो!आज एक गजल आप सभी को समर्पित कर रहा हूँ। आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया अपेक्षित है।

हरसूं लगी इस आग को,बुझाएगा कौन?
बढ़ के आगे अपना हाथ,जलाएगा कौन?

घिरी हैं मगरमच्छों से,मछेरों से नदी में,
तिरती मछलियों को आखिर,बचाएगा कौन?

बड़ी कड़वी दवा है,मर्ज का नुकसान करती है,
मगर जिद्दी बीमारों को ,पिलाएगा कौन?

हजारों गम लिए इंसान ,गूंगे की तरह है,
कवि भी मौन हो तो बोलिए ,सुनाएगा कौन?

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!आज एक समसामयिक मुक्तक पुनः आपको समर्पित कर रहा हूँ। स्नेह अपेक्षित है।

देता है रोज-रोज, पकिस्तान दोस्तों।
दिल पर हमारे जख्म का, निशान दोस्तों।
आयेगा दिन वो कब तक,उसकी जमीन को,
फिर कह सकें ,है मेरा हिन्दुस्तान दोस्तों।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज पुनः युगीन परिवेश से उत्पन्न एक  खुरदुरा मुक्तक आप सभी को समर्पित कर रहा हूँ।आपका सात्विक स्नेह सदैव अपेक्षित है। अपनी टिप्पणियों से रचना को आप्लावित करें.........

न अपने पक्ष में तेरी, गवाही चाहता हूँ।
न तेरी झूठ की मैं,वाहवाही चाहता हूँ।
मुहब्बत,त्याग,संयम को,बचाकर जिंदगी में,
तुम्हारे स्वार्थ की पूरी ,तबाही चाहता हूँ।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो! आज पुनः एक नया मुक्तक आप सभी को समर्पित कर रहा हूँ। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।

कोई गर मौत बनकर आ गया तो,
रहेगा कौन फिर हमदर्द बनकर।
मगर हो सामने कोई शिखंडी,
कोई कैसे लड़ेगा मर्द बनकर।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!एक समसामयिक मुक्तक आप सभी को समर्पित कर रहा हूँ। स्नेह अपेक्षित है।

स्वार्थ सिद्धि का मंत्र ,बन गया आरक्षण।
सुविधाओं का तंत्र ,बन गया आरक्षण।
आज योग्यता के खिलाफ,मैं देख रहा,
जैसे इक षड्यंत्र ,बन गया आरक्षण।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे भारतमातरम्!मित्रो!एक समसामयिक मुक्तक आप सभी को समर्पित कर रहा हूँ। स्नेह अपेक्षित है।

स्वार्थ सिद्धि का मंत्र ,बन गया आरक्षण।
सुविधाओं का तंत्र ,बन गया आरक्षण।
आज योग्यता के खिलाफ,मैं देख रहा,
जैसे इक षड्यंत्र ,बन गया आरक्षण।।

डॉ मनोज कुमार सिंह