वंदेमातरम् मित्रों !आज एक ताज़ा ग़ज़ल आपको सादर समर्पित है ......................आपका स्नेह अपेक्षित है ....
थोड़ा देखो, यूँ चुपचाप भी |
इस सियासत का, घर आप भी |
यहाँ दिखते हैं ,चारो तरफ ,
आदमी की तरह, साँप भी |
मुल्क में मुफ्त, बंटने लगे ,
पानी, बिजली औ, लैपटॉप भी |
उनके वरदान से सौगुना ,
खुबसूरत है ,अभिशाप भी |
पद औ पावर के, संयोग से ,
कद से ऊँचा, दिखे नाप भी |
पुण्य का अर्थ, खोने लगा ,
आज जायज हुआ, पाप भी |
एक नेता ने, माँ खोज ली ,
खोज ले इक अदद, बाप भी |
जिंदगी है, मुकम्मल तभी ,
सुख के संग जब हो, संताप भी|
डॉ मनोज कुमार सिंह
थोड़ा देखो, यूँ चुपचाप भी |
इस सियासत का, घर आप भी |
यहाँ दिखते हैं ,चारो तरफ ,
आदमी की तरह, साँप भी |
मुल्क में मुफ्त, बंटने लगे ,
पानी, बिजली औ, लैपटॉप भी |
उनके वरदान से सौगुना ,
खुबसूरत है ,अभिशाप भी |
पद औ पावर के, संयोग से ,
कद से ऊँचा, दिखे नाप भी |
पुण्य का अर्थ, खोने लगा ,
आज जायज हुआ, पाप भी |
एक नेता ने, माँ खोज ली ,
खोज ले इक अदद, बाप भी |
जिंदगी है, मुकम्मल तभी ,
सुख के संग जब हो, संताप भी|
डॉ मनोज कुमार सिंह
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