Sunday, December 22, 2013



वंदेमातरम् मित्रों !आज एक ताजा ग़ज़ल कुछ सुझाव के रूप में ' AAP' को समर्पित ,जो अपने सिवा सभी को बेईमान समझती है ................


थोड़ी उपलब्धियाँ क्या मिल गईं हैं 'आप' को |
अहं में डूबकर ,दे दी चुनौती बाप को |

जहर क्यों उगलते हो ,आप गर इंसान हो ,
क्यों संन्यास पर ,मजबूर करते साँप को |

ज़रा अभ्यास कर लो तुम , सत्ता चलाने की ,
मिटाना है अगर इस देश से हर पाप को |

बहुत आसान है बेईमान गैरों को बता देना ,
कठिन सहना है पर ,सच्चाईयों के ताप को |

अगर लड़ना है तुमको ,लड़ ज़रा मैदान में आकर ,
दिखा देगी तुम्हें जनता ,तुम्हारी नाप को |

अभी तुमसे बड़े हम आज भी दिल्ली रियासत में ,
जश्न में भूल क्यों जाते ,कमल के छाप को |

डॉ मनोज कुमार सिंह

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