Sunday, December 22, 2013

वंदेमातरम् मित्रों !आज एक मुक्तक आपको सादर समर्पित कर रहा हूँ ,अगर सही लगे तो आपका स्नेह पाना चाहूँगा...................


हर इंसां का अपना, इक अफसाना होता है |
अलग-अलग जीने का, ताना-बाना होता है |
केवल साँसों का चलना ,जीवन का अर्थ नहीं ,
जीने का ज़ज्बा ,धड़कन में लाना होता है |

डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम् मित्रों !आज एक ताज़ा ग़ज़ल आपको सादर समर्पित है ......................आपका स्नेह अपेक्षित है ....

थोड़ा देखो, यूँ चुपचाप भी |
इस सियासत का, घर आप भी |

यहाँ दिखते हैं ,चारो तरफ ,
आदमी की तरह, साँप भी |

मुल्क में मुफ्त, बंटने लगे ,
पानी, बिजली औ, लैपटॉप भी |

उनके वरदान से सौगुना ,
खुबसूरत है ,अभिशाप भी |

पद औ पावर के, संयोग से ,
कद से ऊँचा, दिखे नाप भी |

पुण्य का अर्थ, खोने लगा ,
आज जायज हुआ, पाप भी |

एक नेता ने, माँ खोज ली ,
खोज ले इक अदद, बाप भी |

जिंदगी है, मुकम्मल तभी ,
सुख के संग जब हो, संताप भी|

डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम् मित्रों !आज एक मुक्तक आप सभी को सादर समर्पित है .............आपका स्नेह अपेक्षित है .......................

मातृभूमि की पीड़ा का मैं गायक हूँ |
अन्यायों से लड़ने वाला नायक हूँ |
दरबारी रागों के गीत नहीं रचता ,
सत्ता की नज़रों में मैं खलनायक हूँ |

डॉ मनोज कुमार सिंह

वंदेमातरम् मित्रों !आज फिर एक ताज़ा ग़ज़ल आपको सादर समर्पित कर रहा हूँ ...............आपका स्नेह सादर अपेक्षित है ................

मान रहा कुछ बाधाएँ हैं, दिल्ली में |
बाकिर सब तो, सुविधायें हैं, दिल्ली में |

गाँव हमारा, दिल्ली जैसा कब होगा ,
लगी निगाहें ,आशायें हैं, दिल्ली में |

गिरवी पड़ी जमाने से ,देखी हमने,
गाँवों की सब कवितायें हैं ,दिल्ली में |

लूट रहे सब देश ,तरीके अलग-अलग ,
तरह-तरह की प्रतिभाएँ हैं ,दिल्ली में |

महज जुर्म औ बलात्कार से सम्बंधित ,
मीडिया देती सूचनायें हैं, दिल्ली में |

माँ बूढ़ी -सी ,पर आंटी के चेहरे पर ,
सेव सरीखी, आभाएँ हैं ,दिल्ली में |

पश्चिम की नंगी ,अधनंगी संस्कृति की,
सूर्पनखा -सी, महिलाएं हैं, दिल्ली में |

सच कहना अब, जुर्म हो गया है यारों ,
धाराओं पे, धाराएँ हैं, दिल्ली में |

डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम् मित्रों ! आज एक ताज़ा ग़ज़ल आपको सादर समर्पित है .......... आपकी स्नेह पूर्ण टिप्पणी सादर अपेक्षित हैं ................


मैं भी अन्ना ,तू भी अन्ना ,जबसे ये सन्देश बना |
भ्रष्टतंत्र से लड़ने वाला ,इक अद्भुत परिवेश बना |

बच्चा-बच्चा राष्ट्रभक्ति की गंगा में स्नान करे ,
ऐसा गौरवपूर्ण ,समुन्नत, अपना भारत देश बना |

सोने की चिड़िया था भारत ,ज्ञान राशि में विश्व गुरु ,
पर अपने अपकर्मों से हीं, कंगालों-सा वेश बना |

अगर चाहते हो शोषित ,वंचित को समुचित न्याय मिले ,
कानूनों को संकल्पित कर ,द्रौपदी का केश बना |

भ्रष्टाचार मिटाने को फिर , दिल्ली में भ्रष्टों से मिल ,
अनुबंधन की राजनीति में, तिकड़म का प्रदेश बना |


डॉ मनोज कुमार सिंह
वंदेमातरम् मित्रों ! आज एक तात्कालिक परिस्थिति पर तीन शेर 'आप' को समर्पित .....................

सुना दी उनको अन्ना ने, खरी -सी बात अनशन में |
अलग होकर कभी जिसने, किया था घात अनशन में |

इसी अनशन से जिसनें, देश में प्रसिद्धियाँ पाईं ,
बता दी एक क्षण में, 'आप' की औकात अनशन में |

सियासी कोशिशें तो देखिये ,कुर्सी के लिए आज ,
अन्ना तक वे पहुँचे, फिर से देने मात अनशन में |

डॉ मनोज कुमार सिंह


वंदेमातरम् मित्रों !आज एक ताजा ग़ज़ल कुछ सुझाव के रूप में ' AAP' को समर्पित ,जो अपने सिवा सभी को बेईमान समझती है ................


थोड़ी उपलब्धियाँ क्या मिल गईं हैं 'आप' को |
अहं में डूबकर ,दे दी चुनौती बाप को |

जहर क्यों उगलते हो ,आप गर इंसान हो ,
क्यों संन्यास पर ,मजबूर करते साँप को |

ज़रा अभ्यास कर लो तुम , सत्ता चलाने की ,
मिटाना है अगर इस देश से हर पाप को |

बहुत आसान है बेईमान गैरों को बता देना ,
कठिन सहना है पर ,सच्चाईयों के ताप को |

अगर लड़ना है तुमको ,लड़ ज़रा मैदान में आकर ,
दिखा देगी तुम्हें जनता ,तुम्हारी नाप को |

अभी तुमसे बड़े हम आज भी दिल्ली रियासत में ,
जश्न में भूल क्यों जाते ,कमल के छाप को |

डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्देमातरम मित्रों !आज टी वी पर सुना की नवाज शरीफ कश्मीर को लेकर जंग करने की बात कर रहा है तो मैं भारत की आवाज बनकर निम्नलिखित चार पंक्तियों के माध्यम से उसे सावधान करना चाहता हूँ .........................और आपका समर्थन चाहता हूँ ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

सुन शरीफ! रिश्तों को तू बदरंग नहीं करना |
गर धरती पर रहना है, तो जंग नहीं करना |
भौंकोगे,मारे जाओगे ,बिना वजह हीं दौड़ा कर ,
कभी हिन्द के शेरों को ,तुम तंग नहीं करना ||

डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्दे मातरम मित्रों | आज एक सार्थक सवाल'' मुक्तक ''छंद में आपसे पूछ रहा हूँ ..........आशा है टिप्पणी रूप में आपका स्नेह प्राप्त होगा ...........

अवगुणों को गुण बताकर , जी रहा क्यों आदमी ?
अपने हाथों हीं जहर खुद ,पी रहा क्यों आदमी ?
कोरी चादर जिंदगी की, फाड़कर रोते हुए ,
दर्द के अहसास को फिर, सी रहा क्यों आदमी ?

डॉ मनोज कुमार सिंह
वन्देमातरम मित्रों ! आज एक सहज सच को'' मुक्तक'' में सहज शब्दों में आपको समर्पित कर रहा हूँ .............आशा है आपका स्नेह मुझे यथावत् मिलेगा ............

आदमी भी जानवर है ,मानिए|
बुद्धि से बस श्रेष्ठवर है ,मानिए |
गलतियों से सीख लेता है सदा ,
इसलिए वह मान्यवर है ,मानिए ||

डॉ मनोज कुमार सिंह

Sunday, December 1, 2013

वन्देमातरम मित्रों !आज फिर एक ताज़ा ग़ज़ल आप सभी को समर्पित कर रहा हूँ ...............अच्छी लगे तो आपका स्नेह  टिप्पणी के रूप में पाना चाहूँगा............


समय करवट बदलता किस कदर है |
खबर जो छापता था ,खुद खबर है |

सही इंसान की पहचान मुश्किल ,
भरोसे में भरा कितना जहर है |

बहर बस ढूढ़ते हैं वे ग़ज़ल में ,
दिलों के दर्द से जो बेखबर हैं |

जहाँ से हादसों का दौर आए ,
समझ लो आ गया कोई शहर है |

कोई लमहा ना यूँ  बेकार जाए ,
वक्त इस जिंदगी का मुख़्तसर है |

पता ना मर्ज क्या है दिल में उनके ,
अभी भी हर दवा यूँ बेअसर है |

सितमगर था जो मेरी जिंदगी का ,
वहीँ अब न्याय का भी ताजवर है |

डॉ मनोज कुमार सिंह