Thursday, November 28, 2013

वन्देमातरम मित्रों !आज एक ताज़ा ग़ज़ल आपको समर्पित कर रहा हूँ|अच्छी लगे तो आपका स्नेह टिप्पणी के रूप में पाना  चाहूँगा ......................

खबर के नाम पर मीडिया ,जहाँ बाज़ार हो जाए |
घोटालों में डूबी आकंठ, जब सरकार हो जाए |
वहाँ घुट -घुट के मरने के सिवा, अब रास्ता है क्या  ,
जहाँ आतंक ,हत्या ,जुर्म कारोबार हो जाए|
भगत ,आज़ाद, विस्मिल- सा, हमारे  भव्य भारत में 
धरा की कोंख से कोई, पुनः अवतार हो जाए| 
हो रहा मुल्क में षड़यंत्र, शेरों को मिटाने की ,
कि फिर  सत्तानशीं  इक बार रँगा  स्यार हो जाए |
विवादों को मिटाकर ,धर्म ,मजहब ,जाति का यारों ,
करो संवाद तो ये मुल्क, एकाकार हो जाए |
 नई तस्वीर अपने मुल्क की, गर चाहते हो तुम ,
नई सरकार चुनने के लिए, हुँकार हो जाए |

डॉ मनोज कुमार सिंह 

Monday, November 25, 2013

वन्दे मातरम मित्रों !आज आप सभी की सेवा में एक मुक्तक प्रस्तुत कर रहा हूँ ,आशा है आपकी टिप्पणी के रूप में मुझे स्नेह मिलेगा ,सादर ............

सुबह शाम मैं गजलें, नज्म,कता लिखता हूँ |
इसी बहाने अपना, सही पता लिखता हूँ |
सच लिखना है खता, अगर दुनिया में यारों ,
दिल के कागज पर मैं, रोज खता लिखता हूँ |

डॉ मनोज कुमार सिंह

Sunday, November 24, 2013

गर्दनें कट रहीं हैं ख्वाब की, फसल की तरह |
जिंदगी लग रही है आज, महज पल की तरह |

मौत का हादिसा अब, हादिसा नहीं लगता ,
मर्सिया पढ़ रहे हैं लोग, अब ग़ज़ल की तरह |

झोपड़ी में हीं कैद हो के, रह गए रिश्ते ,
अजनबी हैं यहाँ सब, शहर के महल की तरह |

जिंदगी जी रहे हैं लोग, कई किश्तों में ,
कभी नदियों तो कभी थार की, मरुथल की तरह |

दिन में वे बाँटते, तहज़ीब की लम्बी चादर ,
रात होती है जिनकी बार में, जंगल की तरह |
चाहे जो भी सज़ा दीजिए |
दर्दे दिल को बता दीजिए |
माफ़ करके खता सब मेरी ,
मुझको अपना बना लीजिये |
आप नाखुश कब तक रहें फिर ,
दिल किसी का दुखा दीजिए |
खो गया गर हो दिल आपका ,
दिल किसी का चुरा लीजिए|
पास आए अगर हुश्न कोई ,
इश्के तोहमत लगा दीजिए |
गर मेरे घर की परवा नहीं ,
तो दूसरा घर बसा लीजिए|
जब तक सच को झूठ ,झूठ को सच्चा समझा जाएगा |
तब तक जीवन सन्दर्भों को कैसे समझा जाएगा ?
व्यथा -कथा आँखों से कहकर ,हम तो चुप हो जाते हैं ,
घड़ियाली आँसू को बोलो ,कैसे समझा जाएगा ?
आप सभी मित्रों को छठ पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ ....................

आत्म संयम साधना के, पर्व पर सबको नमन |
सादगी सद्भावना के, पर्व पर सबको नमन |
सत्य औ साक्षात् अद्भुत चेतना की रश्मि जो ,
सूर्य की आराधना के, पर्व पर सबको नमन ||

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जीवन जीने के लिए 
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कविता 

जीवन जीने के लिए
एक मुट्ठी आकाश
आशा की
और कुछ गज जमीन
भावनाओं की चाहिए
जिस पर चलते हुए
कर सकें प्राप्त
एक सम्यक ,सुरुचि संपन्न
सोच की सीढ़ी
जिसके सहारे चढ़ सके
अनुभूतियों के लत्तर
मन के देह पर
और देख सके
आत्मा का सही स्वरुप
पा सके
अपनी खोयी हुई
अस्मिता की चाँदनी
भ्रम के गुहांधकार से
और भोग सकें
सदेह ईश्वर के संसार को
|

ग़ज़ल 

कभी-कभी सोचा करता हूँ ,बैठे यहाँ अकेले में |
बाँच रहा अपनी कवितायें क्या भैंसों के मेले में ?


बड़े-बड़े सब चले गए, समझा कर दुनिया वालों को ,
वैसी की वैसी दुनिया है ,अब भी पड़ी झमेले में |

ज्ञानी अब विज्ञानी बनकर, शैतानी चालें चलता ,
इंसानी ताकत बंधक है ,बदबूदार तबेले में |

रिश्तों की सच्चाई देखी ,स्वार्थ भरी इस दुनिया में ,
कड़वाहट भी रिश्ते रखते , देखा नीम-करेले में|

गीता ,सीता ,राम,कृष्ण की बातें सब बेकार हुईं ,
बहते सारे लोग यहाँ अब ,भौतिकता के रेले में|