Monday, May 13, 2013

जाति-लिंग में बाँट-बाँट कर ,आज अदीबों की दुनिया ,


कुंठाओं से ग्रस्त यहाँ कुछ ,अपनी फितरत लिखते हैं |



दलित ,दलित कुछ चिल्लाते हैं ,औरत,औरत चिल्लाती ,


इसी बहाने कुछ तो अपनी , दिल की नफरत लिखते हैं |



आज मुहब्बत खतरे में है, इंसानों के बीच यहाँ ,


उनको क्या चिंता जो केवल, दौलत ,शोहरत लिखते हैं |



माँ ,बेटी औ बहन रूप से, औरत जबसे मुक्त हुई ,


तब से प्रगति की प्यासी, अधरों की हसरत लिखते हैं |



सुनने को तैयार नहीं, कोई भी हम दीवानों की ,


जो जीवन के धड़कन की, इक सही जरुरत लिखते हैं |

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,डॉ मनोज कुमार सिंह

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