Saturday, May 12, 2012

मेरा हंसना ,हंसाना ,उन्हें अच्छा लगता है |
मेरा नाचना गाना ,उन्हें अच्छा लगता लगता है ||
मुझे क्या अच्छा लगता है ,उन्हें क्या मतलब ,
उनकी हाँ में हाँ मिलाना ,उन्हें अच्छा लगता है |
जिंदगी पर सवाल खड़ा, मत कीजिये |
जिंदगी से जबाब तलब, मत कीजिये \
जिंदगी को शकुं से प्यार करना , दोस्त !
मौत का कभी अदब, मत कीजिये |
वे मुझे मिटाने की सोचते  हैं |
मैं उन्हें बचाने की सोचता हूँ |
जब रोते हैं वे, अपनी नाकामयाबी पर ,
मैं उन्हें हँसाने की सोचता हूँ||
वे आये हैं, तो जाने का नाम नहीं लेते ,
उन्हें अपनी कविता, सुनाने की सोचता हूँ |
नागफनी से ,घिरा पडा है बागीचा मेरा ,
उसमें कुछ फूल, उगाने की सोचता हूँ|
बादशाह क्यों सोचे ,सिंहासन के सिवा ,
मैं तो अदना फकीर हूँ ,जमाने की सोचता हूँ |
आईनों को तोडना, उनका शगल है'' मनोज '',
उसे जोड़कर, उन्हें दिखाने की सोचता हूँ |

Wednesday, May 9, 2012


दाँत बीच जस जीभ रहे ,काँटों संग गुलाब |
तस  कष्टों  के बीच भी, रख सकते हम ख्वाब ||

कविता शब्द का ढेर है ,मान रहे कुछ लोग |
कविताओं के नाम पर ,अनुचित किये  प्रयोग ||

कविता ,भाव की मूर्ति है , शब्द हैं उसके अंग |
अर्थ रंग में डूबकर ,होती है संपन्न ||
दर्द भी ईश्वर का, अनुदान होता है |
जो सह लेता है ,उसके लिए वरदान होता है |
माँ की कोंख का दर्द ,खुदा का दर्द है ,
इसलिए माँ का दुनिया में, सम्मान होता है |
दर्द इसलिए मत लीजिये कि कुछ मिलेगा ,
इसमें त्याग का, अपमान होता है |
दर्द जब, हमदर्द बन जाता है'' मनोज '',
तब दुनिया में, सबसे सुखी इन्सान होता है |

Tuesday, May 8, 2012

 सपने मेरे जीवन के सब ,साकार कराना हे ईश्वर !
अफसर मुझको शीघ्र बनाना ,शीघ्र बनाना ,हे ईश्वर  !
भ्रमण हेतु सरकारी गाड़ी ,
बीबी के तन महँगी साड़ी,
कुर्सी का हत्था ना छोडू ,नहीं छुड़ाना हे ईश्वर  !
अफसर मुझको शीघ्र बनाना ,शीघ्र बनाना ,हे ईश्वर  !
इन्टरनेट पर चोंच लड़ाऊँ ,
मैक्ड्वेल का पैग चढ़ाऊँ ,
राग-रंग अभिसार नदी में ,मुझे डुबाना हे ईश्वर  !
अफसर मुझको शीघ्र बनाना ,शीघ्र बनाना ,हे ईश्वर  !
बिल्ली पालूं ,कुत्ता पालूं ,
उंगुली पाँचों घी में डालूं ,
छुट्टा चारा चरुं रोज मैं ,मुझे चराना हे ईश्वर ! 
अफसर मुझको शीघ्र बनाना ,शीघ्र बनाना ,हे ईश्वर !
पेट बढ़ेगा ,भूख बढ़ेगी ,
सही कार्य में चूक  बढ़ेगी,
उल्टी चाल चलूँ तो  मेरी, मदद कराना हे ईश्वर !
अफसर मुझको शीघ्र बनाना ,शीघ्र बनाना ,हे ईश्वर !
दूसरों की मैं कमी गिनाऊँ ,
कमी दिखाकर  रौब  जमाऊँ ,
झुकें  रहे सब सम्मुख मेरे, उन्हें झुकाना हे ईश्वर !
अफसर मुझको शीघ्र बनाना ,शीघ्र बनाना ,हे ईश्वर !

बस छू लिया था ,अनछुआ पहलु गुलाब का ,
मदहोश हूँ मैं अब तक ,मुझे होश नहीं है |
हर शख्स समझता है ,धड़कन नहीं मुझमे ,
अल्लाह कसम अब भी ,वो खामोश नहीं है |
पतझर पे हँसे  थे जो ,दुःख भी उन्हें हुआ ,
फागुन में जब पतझर, नया चेहरा दिखा दिया |
सुनता रहा था मौसम ,सुनना नहीं था जो ,
हालात ने मजबूर कर, बहरा बना दिया |
समय से सियासत कर ,  कोई बच नहीं पाया ,
जो मर्द बने थे ,उन्हें हिजड़ा बना दिया |
काँटों पे नचाया जो, खुद नाचता है आज ,
मौसम ने उनकी जिंदगी, मुजरा बना दिया |
आवाज़ नहीं होती, लाठी में खुदा की ,
सागर को उंगुलियों पर, कतरा बना दिया ||

Sunday, May 6, 2012


  दलित -दलित चिल्लाने वाले, हैं अपने हित साधन में ,
  राजनीति साहित्य जहाँ भी, देखो दलित-दलित है |

कुर्सी-कुर्सी !सत्ता-सत्ता!, बांच  सको तो बांचों तुम ,
उत्पीड़न का समर काव्य, पीठों पर अभी सुरक्षित है |

 अपनेपन  की मूर्ति बने हैं ,स्वार्थ पूर्ति के चेहरे ,
 दया- कृपा के चेहरों का, चेहरा विज्ञापित है |

 पेट, पीठ ,कंधे मेरे हैं ,गिरवी पड़े ज़माने से ,
बंगला ,गाडी ,धरती उनकी ,युग का यहीं गणित है |

तीखे तेवर लिए खड़े हैं ,आज आँख के आँसू,
गिरते आँसू युगों -युगों से, अभिशापित हैं