वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक कुण्डलिया हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।
लेना-लेना कामना,देना-देना प्यार।
लेने-देने को समझ,एक महज व्यापार।।
एक महज व्यापार,ख़ुशी से जीना सीखो।
देकर सबको प्यार,सदा गम पीना सीखो।
सत्य यहीं इंसान,काल का महज चबेना।
देना-देना सीख ,छोड़ अब लेना लेना।।
डॉ मनोज कुमार सिंह
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