Wednesday, June 1, 2016

कुण्डलिया

वन्दे मातरम्!मित्रो!आजकल गाँव पर हूँ। इसी से संबंधित एक कुण्डलिया समर्पित है। आप सभी का स्नेह सादर अपेक्षित है।
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शीतल मंद बयार से, सुरभित मेरा गाँव।
भरे दोपहर मग्न हूँ,बैठ नीम की छाँव।
बैठ नीम की छाँव,पाँव फैलाकर बैठा।
शहंशाह मन रहता है,कुछ ऐंठा ऐंठा।
मेरा घर रहता है,मेरे भीतर पल-पल।
जिसमें बहता सपनों का इक झरना शीतल।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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