Saturday, June 25, 2016

गजल

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक ताजा गजल हाजिर है। अगर अच्छी लगे तो अपनी टिप्पणी अवश्य दीजिये।

                    #गजल#

हो कोई रास्ता बेहतर,तो निकालो यारों।
छिपा दिल में कोई निर्झर,तो निकालो यारों।

ये भी कोई जिंदगी है,गमजदा होके जीना,
कभी हँसने का भी अवसर,तो निकालो यारों।

मुख़्तसर जिंदगी में,हो सको हल्का कुछ तो,
शिराओं में घुले कुछ जहर,तो निकालो यारों।

नदी हो या समंदर,खेत तक आते नहीं हैं,
अपनी कोशिश से इक नहर,तो निकालो यारों।

सहमा सहमा हुआ मंजर है,सारी बस्ती का,
जाके हर शख्स का कुछ डर,तो निकालो यारों।

गाँव मिट्टी के जबसे,पत्थरों में ढलने लगे,
उसमें खोया हमारा घर,तो निकालो यारों।

डॉ मनोज कुमार सिंह

दोहा

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक दोहा हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।

राजनीति में मान्य हैं,जब से झूठ,फरेब।
वहीं सफल नेता यहाँ,जिसमें जितना ऐब।

डॉ मनोज कुमार सिंह

Wednesday, June 22, 2016

कुण्डलिया

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज एक कुण्डलिया हाजिर है। आपकी टिप्पणी सादर अपेक्षित है।

लेना-लेना कामना,देना-देना प्यार।
लेने-देने को समझ,एक महज व्यापार।।
एक महज व्यापार,ख़ुशी से जीना सीखो।
देकर सबको प्यार,सदा गम पीना सीखो।
सत्य यहीं इंसान,काल का महज चबेना।
देना-देना सीख ,छोड़ अब लेना लेना।।

डॉ मनोज कुमार सिंह
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मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो! आज एक मुक्तक हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।

आईने में दम नहीं कि चित्र के सिवा,
इंसान के चरित्र का,जो आकलन करे।
बस त्याग,मुहब्बत ही,असली है तराजू,
जीवन में सही मित्र का,जो आकलन करे।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक कुण्डलिया समर्पित है। स्नेह अपेक्षित है।

दुनिया के इस दौर में ,सुविधा के अनुसार।
रिश्तों में भी चल रहा,नाप तौलकर प्यार।
नाप तौलकर प्यार,साथ में शर्तें लागू।
बेपनाह है चाह,कहे मन किससे माँगू।
कहे मनोज इंसान, हुआ है जबसे बनिया।
ऐसे ही निभ रही, आज रिश्तों की दुनिया।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक कुण्डलिया हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।

कुछ माननीय वचन से,लगते हैं विद्वान।
फिर भी कह सकता नहीं,उनको  कभी महान।
उनको कभी महान,आचरण से कुंठित हैं।
जहर भरे दीखते,अवसादों से लुंठित हैं।
स्वार्थ भरे ठगड़े,ये चालाक हैं सचमुच।
बदबूदार विचार,दिया करते जब तब कुछ।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज की घटिया सियासत के नाम एक मुक्तक हाजिर है।आपका स्नेह चाहूँगा।

नंगा है ये नेता,नंगा नाचेगा।
तीन पाँच का रटा,पहाड़ा बाँचेगा।
जिसका अपना कैरेक्टर, खुद ठीक नहीं,
वो दूसरों का कैरेक्टर ,क्या जाँचेगा।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

गजल

वन्दे मातरम्!मित्रो!आज समसामयिक युगबोध से संपृक्त एक गजल आपको समर्पित कर रहा हूँ। अगर अच्छी लगे तो अपनी स्नेहिल प्रतिक्रिया जरुर दें। आपकी हौसला अफजाई ही मेरी ताकत है। सादर,

                 गजल

चढ़ाकर पेड़ की फुनगी पे,फिर नीचे गिराना।
तेरी फितरत है छिपकर,पीठ पर खंजर चलाना।

मुझे मालूम है कैसे,निपटना है अंधेरों से,
मुझे आता तूफानों में,चरागों को जलाना।

मेरे जज्बात को, यूँ छेड़ना मत,फट पड़ेंगे,
पलीते हैं ये बम के,आग देकर आजमाना।

ख़ुशी या गम के आँसू हों,लरजते हैं वो पलकों पे,
निकलने के लिए बस चाहिए उनको बहाना।

बहुत फुफकारते हैं नाग,मुझको देखते हीं,
फिर भी छोड़ा नहीं है,पेड़ चंदन का लगाना।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। आपका स्नेह सादर अपेक्षित है।

ग़मों की भीड़ में मैं,बैठकर महफ़िल सजाता हूँ।
मिले हर जख्म पर,मैं प्यार का मरहम लगाता हूँ।
गरीबी,भूख,लाचारी के,खंजर से हुए घायल,
ऐसे हर शख्स के हर दर्द का मैं गीत गाता हूँ।

डॉ मनोज कुमार सिंह

शेर

वन्दे मातरम्!मित्रो!पोते साहब का पहला कदम वॉकर के साथ।आप सभी की दुआएँ सादर अपेक्षित हैं। एक शेर पोते साहब के लिए-

जब देखता हूँ तुझको,होता है मन हरा।
हर पल निहार कर भी,ये मन नहीं भरा।

डॉ मनोज कुमार सिंह

Wednesday, June 1, 2016

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक हाजिर है। स्नेह अपेक्षित है।

जिनको अपने रिश्तों पर,विश्वास नहीं होता।
तब समझो कोई भी उनके,पास नहीं होता।
अनचाहे शक के घेरे में,जीते जो अपना जीवन,
उनको अपनी खुशियों का,अहसास नहीं होता।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक आप सभी की सेवा में हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।

प्यार हम जिनसे किये,फिर भी सदा,
पीठ पीछे घात, वो करते रहे।
कागजों की छतरियाँ हमको थमा,
अग्नि की बरसात वो करते रहे।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्!मित्रो!एक मुक्तक आप सभी की सेवा में हाजिर है। स्नेह सादर अपेक्षित है।

प्यार हम जिनसे किये,फिर भी सदा,
पीठ पीछे घात, वो करते रहे।
कागजों की छतरियाँ हमको थमा,
अग्नि की बरसात वो करते रहे।।

डॉ मनोज कुमार सिंह

मुक्तक

वन्दे मातरम्! मित्रो!आज एक मुक्तक आपको समर्पित कर रहा हूँ। इसे कहने में कितना सफल हुआ हूँ,आप  ही तय करें।

खुश रहेगा तू,किसी को ख़ुशी देकर देख तो।
शुष्क अधरों को जरा,तू हँसी देकर देख तो।
मर गई इंसानियत को,जिंदगी मिल जायेगी,
तुम दिलों में प्यार की कुछ,नमी देकर देख तो।

डॉ मनोज कुमार सिंह

कुण्डलिया

वन्दे मातरम्!मित्रो!आजकल गाँव पर हूँ। इसी से संबंधित एक कुण्डलिया समर्पित है। आप सभी का स्नेह सादर अपेक्षित है।
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शीतल मंद बयार से, सुरभित मेरा गाँव।
भरे दोपहर मग्न हूँ,बैठ नीम की छाँव।
बैठ नीम की छाँव,पाँव फैलाकर बैठा।
शहंशाह मन रहता है,कुछ ऐंठा ऐंठा।
मेरा घर रहता है,मेरे भीतर पल-पल।
जिसमें बहता सपनों का इक झरना शीतल।।

डॉ मनोज कुमार सिंह