सोचता हूँ लिखूं एक कविता
सोचता हूँ
लिखूं एक कविता
एक ऐसी कविता
जिसे लिख सकूं
और दिख सकूं मैं
खुद उसमे
सुना है आसान नहीं है
कविता लिखना
सचमुच
कविता लिखना
कविता होना है
जैसे आग जलाने के लिए
ताप का होना
जब भी बैठता हूँ
कविता लिखने
लिख नहीं पाता
एक भी शब्द
तब भाड़ने लगता हूँ
कागज कोरा
पारने लगता हूँ
टेढ़ी -मेढ़ी लकीर यूँ ही
जिसमे देखता हूँ
अनायास
एक पेड़
पेड़ में उड़ने को आतुर
एक खुबसूरत चिड़िया
चिड़िया में एक लड़की
लड़की में इन्द्रधनुषी आकाश
आकाश में खिलखिलाता चाँद
चाँद में सपने
सपनों में रंगों की बारिश
बारिश में भीगते पेड़
पेड़ के नीचे
भीगती लड़की
लड़की में भीगता मैं सर्वांग
सोचता हूँ
लिखूं एक कविता |
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