Tuesday, June 4, 2013

चाहता हूँ आदमी हूँ ,आदमी बनकर रहूँ |
जिंदगी भर जुल्म के, प्रतिपक्ष में तनकर रहूँ |

प्रेम का एक भव्य मंदिर, बन सके इस मुल्क में ,
या खुदा मैं एक पत्थर, नींव का बनकर रहूँ |

तितलियों-सा,फूल-सा,खुश्बू से तर करके चमन ,
हर हृदय में मैं , मधुर गुंजार का मधुकर रहूँ |

जुगनुओं-सा हौसला, देता रहूँ मैं रात भर ,
मैं उजालों की किरन का, एक अदद बूनकर रहूँ |

आज कोई आ रहा क्या, तुझसे मिलने के लिए,
आईना ये पूछता ,जब भी मैं बन-ठनकर रहूँ |

..................................डॉ मनोज कुमार सिंह

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