Tuesday, June 4, 2013

अर्थ है श्रृंगार का ,जब देखने वाला मिले |


अर्थ मिलता प्यार को ,जब चाहने वाला मिले |


जिंदगी को प्यार औ श्रृंगार दोनों चाहिए ,


जिंदगी साकार है ,जब साधने वाला मिले |


........................डॉ मनोज कुमार सिंह
स्वार्थ पूर्ति की पृष्ठभूमि पर ,क्रांति नहीं होती है |
मौन साधने से जीवन में, शान्ति नहीं होती है |
सही -गलत पहचान, समझकर ,कर्म करे जो यारों ,
लक्ष्य प्राप्ति में,उसे कभी भी , भ्रान्ति नहीं होती है |

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,डॉ मनोज कुमार सिंह
कुछ ख़ुशी तो कुछ गम, पसंद करते हैं |
कुछ फूल कुछ शबनम, पसंद करते हैं |

जिसे भी चाहते हैं, जिंदगी में हम यारों ,
बहुत से लोग उसको कम, पसंद करते हैं |

हाँ में हाँ मिलाने की, कला में माहिर जो ,
उसे हर बादशा हरदम, पसंद करते हैं |

मिटटी के खिलौने ,मिट्टियों में मिल चुके अब ,
बच्चे खेल में गन ,बम, पसंद करते हैं |

किसी को आदमी में ,देवता दिखता नहीं है ,
यहाँ अब लोग दैरो -हरम, पसंद करते हैं |

०००००००००००००००००००००००० डॉ मनोज कुमार सिंह
चाहता हूँ आदमी हूँ ,आदमी बनकर रहूँ |
जिंदगी भर जुल्म के, प्रतिपक्ष में तनकर रहूँ |

प्रेम का एक भव्य मंदिर, बन सके इस मुल्क में ,
या खुदा मैं एक पत्थर, नींव का बनकर रहूँ |

तितलियों-सा,फूल-सा,खुश्बू से तर करके चमन ,
हर हृदय में मैं , मधुर गुंजार का मधुकर रहूँ |

जुगनुओं-सा हौसला, देता रहूँ मैं रात भर ,
मैं उजालों की किरन का, एक अदद बूनकर रहूँ |

आज कोई आ रहा क्या, तुझसे मिलने के लिए,
आईना ये पूछता ,जब भी मैं बन-ठनकर रहूँ |

..................................डॉ मनोज कुमार सिंह
रूप तुम्हारा कितना बर्बर, तुझ पर मेरा थू थू थू |
सोच तुम्हारी कितनी बंजर, तुझ पर मेरा थू थू थू |


रे वहशी, नर अधम नक्सली, तेरी हीं भाषा में सुन ,
देश तुम्हारा देगा उत्तर ,तुझ पर मेरा थू थू थू |

तुम तो जारज संतानें हो ,देशद्रोह के मानक हो ,
लगते हो बस जंगली सूअर,तुझ पर मेरा थू थू थू |

राष्ट्रद्रोह की पृष्ठभूमि पर ,घात लगाकर केवल तुम ,
विश्वासों को भोंके खंजर ,तुझ पर मेरा थू थू थू |

भारत के उन वीर सपूतों को करता हूँ आज नमन,
बने मील के अद्भुत पत्थर , नक्सल तुझ पर थू थू थू |

वन्दे मातरम !,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,डॉ मनोज कुमार सिंह