रंग आदमियत का

उम्र जिसकी अभी हंसने खेलने खाने की
जरुरत है जिसके हाथों को
प्रेम के पवित्र अहसास की
उड़ते परिंदों - सा सतरंगे
खुले आकाश की
पता नहीं
किसने चुरा लिया उसके
होठों का दुधिया मुस्कान
और
लाद दिया है निर्दोष आँखों में
अकथ थकान
उदास पड़ा सड़क के किनारे
भीड़ के शहर में
धूप की छांव में
सुबह से शाम सुनता रहता
आते-जाते जूतों की आहट
जिसे चमकाने में
ओढ़ लिया है दुनिया भर की मलिनता
समय के इंतजार से
भली- भांति परिचित
उम्र की यह छोटी-सी किताब
पढ़ सको तो पढ़
जिसका अक्षर-अक्षर
दर्द का तडपता इतिहास है
अरमानों के खून से लथपथ
असुरक्षित दस्तावेज है
जो कभी भी
समय के हासिये से
तार-तार हो बिखर सकता है
विरासत में प्राप्त
उपेक्षा और झिडकियों का
वहंगी ढोता यह श्रमरत
वर्तमान श्रवण
मानो एकमात्र पुत्र प्रमाणिक
वह तोडती पत्थर का
जब देखता है
श्रम की थाली में अर्थ की व्यर्थ ठनक
जैसे गर्म तवे पर दो बूंद जल की फद्फदाहत
कम है साहब- टोकता है बच्चा
पलटते पांव को जैसे रोकता है बच्चा
कि प्रतिप्रश्न कि-
तू बहुत बोलता है
जुबान अधिक खोलता है
कुछ डर जाता है बच्चा
भीतर ही भीतर मर जाता है बच्चा
और मूक नज़रों से देखने लगता है
अठन्नी-चवन्नी में
बीमार माँ की दवा
तीन- तीन जवान बहनों की शादी
अपंग पिता की वैसाखी
अक्स अपनी बेवसी का
सुबह का स्वप्न
रात की रोटी
श्रम का वर्तमान
रंग आदमियत का
नीयत ईश्वर का
जूते अपने हाथ का
जिसे कभी भी फेंक सकता है
आकाश के चेहरे पर
बेहिचक1
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