Monday, April 22, 2024

ऊँचाई बनाम गहराई

ऊँचाई बनाम गहराई
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        ● -/ डॉ मनोज कुमार सिंह 

एकदिन हिमालय पर
जब मैं  चढ़ रहा था
तालियाँ बजती रहीं।
मैं शिखर छूकर जब उतर आया
तो दुनिया ने मालाओं से लाद दिया।
फिर भी मैं संतुष्ट नहीं हुआ।
कुछ दिन बाद मैं चुपके से 
समुद्र की गहराइयों में उतरा
और उतरता ही चला गया
कहीं कोई ताली नहीं बजी
कोई चर्चा नहीं,
किसी को फिक्र नहीं कि
कहाँ हूँ मैं।
जब तक मैं दृष्टिगत था
मेरे पास एक सुख का छद्म जरूर था
मगर जबसे मैं अचर्चित हूँ
आत्मीय हूँ,आनंदित हूँ
आज भी समुद्र की
अतल गहराइयों में 
तिर रहा हूँ।
गहराई में संतुष्टि मिलती है।
एक बार आप भी 
गहराई में उतर कर तो देखिए,
लेकिन आप उतरेंगे नहीं,
आप समतल पर चलने वाले
हिमालय की ऊँचाई से ही
प्रभावित रहे हैं और रहेंगे भी।
समुद्र की गहराई आपको आकर्षित
नहीं करती। 

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