Thursday, February 16, 2023

आस्था और विज्ञान में विवेकसम्मत समन्वय जरूरी (आलेख)



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आस्था और विज्ञान में विवेकसम्मत समन्वय जरूरी 

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मेरी समझ से आस्था और विज्ञान इन दोनों से बड़ा विवेक सम्मत ज्ञान होता है।यह निरंतर बदलाव में संचरित होकर नित नूतन तेवर और कलेवर के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहता है यानी ज्ञान एक प्रगतिशील प्रक्रिया है।ज्ञान जब विनम्रता से जुड़ता है,तो भाव के तंतु कोमल हो जाते हैं,लेकिन ज्ञान जब विज्ञान से जुड़ता है तो वह जड़ ठोस और शुष्कता को प्राप्त कर लेता है।आस्था अंधभक्ति नहीं होती,इसमें आत्मीयता का मूलाधार होता है।माँ को कोई भी जानने से ज्यादा मानने में विश्वास करता है।माँ जिसे पिता बताती है,बच्चा उसे अपना बाप मान लेता है,लेकिन जब  किसी माँ को अपने बच्चे के लिए पिता की जरूरत होती है और कोई पिता होने से इनकार करता है, तो विज्ञान उसका डीएनए टेस्ट द्वारा दूध का दूध पानी का पानी कर देता है।बच्चे को उसका हक़ मिल जाता है।
मनुष्य के लिए कोमलता और कठोरता दोनों आवश्यक है।बस आस्था में भय का स्थान नहीं होना चाहिए,इसमें  प्रेम और विश्वास को प्रमुखता से जोड़ा जाना चाहिए।विज्ञान भय मुक्त करता है,लेकिन मनुष्यद्रोही आचरण इसे भयानक रूप में प्रयोग कर रहा है।जिसके कारण दुनिया विध्वंस के कगार पर खड़ी है यानी ज्ञान को संस्कारित न किया जाए तो विध्वंसक रूप ले लेता है।इसका ताज़ा उदाहरण रूस और यूक्रेन युद्ध है।
आस्था और तर्क मनुष्यों के लिए ही है।विवेक सम्मत ज्ञान ही विश्व कल्याण कर सकता है।विनम्रता से प्राप्त ज्ञान कल्याणकारी होता है।आस्था से अंतर्मन विशुद्ध होता है,वही विज्ञान से भौतिक उत्थान।इसीलिए मनुष्य को आस्थावान वैज्ञानिक होना चाहिए,जिससे उसका सम्पूर्ण विकास हो।आस्था धैर्य , क्षमा , संयम , चोरी न करना , स्वच्छता , इन्द्रियों को वश मे रखना , बुद्धि , विद्या , सत्य और क्रोध न करना ( अक्रोध )  के धर्म तन्तुओं से निर्मित भाव है जो मनुष्य के उदात्त रूप को परिलक्षित करता है।विज्ञान मनुष्य को मंगलग्रह और चाँद पर तो पहुँचा दिया,लेकिन वह मनुष्य को मनुष्य के दिल तक पहुँचाने में सफल नहीं हो सका है,लेकिन ये दोनों ही मनुष्य की अपार शक्ति के स्रोत हैं। विज्ञान जहाँ मनुष्य को समस्त भौतिक सुखों की प्राप्ति कराता है, वहीं धर्म तन्तुओं पर आधारित आस्था से मनुष्य में आध्यात्मिक शक्ति आती है।विवेक सम्मत ज्ञान इन दोनों को नियंत्रित करता है।आस्था और विज्ञान के बारे में यहीं सही मार्ग है कि मनुष्य मनुष्यता के लिए कोमल भाव रखे, मगर दानवी प्रवृत्तियों के लिए कठोर व्यवहार रखे।
जीवन का यही असली आध्यात्मिक विज्ञान है। 

जहाँ एक ओर विज्ञान ने पूर्वाग्रहरहित सत्यान्वेषण की वैज्ञानिक पद्धति देकर दुनिया की सेवा की है, वही वह अपनी सीमाओं का भी अतिक्रमण कर बैठा है। इससे उपजे प्रत्यक्षवाद ने शुरुआत में ही जोर-शोर से यह कहना शुरू कर दिया था कि जो प्रत्यक्ष है वही सत्य है, जो प्रत्यक्ष नहीं उसका कोई अस्तित्व नहीं। चूँकि चेतना का (आत्मा का) प्रत्यक्ष प्रमाण उसे अपनी प्रयोगशाला में नहीं मिला, अतः इसके अस्तित्व को ही नकार दिया गया। इस तरह मनुष्य एक चलता-फिरता पेड़-पौधा भर बनकर रह गया। यह प्रकारान्तर से भोगवाद एवं संकीर्ण स्वार्थ वृत्ति ही का प्रतिपादन हुआ। साथ ही इससे प्रेम, त्याग, सेवा, संयम, परोपकार, नीति, मर्यादा जैसी मानवीय गरिमा की पोषक धार्मिक मान्यताएँ सर्वथा खंडित होती चली गई। 

इसके अलावा इस विज्ञान से उपजे भोगवादी दर्शन ने साधनों के सदुपयोग करने की जगह दुरुपयोग ही सिखलाया। संकीर्ण स्वार्थों की अंधी दौड़ में प्रकृति का दोहन इस कदर हुआ कि प्रकृति भी भूकंप, बाढ़, दुर्भिक्ष, अकाल आदि के रूप में अपना विनाश-तांडव करने के लिए मजबूर हो गई। यही वजह है कि आज प्राकृतिक संतुलन पूर्णतः डगमगा गया है। वायुमंडल में कार्बन डाइ ऑक्साइड का बढ़ना, तापमान के बढ़ने से हिमखंडों का पिघलना, प्रदूषण, तेजाबी वर्षा, परमाणु विकिरण जैसे सर्वनाशी संकट मानवीय अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न लगा हुए है। 

आज विज्ञान का आधुनिक चेहरा जिन लोगों के बगैर पहचाना नहीं जा सकता, उनमें एक अत्यंत महत्वपूर्ण नाम मैक्स प्लांक का है। वैसे तो आधुनिक भौतिकी को बहुत कुछ दिया, पर उनकी सबसे महत्वपूर्ण देन है क्वांटम सिद्धांत। परमाणु और उप-परमाणु जगत के प्रति हमारी समझ के विकास में इस सिद्धांत का क्रांतिकारी योगदान है। साथ ही, ईश्वर की सत्ता के प्रति भी प्लांक उतने ही आस्थावान और उदारचेता थे। 

जर्मन वैज्ञानिक प्लांक ने वर्ष 1937 में एक व्याख्यान दिया था। धर्म और प्राकृतिक शक्तियां विषय पर दिए गए इस व्याख्यान में उन्होंने वैज्ञानिक तर्कों से यह साबित करने की कोशिश की थी कि ईश्वर हर जगह उपस्थित है। सर्वव्याप्त होने के बावजूद हमारे हर तरह के बोध से परे मौजूद उस सत्ता की पवित्रता का आभास प्रतीकों की पवित्रता के माध्यम से ही किया जा सकता है। प्लांक अपने धर्म के समर्पित साधक होने के बावजूद दूसरे धर्मो की मान्यताओं के प्रति भी उदारचेता थे। वे 1920 में चर्च के वार्डन बने और 1947 तक यहां सेवा करते रहे। उनके मुताबिक धर्म और विज्ञान दोनों ही संशयवाद, हठधर्मिता, अनास्था और अंधविश्वास के विरुद्ध अंतहीन युद्ध में लगे हुए हैं और यही वह मार्ग है जो परमात्मा की ओर जाता है। 

इतना ही नहीं लार्ड केल्विन 19 वीं सदी के महान वैज्ञानिकों में गिने जाते हैं। वे एक धर्मनिष्ठ ईसाई थे, जिन्होंने अपने धर्म और विज्ञान में सामंजस्य बिठाने का तरीका ढूंढा लेकिन इसके लिए उन्हें डार्विन सहित अपने ज़माने के वैज्ञानिकों से संघर्ष करना पड़ा। 

उस वक़्त के इस संघर्ष की गूंज मौजूदा दौर में विज्ञान और धर्म की बहस में भी सुनाई देती हैं।
केल्विन पैमाने के अलावा यांत्रिक यानी मैकनिकल ऊर्जा और गणित के क्षेत्र में उनका शोध यूरोप और अमरीका को जोड़ने के लिए इस्तेमाल होने वाली ट्रांस अटलांटिक केबल को बिछाने में अहम साबित हुआ है। वे ब्रिटेन के पहले वैज्ञानिक थे जिन्हें हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में जगह मिली. उनका हमेशा ये विश्वास रहा कि उनकी आस्था से उन्हें बल मिला है और उनके वैज्ञानिक शोध को प्रेरणा मिली है। 

अमरीका के टेक्सास की राइस यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर एलीन एक्लंड ने साल 2005 में अमरीका के आला विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों में सर्वे किया, उन्होंने पाया कि 48% लोगों की धार्मिक आस्था थी और 75% लोग मानते थे कि धर्म से महत्त्वपूर्ण सच का पता चलता है।
वो कहती हैं, "ये कहना ग़लत होगा कि आज उन वैज्ञानिकों की संख्या ज़्यादा है जो ईसाई हैं। लेकिन निश्चित रूप से ऐसे वैज्ञानिक हैं, जो अपने वैज्ञानिक काम को अपनी आस्था से जुड़ा हुआ मानते हैं।" 

ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर जॉन लेनक्स ने साल 2010 में लिखे एक लेख में हॉकिंग के तर्कों का विरोध किया। लेनक्स ने कहा, "हॉकिंग के तर्कों के पीछे जो वजह है वो इस विचार में है कि विज्ञान और धर्म में एक संघर्ष है लेकिन मैं इस अनबन को नहीं मानता।"! 

कुछ साल पहले वैज्ञानिक जोसेफ़ नीडहैम ने चीन में तकनीकी विकास को लेकर अध्ययन किया। वो ये जानना चाहते थे कि आखिर क्यों शुरुआती खोजों के बावजूद चीन विज्ञान की प्रगति में यूरोप से पिछड़ गया।
वो अनिच्छापूर्वक इस नतीजे पर पहुंचे कि "यूरोप में विज्ञान एक तार्किक रचनात्मक ताकत, जिसे भगवान कहते हैं, मैं भरोसे की वजह से आगे बढ़ा, जिससे सभी वैज्ञानिक नियम समझने लायक बन गए." 

बहाई धर्म सिखाता है कि विज्ञान और धर्म के बीच एक सामंजस्य या एकता है ,और यह भी कि सच्चा विज्ञान और सच्चा धर्म कभी संघर्ष नहीं कर सकता। यह सिद्धांत बहाई धर्मग्रंथों के विभिन्न कथनों में निहित है । 

अंततः कहा जा सकता है कि आस्था और विज्ञान इन दोनों का उद्देश्य जब मानव कल्याण ही है,तो कुछ विसंगतियों को दरकिनार कर विवेकसम्मत ज्ञान से दोनों के समन्वय से कल्याणकारी गतिविधियों को संचालित करते रहने में लाभ ही लाभ है। 

                                         ●-/ डॉ मनोज कुमार सिंह

गीतिका मनोज की -(भाग-3)

गीतिका मनोज की -(भाग-3)

1-
पाला था जिनको, कितने अरमान सजाकर ,
करता नहीं जो अपने, माँ -बाप का लिहाज़ ।

बेशर्मियों के दौर में, मैं क्या कहूँ जनाब ,
मिलता नहीं यहाँ अब, किसी नाप का लिहाज़ ।

पल-पल में डँसने वाले, इंसान से अधिक ,
अच्छा हीं नहीं बेहतर, है साँप का लिहाज़ ।

घुघरु ने पाई शोहरत, महफ़िल में सरेयाम,
पाँवो ने किया जबकी, हर थाप का लिहाज़।

रिश्तों को आजमाना आसान है 'मनोज', 
रिश्तों को पर निभाना, है ताप का लिहाज़।


2-
छोटी सी औकात है लेकिन, झूठी शान दिखाते हैं ।
आत्मप्रकाशन करने में हीं,  सारा समय बिताते हैं।

फेसबुक पर विज्ञापन का ,है एक ऐसा दौर चला ,
चार कवि मिलकर आपस में, विश्व कवि बन जाते हैं।

सूरदास ,तुलसी ,कबीर को, पढ़कर कुछ परदेश गए ,
बाज़ारों में रख कर उनको, डॉलर खूब कमाते हैं ।

मौलिकता का मूल सिपाही ,धूल चाटता सड़कों पर,
चोरों को देखा मंचों पर, गा-गाकर छा जाते हैं ।


3-
अब हो गया है आदमी, दूकान की तरह ।
बिकता है जहाँ प्यार भी, सामान की तरह ।

बेईमानियों का व्याकरण ,अब आचरण हुआ ,
ओढ़ा है जिसे आदमी, ईमान की तरह ।

पहचानना भी मुश्किल, मुखौटों के दौर में ,
दिखता है भेड़िया भी, इंसान की तरह ।

जो देश अपनी बेटियों को, लाश बना दे,
वह देश नहीं देश है, हैवान की तरह ।

खादी औ खाकियों से, विश्वास उठ चुका ,
लगती हैं राष्ट्र भाल पे, अपमान की तरह ।

है अजनबी सा जी रहा ,दीवार ओढ़कर ,
अपने हीं घर में आदमी मेहमान की तरह ।


4-
एफ डी आइ के बहाने देखिये ,
गिरगिटों की चांदियाँ होने लगी हैं ।

क्या सही है क्या गलत मतलब नहीं ,
स्वार्थ में गुटबंदियां होने लगी है ।

भाव से मृत शब्द का पत्थर लिए ,
काव्य में तुकबन्दियाँ होने लगी है।

इस सियासत का करिश्मा देखिये ,
राम रावण संधियाँ होने लगी है ।

राजपथ की रौनकें जबसे बढ़ीं ,
गुम यहाँ पगडंडियाँ होने लगीं है ।

आम जन के दर्द को महसूस करके ,
आज गीली पंक्तियाँ होने लगीं हैं ।


5-
अब काफी मशहूर हो रहे, सारे चोर उचक्के लोग ।
सज्जन तो गुमनाम हो गए, नाम कमाए छक्के लोग ।

एक तरफ सुविधाओं में पलते कुत्ते दरबारों में ,
एक तरफ सडकों पर खाते फिरते रहते धक्के लोग ।

श्रद्धा औ विश्वास देश की सदियों से पूजित नारी,
आज मसाला विज्ञापन की देख हुए भौचक्के लोग ।

संस्कार का दीपक फिर भी बचा हुआ है कवियों में ,
कविताओं से फैलाते हैं प्रेम ज्योत्स्ना पक्के लोग ।


6-
अब राम का पद चिह्न , मिटाने  लगे कुछ लोग   ।
रावन की फिर से लंका , बसाने लगे कुछ लोग ।।

संगीत इस तरह कुछ , अंदाज़े-बयां कुछ ,
 अब राष्ट्रगान पॉप में , गाने लगे कुछ लोग ।।

अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का लाभ उठाकर ,
गाँधी  को गालियों से सजाने लगे कुछ लोग ।

टूजी हो ,कालाधन हो,या आदर्श मामला ,
सच्चाईयों पे पर्दा, लगाने लगे कुछ लोग ।


7-
इन्सां को किसने हिन्दु- मुसलमां बना दिया |
फिर नफरतों से आग का तूफां बना दिया |

इन्सां  को बनाना  था  इनसान  दोस्तों ,
ज़रा सोंचिये कि हमने उसे क्या बना दिया |

प्रगति की अंधी दौड़ में भूलने लगे रिश्ते ,
निज स्वार्थ ने इनसान को ,हैवां बना दिया |

इनसान को इनसान बनाने के वास्ते ,
धरती पे ख़ुदा ख़ुद को हीं, एक  माँ बना दिया | 

रोते हुए बच्चे की ,उस जिद के सामने ,
कविता को अपनी हमने ,खिलौना बना दिया |



8-
सच का सूरज संग जो, लेकर चलेगा मान्यवर |
तपिश में उसकी सदा  , खुद भी जलेगा मान्यवर ||

सदियों का अनुभव ,जो बोया है वहीँ तू काटेगा |
नागफनियों से सदा काँटा  मिलेगा मान्यवर |

जिसके दिल में पत्थरों- सी नफरतें बैठी हुईं,
ख़ाक उनसे प्यार का तोहफा मिलेगा ,मान्यवर |

आईना सच बोलता है और ये भी जानता ,
उसको तोहफे की जगह, चाँटा  मिलेगा मान्यवर |

धर्म से निरपेक्ष होकर ,सत्य से जो कट गया ,
झूठे सपनों से नहीं, कुछ भी मिलेगा ,मान्यवर |

रेत और सीमेंट का सम्बन्ध एक -सत्रह का जब ,
कब तलक उस पुल का, जीवन चलेगा मान्यवर |

दूध तो है दूध, अपना खूं पिला के देख लें ,
आस्तीन का साँप तो केवल डंसेगा मान्यवर |

9-

तेरी सोच का इतना बड़ा कायल हुआ हूँ मैं
 इस जिंदगी में तेरा अमल सोच रहा हूँ |

कीचड़ भरे माहौल को तब्दील कर सकूँ ,
हर सांस में खुशबु का कँवल सोच रहा हूँ ।

हर तिफ्ल की मुस्कान से दुनिया बची हुई ,
मुस्कान है खुदा का फज़ल सोच रहा हूँ |

वैशाखियों के बल पे मंजिल जो पा गया ,
कितना है जिंदगी में सफल सोच रहा हूँ|

जो दे सके चुनौती हैवां को सरेआम ,
इन्सां की हुकूमत की दखल सोच रहा हूँ | 

कुछ दे सकूँ दुनिया को इस दौर में 'मनोज' ,
मैं प्यार की  खुशरू -सी ग़ज़ल सोच रहा हूँ |


10-
आओ कुछ हम काम की बातें करें ।
सुबह की और शाम की बातें करें ।

जिंदगी का क्या भरोसा ,इसलिए ,
हम खुदा के नाम की बातें करें ।

फूल, चिड़िया, पेड़, बच्चों की हँसी,
प्यार के पैगाम की बातें करें ।

जब तलक इंसानियत खतरे में है ,
ना कभी आराम की बातें करें ।

कुर्सियों से अब भरोसा छोडिये ,
खुद हीं  हम आवाम की बातें करें ।

गिरगिटों के रंग को पहचान कर ,
राष्ट्रहित परिणाम की बातें करें।

 नग्नता-से पूर्ण फैशन त्यागकर,
फिर से राधे-श्याम की बातें करें ।

हिन्दू मुस्लिम एकता के वास्ते ,
तुलसी औ खैयाम की बातें करें ।

चढ़ सके फाँसी  यहाँ अफज़ल गुरु ,
हर गली कोहराम की बातें करें ।

11-

डर्टी -डर्टी पिक्चर देखा ,सत्ता में तो अक्सर देखा ।
विश्वासों के पुनीत हस्त में फूल सरीखा पत्थर देखा ।

घोषित है खुश हाल आदमी ,गज़ट-बज़ट  के पन्नों में ,
सडकों पर बदहाल आदमी ,जीता है हँसकर देखा ।

भरी अदालत सच बोला था ,तब से उसका पता नहीं ,
वो भी तो बर्बाद हो गए ,जिसने वो मंज़र देखा ।

आसमान तक पहुँचा था ,नादान परिंदा बसने को ,
आप बताएं आसमान का  ,अब तक कोई घर देखा ।


12-
हर भूखे की भूख मिटाना ,अच्छा लगता हैं |
हर चेहरे पे चाँद उगाना ,अच्छा लगता है |

अभी-अभी रोता वो बच्चा, माँ को पाकर खुश लगता ,
माँ का उसको दूध पिलाना ,अच्छा लगता है |

बच्चे तो बच्चे होते हैं, भले बात वे ना मानें ,
फिर भी बच्चों को समझाना ,अच्छा लगता है |

पाकर खोना ,खोकर पाना, है जीवन की  विडंबना,
रोते-रोते फिर मुस्काना ,अच्छा लगता है |

चिड़ियों के कलरव ,मधुकर के गुंजन से भी मधुर ध्वनी ,
नन्हें बच्चों का का तुतलाना ,अच्छा लगता है |



13-
खुरच दे झूठ का चेहरा सच की बानी लिखना |
मरी -सी  जिंदगी में  जोश- रवानी लिखना | 

चुनौती दे रहा हूँ लिख सको, तो लिखना तुम ,
घृणा की आँख में मुहब्बत रूहानी  लिखना  |

रंगों - खुश्बू हो ,जब भी  अल्हड मस्ती हो ,
उस क्षण को, खुबसूरत जवानी लिखना । 

मैं कर न सका और कुछ,तो प्यार कर लिया ,
मेरी जिंदगी की ये सब, नादानी लिखना । 

जब उदास होना ,जिंदगी की बेरुखी  से ,
उस वक्त कुछ, कविता और कहानी लिखना ।

14-

गज़नी व गोरी ,हज़ारों ने लूटा | 
अंग्रेजों के संग, जमींदारों ने लूटा |

किसने नहीं, देश लूटा है यारों ,
सत्ता के सब, रिश्तेदारों ने लूटा |

बाजार के, मस्त अंगड़ाईयों से ,
लुभा के हमें, साहूकारों ने लूटा |

लड़की बलत्कृत को, पहले दिखाकर ,
टीवी टीआरपी, अखबारों ने लूटा |

जिन्हें सौंप दौलत, सोया देश अपना , 
उन्हीं रक्षकों ,पहरेदारों ने लूटा |


15-

सच बोलूं दिल मिले ना मिले ,मिलना एक बहाना आज |
मित्रता की बनी कसौटी, केवल हाथ मिलाना आज |

कौन निभाये, किसको फुर्सत ,तीव्र गति कि दुनिया में ,
रिश्तों के दर्पण में देखा ,अपनापन अनजाना आज |

वेश्या की मुस्कान लिए है ,संबंधों की डोर यहाँ ,
करवट बदली ,ग्राहक बदले ,धंधा वहीँ पुराना आज |

नैतिकता ,ईमान ,धर्म आहत हैं ,उनकी महफ़िल में ,
जाल फ़रेबी ,दंभ झूठ सब ,पहने सच का बाना आज |

द्रौपदी के चिर हरण में ,चले जानवर इन्सां बन,
अस्मत कितनी चढ़ी दाँव पर,गिनना और गिनाना आज |

कुहरे हीं कुहरे हैं फिर भी ,धुल के मेले चारो ओर,
इस मंज़र में राह दिखाए ,कविता और फ़साना आज |



16-

मातृभूमि का सदा, सम्मान करना चाहिए |
इसकी रक्षा हित हमें, बलिदान करना चाहिए |

जिन शहीदों ने आज़ादी, दी हमें सौगात में ,
उन शहीदों का हमें, यशगान करना चाहिए |

कोई लड़े ना जाति, मज़हब ,प्रांत के अब नाम पर ,
सबको मिलाकर एक, हिंदुस्तान करना चाहिए |

आज भ्रष्टाचारियों से, राष्ट्र मर्माहत हुआ ,
उनका अब तिहाड़ में, स्थान करना चाहिए |.


17-

मंचों के कवि मंचों तक रह जाते हैं |
छंदों के कवि छंदों तक रह जाते हैं |

ताली ,यश औ वाह-वाह की चाहत में ,
कंधों के कवि ,कंधों तक रह जाते हैं |

परपीड़ा जो समझ सके, न  देख सके ,
अंधों के कवि अंधों तक रह जाते हैं |

कलम बेच कोई भले तमगा पाले ,
धंधों के कवि धंधों तक रह जाते हैं |

छंद सुना के चार जो झंडा गाड़ रहे ,
झंडों के कवि झंडों तक रह जाते हैं |

सूर कबीर तुलसी तो सदियों के मानक ,
पंडों के कवि पंडों तक रह जाते हैं |

फेसबुक पर भेंड -झुंड- से कवि मिले ,
झुंडों के कवि झुंडों तक रह जाते हैं|
                               
18-

तू ज्ञान अपना ,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |
तू अभिमान अपना ,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |

तू क्या देगा किसी को, घृणा के सिवा जिंदगी में ,
ये सम्मान अपना ,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |

जब आसमान हीं , उड़ान का दुश्मन  हो जाये ,
वो आसमान अपना,अपने पास रख ,तेरी ऐसी की तैसी |

इन्सान इन्सान होता है महज़, हमें मालूम है ,
तू हिन्दू ,मुसलमान अपना,अपने पास रख,तेरी ऐसी की तैसी।