'कविता बेटियों की तरह होती है'
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-/डॉ मनोज कुमार सिंह
कवि जब
अपनी चेतना की ज्योत्स्ना को
कविता के शब्दों में
स्थानांतरित कर
उसमें प्राण-ऊर्जा भर
देता है
तो वह हो उठती है पूर्ण जीवंत
फिर तो कविता भी
अपने कवि को उसके
जीवन प्रयाण के उपरांत भी
रखती है जीवंत
साथ ही रखती है
सदियों तक अपने साथ।
कविता कभी नहीं होतीं नमक हराम
कभी नहीं छोड़ती
अपने कवि का साथ
कविता दुनिया के अधरों पर
थिरकती हुई
जुबानों पर जब जब लहराती है
सच मानिए
निःशेष हो जाती है
कविता सुंदर नहीं
प्रिय होती है
क्योंकि हर सुंदर चीज प्रिय हो जरूरी नहीं
वैसे ही हर प्रिय चीज सुंदर हो
बिल्कुल जरूरी नहीं
कविता कैटरीना कैफ के चेहरे में नहीं
माँ की चेहरे की झुर्रियों में बसती है।
जब कवि कविता को जीता है
तब कविता भी कवि को जीती है
और उसके सारे दुख-दर्द को पीकर
कर देती है उसे तनावों से दूर
ले लेती है
कवि का सारा बोझ अपने सिर पर।
कविता बेटियों की तरह होती है
पूरी जिम्मेदार
कभी नहीं छोड़ती
अकेला
अनंतिम काल तक
अपने जनक को।
वक्त के फ़लक पर
करती रहती है उनका नाम रोशन
उसे मालूम है कि वह
अपने कवि की ज्योत्स्ना है
करना है उसे जग आलोकित।
देना है उसे
असीम तरल संभावनाओं से भरा
एक सुनहला भविष्य
एक अंतरंग आत्मीयता
सृजन का कोमल बीज
अपनी जरखेज कोंख से!!
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