dohe manoj ke........... गुरु कृपा देता हमें ,ज्ञान पुष्प का दान | जब चरणों में शीश हो, मन में हो सम्मान ||
गुरु का आशीर्वाद हीं ,ईश्वर का वरदान | बिन गुरु के संभव नहीं ,ईश्वर की पहचान ||
अथक परिश्रम सृजन से, मिलता सुन्दर अर्थ | गुरुओं के सद्प्रेम से ,जीवन बने समर्थ ||
घोर तिमिर संसार में ,शिष्य
जहाँ फँस जाय| अज्ञानी गुमराह को ,गुरु हीं रह दिखाय||
गुरु-शिष्य की परम्परा ,पावन औ प्राचीन | लेकिन अर्वाचीन में, बेबस और मलीन ||
काव्य की अभिव्यंजना में ,हर ख़ुशी, हर वेदना में ,
श्वास बनकर संचरित हो ,हृदय की संवेदना में |
अनिर्वचनीय औ अलौकिक प्रेम की, अनुभूतियों-सी
धड़कते हो प्राण बनकर ,तुम हमारी चेतना में ||
कुछ थे जो बदतमीज़, अपनी हद में आ गए | अपराध छोड़ कुछ तो, संसद में आ गए | फिर भी ये देखो जनता उनकी मुरीद हैं, भले हीं भ्रष्टतंत्र की वो ,ज़द में आ गए |
तुम्हारी दी चुनौती, रोज हम स्वीकार करते हैं| तेरी मक्कारियों पे, उम्र भर ऐतबार करते हैं|
कहती मौत अक्सर ,जिंदगी से मुस्कुरा कर के , जो हम से दुश्मनी करते, उसे भी प्यार करते हैं||
जो दिल में हौसलों की नाव पे, चढ़ने का ज़ज्बा हो , नदी ,नाला ,बवंडर क्या, समंदर पार करते हैं|
जब भी खोईं प्यार की अनुभूतियाँ ,
जिंदगी संत्रास बन के रह गई |
जब भी खुदगर्जी समंदर-सी हुई , ज़िन्दगी एक प्यास बन के रह गई|
तू जब जख्म लिखता है ,तब मैं दवा लिखता हूँ | तू जब दर्द लिखता है ,तब मैं दुआ लिखता हूँ | तुम्हारी हर अदा से मैं सदा वाकिफ रहा हूँ दोस्त , तू जब क़ज़ा लिखता है ,तब मैं खुदा लिखता हूँ |