Thursday, August 2, 2012


मंचों के कवि मंचों तक रह जाते हैं |
छंदों के कवि छंदों तक रह जाते हैं |

ताली ,यश औ वाह-वाह की चाहत में ,
कंधों के कवि ,कंधों तक रह जाते हैं |

परपीड़ा जो समझ सके,   देख सके ,
अंधों के कवि अंधों तक रह जाते हैं |

कलम बेच कोई भले तमगा पाले ,
धंधों के कवि धंधों तक रह जाते हैं |

छंद सुना के चार जो झंडा गाड़ रहे ,
झंडों के कवि झंडों तक रह जाते हैं |

सूर कबीर तुलसी तो सदियों के मानक ,
पंडों के कवि पंडों तक रह जाते हैं |

फेसबुक पर भेंड -झुंड- से कवि मिले ,
झुंडों के कवि झुंडों तक रह जाते हैं|
                               --डॉ मनोज कुमार सिंह  


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