Sunday, June 3, 2012


हिंदी ग़ज़ल केवल  मुहब्बत  की नहीं है गुफ्तगू |
तड़पती -सी जिंदगी की मौन मुखरित पीर है |
मीर ,ग़ालिब की ग़ज़ल है प्रेम -पर्वत -शिखर पर ,
यह निराला के ह्रदय की दुःख भरी तस्वीर है |
रोजमर्रा जिंदगी यह , है अँधेरे की गुलाम,
आदमी के हौसलों पर ,रोशनी  की तीर है |
बेचते ईमान अपना ,स्वार्थ के पुतले यहाँ ,
भेड़ियों के हाथ जैसे देश की तकदीर है |

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