Tuesday, June 5, 2012

तेरे शब्द  ,मेरे  शब्द 


मैं
इस नाज़ुक परिवेश में
 ऐसा कोई चामत्कारिक  शब्द 
नहीं रखना चाहता 
जिसको सुनकर,देखकर
 आप विस्मय से भर जायें
 उछल जायें
 तालियाँ बजाएं 
 और कह उठें वाह-वाह 
तथा
 इधर शब्द की सहजता
 फंसी चढ़ जाये 
मैं दूंगा शब्द 
सहज शब्द 
प्रामाणिक शब्द 
शब्दों के साथ पूरा वाक्य दूंगा
 जो आपके चूल्हे से 
चौराहे तक
 सिरहाने से सपने तक
 फैले -
व्यवस्था की भयानक खूनी पंजों
 और दहाड़ते आतंक  के डर से
 छुपे
 दुबके
 गुमनाम शब्दों को
 तुम्हारे अंतड़ियों के
 सलवटों में से बहार निकल कर
 देंगे उन्हें आत्मबल
एक विश्वास 
निर्भय होने का आचरण 
युयुत्सावादी मिजाज़
एक जलता हुआ अलाव
 जिसमें पकने के बाद
 मेरा दावा है -
व्यवस्था की
 हत्यारी साजिश  के खिलाफ 
 एक दिन आँखों में आँखें डाल 
दे सकते हैं उनको
 दो हाथ कर लेने की सहज सूचना 
एक नए तेवर और नए कलेवर के साथ
 तेरे शब्द ,मेरे शब्द |













तुम फेसबुक पर चौबीस घंटे आँखें चार करते हो |
सच बतलाना कब बीबी- बच्चों से प्यार करते हो ?
लिखते हो तुम ,छपते हो तुम, रोज -रोज के खबर बने ,
क्यूँ सीधे-सादे जीवन को, अखबार करते हो |
दुनिया देखी है मैंने ,अनुभव रोज बताते हो ,
घर भी देखो प्यारे अपना , जिससे प्यार करते हो |
जो अपनों से प्यार करे ना ,दूसरों से क्या प्यार करे ,
कोरी लफ्फाजी से क्यूँ ,मनुहार करते हो |

Sunday, June 3, 2012

शब्द गुंडे भी होते हैं ,शब्द सज्जन भी होते हैं ,
हृदय की रोशनी की आँख के, अंजन भी होते हैं |
घुमड़ते जब, हमारी भावनाओं के समंदर में ,
प्रसव-सी वेदना लेकर, मनस-मंथन भी होते हैं |
छेड़ना मत कभी ,जब हम उदास होते हैं |
इसी बहाने अपने आस-पास होते हैं |
दोस्त की भूमिका तन्हाईयाँ निभाती जब ,
ऐसे लम्हे भी जीवन में खास होते हैं |

हिंदी ग़ज़ल केवल  मुहब्बत  की नहीं है गुफ्तगू |
तड़पती -सी जिंदगी की मौन मुखरित पीर है |
मीर ,ग़ालिब की ग़ज़ल है प्रेम -पर्वत -शिखर पर ,
यह निराला के ह्रदय की दुःख भरी तस्वीर है |
रोजमर्रा जिंदगी यह , है अँधेरे की गुलाम,
आदमी के हौसलों पर ,रोशनी  की तीर है |
बेचते ईमान अपना ,स्वार्थ के पुतले यहाँ ,
भेड़ियों के हाथ जैसे देश की तकदीर है |