आओ मिलकर करें सृजन
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विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !
नित अभिनव सद् सोंच गढ़े ,
कण – कण की हर बात पढ़ें !
जीवन की हर राह सुगम हो ,
श्रम की उंगली पकड़ बढ़ें !
जीवन की सूखी बगिया में , चलो खिलाएं नया सुमन !
विध्वंसो की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
रचना के हर नवल भूमि पर
रचनाकार अमर होता है !
कार्य कठिन है प्रसवित करना,
जीवन एक समर होता है !
चलो उगाएँ मरूभूमि में शब्दों का सुरभित उपवन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
स्वाद , दृश्य , स्पर्श , घ्राण हो !
श्रवण साधना काव्य प्राण हो !!
विविध रंग के भाव भरे हम !
मन के सारे कष्ट त्राण हो !!
चलो बनायें ऐसी कविता , मन का हर ले सभी चुभन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
जिसने पत्थर तोड़ – तोड़कर
औ तराशकर मूर्ति बनाई,
जड़ता के अंधियारे में जो
ज्ञान – दीप की ज्योति जलाई !
उसे हृदय की दीप – शिखा से, आओ करते चले नमन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ आओ मिलकर करें सृजन !!
विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !
नित अभिनव सद् सोंच गढ़े ,
कण – कण की हर बात पढ़ें !
जीवन की हर राह सुगम हो ,
श्रम की उंगली पकड़ बढ़ें !
जीवन की सूखी बगिया में , चलो खिलाएं नया सुमन !
विध्वंसो की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
रचना के हर नवल भूमि पर
रचनाकार अमर होता है !
कार्य कठिन है प्रसवित करना,
जीवन एक समर होता है !
चलो उगाएँ मरूभूमि में शब्दों का सुरभित उपवन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
स्वाद , दृश्य , स्पर्श , घ्राण हो !
श्रवण साधना काव्य प्राण हो !!
विविध रंग के भाव भरे हम !
मन के सारे कष्ट त्राण हो !!
चलो बनायें ऐसी कविता , मन का हर ले सभी चुभन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
जिसने पत्थर तोड़ – तोड़कर
औ तराशकर मूर्ति बनाई,
जड़ता के अंधियारे में जो
ज्ञान – दीप की ज्योति जलाई !
उसे हृदय की दीप – शिखा से, आओ करते चले नमन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ आओ मिलकर करें सृजन !!
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