Wednesday, November 22, 2017

गज़ल

वन्दे मातरम्! मित्रो!एक गज़ल हाज़िर है।

दोस्ती जब भी गर,दिमाग से करिए।
तो आदमी से नहीं,नाग से करिए।

दिल से कीजिये जब,किसी का स्वागत,
तो मुहब्बत की बेर,साग से करिए।

स्वार्थ में फाड़िये मत,रिश्तों की चादर,
नफरत नफरतों की,दाग से करिए।

बर्फ पिघलेगी निश्चित,शर्त लेकिन,
कभी तो भेंट दिल की,आग से करिए।

रूप,गुण,रंग ख़ुदा का तोहफा,
हंस की तुलना मत काग से करिए।

डॉ मनोज कुमार सिंह

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