Thursday, August 2, 2012

मेरे १५ प्रतिनिधि हायकु आपको समर्पित ...........


उषा काल की
ओस नहायी कली
लगती भली|

उपवन- सा
लहराए जीवन
फूलों- सा मन |

घोर अँधेरे
में हीं दिखते, अच्छे
चाँद-सितारे |

मचले नैन
तुझ बिन सजना
दिल धड़के |

चहके मन
झूमे तन, पाकर
अपनापन |

जज्बातों पर
दर्द उगे तो होता
सत्य-सृजन |

अखंड भक्ति
शुचिता,समर्पण
की अभिव्यक्ति |

सृजन -धर्म
मौलिक चिंतन का
नूतन मर्म |

ज्ञान की गंगा
बहा तू पुण्य कर
मन की धरा |
१०
श्रृंगारी रूप
प्रेम की कटोरी में
मक्खनी धूप |
११
जवान बेटी
खा जाती माँ का चैन
पिता की नींद |
१२
लड़की होती
है धान की पौध, रोपी
जातीं दुबारा |
१३
सोन चिरैया
बेटियाँ, पुल बनीं
परिवारों की |
१४
जीवन भर
बनते रहे मीत
पीड़ा के गीत |
१५
प्रतिज्ञा कर
बना रहूंगा सदा
व्यक्ति प्रखर |

मंचों के कवि मंचों तक रह जाते हैं |
छंदों के कवि छंदों तक रह जाते हैं |

ताली ,यश औ वाह-वाह की चाहत में ,
कंधों के कवि ,कंधों तक रह जाते हैं |

परपीड़ा जो समझ सके,   देख सके ,
अंधों के कवि अंधों तक रह जाते हैं |

कलम बेच कोई भले तमगा पाले ,
धंधों के कवि धंधों तक रह जाते हैं |

छंद सुना के चार जो झंडा गाड़ रहे ,
झंडों के कवि झंडों तक रह जाते हैं |

सूर कबीर तुलसी तो सदियों के मानक ,
पंडों के कवि पंडों तक रह जाते हैं |

फेसबुक पर भेंड -झुंड- से कवि मिले ,
झुंडों के कवि झुंडों तक रह जाते हैं|
                               --डॉ मनोज कुमार सिंह