Monday, December 19, 2011


          सृजनात्मकता की सार्थकता
सृजन एक मानसिक प्रक्रिया है, जिसमें नये विचार, उपाय या कांसेप्ट का जन्म होता है ! वैज्ञानिक मान्यता यह है कि सृजन का फल में मौलिकता और सम्यकता दोनों विद्यमान होते हैं ! रचना प्रक्रिया के बारे में भारत और पश्चिम में भी बहुत पहले से भी विचार होता रहा है और एक बहुस्तरीय जटिल मस्तिष्क की क्रिया होने के कारण सृजन प्रक्रिया को रहस्यमय और विलक्षण माना जाता रहा है ! आज सृजन प्रक्रिया का शरीर विज्ञान के आधार पर अध्ययन करने वाले विद्वान उसका लगभग यांत्रिक विश्लेषण करते हैं ! मनोवैज्ञानिक ने सृजन प्रक्रिया पर अलग से विचार किए हैं, दार्शनिको ने अलग से, अर्थशास्त्रियों ने अलग से , रचनाकारों ने अलग से !
                   आइए रचनाकारों की दृष्टि से रचना को समझें !
कहा जाता है कि जन्म लेने के बाद रचना रचनाकार को अमर कर सकती है ! अभिनव गुप्त के अनुसार प्रतिभा और सृजन शक्ति अलौकिक है ! हर मनुष्य इसे पैदा नहीं कर सकता ! भारत में कवि की तुलना प्रजापति से की गई है ! आनंदवर्धन कहते हैं
          अपारे काव्य संसारे कविरेव प्रजापति: !
           यथास्मै रोचते विश्वं तथेदं परिवर्तते  !!
                                          ध्वन्यालोक
सृजन प्रक्रिया पर पश्चिम में भी काफी विचार हुआ है ! वैसे स्वीकार करना पड़ता है कि सृजन प्रक्रिया के बारे में कोई सरलीकृत निष्कर्ष देना मुश्किल और जोखिम भरा काम है ! रचना में रचनाकार अपनी और दुनिया दोनों की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह लगता है ! दोनों के अर्थ और मूल्य की खोज करता है ! यह खोज ही सृजन का गहरा आतंरिक कारण है ! सार्थकता की खोज अर्थात अर्थ की खोज अर्थ यानि जीने का अर्थ ! चीजों का अर्थ ! इस अर्थ की तलाश ही रचना का कारण है !
                

 रचनात्मकता के सन्दर्भ में कह सकते है कि इसका जन्म पीड़ा , विवशता और इच्छा के मिलन से होता है और यह जन्म लेने के बाद रचनाकार को उसकी पीड़ा, विवशता और इच्छा से मुक्त कर देती है ! हर रचना रचनाकार को मुक्त और हल्का करती है ! यदि यह साधन उसके पास न हो तो उसका अंत शायद पागलपन , आत्महत्या या विरक्ति या फिर हथियार उठा लेने में हो ! तो क्या रचना पागलपन या आत्महत्या या विरक्ति के विरूद्ध खड़े होने और जीने की प्रेरणा देती है ? और क्या वह हथियार का विकल्प है ?
        उक्त प्रश्न को सिद्ध करने के लिए एक उदाहरण से सृजनात्मकता या रचनात्मकता को समझाने की कोशिश कर रहा हूँ ! हमने पीड़ा शब्द का उल्लेख पूर्व में किया है , जिसके आधार पर कहना चाहता हूँ कि अगर आप किसी को सजा देना चाहते हैं तो उसमें भी क्रिएटिव बनिए ! पर पीड़ा की जगह आत्म पीड़ा का इस्तेमाल कीजिए ! नजदीकी रिश्तों में तो यही काम आता है , भले हो या दफ्तर !
               आप कोई भी काम करते हों , उसमें जब तक पोजिटिव और क्रिएटिव नहीं बनेंगे , तब तक आपको बड़ी सफलता नहीं मिल पायेगी ! अगर आप प्यार करते हैं तो आपको अपने प्यार को अभिव्यक्त करने के लिए इतने अलग और क्रिएटिव तरीके को चुनना पड़ेगा कि आपका प्यार आपसे दूर कभी न जा सके ! इसी तरह अगर आप किसी को सुधारना चाहते है , तो भी आपको लीक से हटकर रास्ता खोजना होगा !
               एक कहानी है ! पिता ने कार खरीदी और अपने जवान हो गये बेटे को सिखाना शुरू किया ! जिस दिन उसने कार सीख ली , पिता ने बेटे से कहा कि आज तुम मुझे मेरे ऑफिस छोड़ो , फिर कार को गैरेज में सर्विस करा लेना ! इस बीच में तुम फलां फलां जगह में जाकर वह काम कर आना ! फिर कार गैरेज से ले लेना और शाम को मुझे लेने इतने बजे ऑफिस आ जाना ! मैं तुम्हारे साथ ही आज घर जाऊंगा ! मैं तुम्हारा इंतजार करूँगा ! बेटा अपने पिता को ऑफिस छोडता है ! कार गैरेज में रखता है ! उसके बाद एक दो
काम निपटाता है ! फिर सोचता है कि चलो एक फ़िल्म देख आया जाये ! वह फ़िल्म देखता है ! फिर आता है ! कार गैरेज से उठाता है ! पिताजी को ऑफिस लेने पहुँच जाता है ! पर इस काम में वह एक घंटा लेट हो चुका है ! वह सोचता है कि पिताजी हमेशा की तरह डाट वह सहन कर लेगा ! कुछ झूठ बोल देगा !
                     वहाँ पिताजी परेशान हैं ! कहीं एक्सीडेंट बगैरह तो नहीं हो गया ! बेटा देर से पहुंचा ! कारण पूछने पर बताया कि मैकेनिक ने कार बनाने में देर कर दी ! पिताजी ने कहा , तुम झूठ बोल रहे हो ! मैंने एक घंटे पहले मैकेनिक को फोन किया था ! उसने कहा था कि कार कब से सर्विस होकर खड़ी है ! तुम लेने ही नहीं आए ! बेटा फिर भी कुछ न कुछ झूठ कहता रहा ! नाराज होकर पिता ने कहा , अब मैं तुम्हारे साथ कार में नहीं जाऊंगा ! वह पैदल ही अपने घर की ओर निकल लिए ! पीछे पीछे बेटा धीरे धीरे कार चलाते हुए आ रहा था कि पिताजी अभी कार में आकार बैठ जायेंगे ! पर पिता पैदल ही घर पहुंचे !
               घर पहुंचते ही बेटे ने अपने किए के लिए माफी मांग ली ! उसे अपनी गलती का अहसास हो गया था और आगे कभी झूठ न बोलने और वादा खिलाफी न करने का वादा भी किया ! अगर आपको अपने सबसे प्रिय सहयोगी को सजा देनी हो , तो खुद को पीड़ा पहुंचाइए ! वह तुरंत ठीक हो जायेगा ! ऐसी सजा कभी न दीजिए , जो प्रेडिक्टेबल हो ! जैसे बेटे ने सोंचा कि डांटेंगे तो सह लूँगा ! यह खुद की पीड़ा सहना था , सो उसे मंजूर था ! अगर वह यह सोंचता कि मेरे न जाने से बूढ़े पिता को पैदल आना होगा और उन्हें कितना कष्ट होगा , तो वह गलती ही नहीं करता !
             इसलिए रचनात्मकता जीवन के क्षेत्र में अति सकारात्मक और नयी दिशा प्रदान करने वाली अनोखी प्रक्रिया है ! यहीं रचनात्मकता रत्नाकर डाकू को महर्षि बाल्मिकी का जन्म दिया , जिसमें क्रौच्च के दर्द को अपना दर्द समझ कर बहेलिया को अभिशाप दिया था दुनिया का प्रथम कवि बन गया
   मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती समा: !
   यत्क्रौंच मिथुनादेकमवधी: काममोहितम् !!
अत: हमें अपने जीवन में स्रजनात्मकता को बढावा nsuk चाहिए , जिससे जीवन और ये दुनिया खूबसूरत बन सके ! स्वान्त: सुखाय सर्वजन सुखाय बन सके !
        डा. मनोज कुमार सिंह, PGT HINDI
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  • हवन पूजा - एक परिदृश्य .............

आओ मिलकर करें सृजन  
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डरे नहीं हम , घबरायें ना , संघर्षों से करें मिलन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !
              नित अभिनव सद् सोंच गढ़े ,
              कण कण की हर बात पढ़ें !
              जीवन की हर राह सुगम हो ,
              श्रम की उंगली पकड़ बढ़ें !
जीवन की सूखी बगिया में , चलो खिलाएं नया सुमन !
विध्वंसो की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
              रचना के हर नवल भूमि पर
              रचनाकार अमर होता है !
              कार्य कठिन है प्रसवित करना,
             जीवन एक समर होता है !
चलो उगाएँ मरूभूमि में शब्दों का सुरभित उपवन !
 विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
              स्वाद , दृश्य , स्पर्श , घ्राण हो !
              श्रवण साधना काव्य प्राण हो !!
              विविध रंग के भाव भरे हम !
              मन के सारे कष्ट त्राण हो !!
चलो बनायें ऐसी कविता , मन का हर ले सभी चुभन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
              जिसने पत्थर तोड़ तोड़कर
              तराशकर मूर्ति बनाई,
              जड़ता के अंधियारे में जो
              ज्ञान दीप की ज्योति जलाई !
उसे हृदय की दीप शिखा से, आओ करते चले नमन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ आओ मिलकर करें सृजन !!
विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !
              नित अभिनव सद् सोंच गढ़े ,
              कण कण की हर बात पढ़ें !
              जीवन की हर राह सुगम हो ,
              श्रम की उंगली पकड़ बढ़ें !
जीवन की सूखी बगिया में , चलो खिलाएं नया सुमन !
विध्वंसो की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
              रचना के हर नवल भूमि पर
              रचनाकार अमर होता है !
              कार्य कठिन है प्रसवित करना,
             जीवन एक समर होता है !
चलो उगाएँ मरूभूमि में शब्दों का सुरभित उपवन !
 विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
              स्वाद , दृश्य , स्पर्श , घ्राण हो !
              श्रवण साधना काव्य प्राण हो !!
              विविध रंग के भाव भरे हम !
              मन के सारे कष्ट त्राण हो !!
चलो बनायें ऐसी कविता , मन का हर ले सभी चुभन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ , आओ मिलकर करें सृजन !!
              जिसने पत्थर तोड़ तोड़कर
              तराशकर मूर्ति बनाई,
              जड़ता के अंधियारे में जो
              ज्ञान दीप की ज्योति जलाई !
उसे हृदय की दीप शिखा से, आओ करते चले नमन !
विध्वंसों की छाती पर चढ़ आओ मिलकर करें सृजन !!